केंद्र में सत्ताधारी एनडीए की अगुवा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की पश्चिम बंगाल के मालदा में रैली प्रस्तावित थी, लेकिन उनके हेलिकॉप्टर को लैंडिंग की इजाजत नहीं मिली. इसके बाद रैली रद्द हो गई. ऐसा ही झारग्राम में भी हुआ. इसके बाद स्मृति ईरानी, योगी आदित्यनाथ और शिवराज सिंह चौहान जैसे बीजेपी के कद्दावर नेताओं के हेलिकॉप्टर भी पश्चिम बंगाल की धरती पर नहीं उतर पाए.
उधर, चिटफंड घोटाले से जुड़ी जांच को लेकर जब सीबीआई ममता के करीबी पुलिस अफसर से पूछताछ के लिए पहुंची, तो बवाल खड़ा हो गया. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी धरने पर बैठ गईं और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही धरना खत्म हुआ. अब सवाल ये है कि आखिर बीजेपी और ममता बनर्जी के बीच विवाद की असली वजह क्या है?
तनातनी के पीछे वजह है वर्चस्व
दरअसल, ममता बनर्जी और बीजेपी के बीच तनातनी की असली वजह वर्चस्व है. ममता के लिए पश्चिम बंगाल में अपना वर्चस्व बरकरार रखने की और बीजेपी के लिए 2019 के चुनाव में वर्चस्व कायम करने की.
हाल ही में बीजेपी को तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हार का मुंह देखना पड़ा. इस हार ने बीजेपी को चौकन्ना कर दिया है. बीजेपी को आशंका है कि साल 2014 वाला जादू 2019 में चलना मुश्किल है.
साल 2014 में बीजेपी ने अकेले 282 सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन 2019 में बीजेपी को हिंदीभाषी राज्यों में सीटों का नुकसान होने की आशंका है. ऐसे में बीजेपी इन सीटों की भरपाई के लिए नई जमीन तलाश रही है और इसके लिए पश्चिम बंगाल उपयुक्त जगह है.
पश्चिम बंगाल में बीजेपी को क्यों दिख रही हैं संभावनाएं?
हाल के सालों में पश्चिम बंगाल के उत्तर चौबीस परगना के बासिरहाट, हावड़ा के धूलागढ़ और मालदा के कलियाचाक, आसनसोल, रानीगंज और पुरुलिया जैसे इलाके दंगों और हिंसा के शिकार हुए हैं.
बीजेपी पर ये आरोप लगते रहे हैं कि वो चुनाव में सांप्रदायिकता का सहारा लेकर वोटों के ध्रुवीकरण पर जोर देती है. ऐसे में बीजेपी को ये उम्मीद हो सकती कि सांप्रदायिकता के लिहाज से संवेदनशील पश्चिम बंगाल में उसका दांव कामयाब हो जाए.
बीजेपी आने वाले चुनाव में हिंदू वोटों को एकजुट करने की पूरी कोशिश कर रही है. यही वजह है कि बीजेपी की सभाओं में बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ और शरणार्थी बने गैर-मुसलमानों की नागरिकता का मुद्दा उठाया जा रहा है. एक सभा में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने तो यहां तक कह दिया, ‘दुर्गापूजा विसर्जन हमें यहां नहीं करने दिया जाएगा, तो क्या विसर्जन पाकिस्तान जाकर किया जाएगा?’
जाहिर है, बीजेपी पश्चिम बंगाल में हिंदुओं से जुड़े मुद्दों को जोर-शोर से उठा रही है, ताकि एकजुट वोटबैंक का फायदा उठाया जा सके.
पश्चिम बंगाल से बीजेपी की उम्मीद इसलिए भी बढ़ गई है, क्योंकि पिछले पंचायत चुनाव में बीजेपी ने सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के दबदबे के बावजूद अच्छे नतीजे हासिल किए थे.
इन 12 सीटों पर टक्कर देगी बीजेपी
साल 2018 में हुए पंचायत चुनावों में बीजेपी को माओवाद के गढ़ रह चुके झारग्राम और पुरुलिया जैसे इलाकों में काफी फायदा हुआ. इन इलाकों में जो वोट बीजेपी के हिस्से आया था, उसमें से ज्यादातर वोट वाम मोर्चे के हिस्से का था, लेकिन आदिवासी इलाकों में बीजेपी ने टीएमसी के वोट बैंक में भी सेंध लगाई थी.
खास तौर पर आदिवासी बहुल तीन जिले ऐसे हैं, जहां बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया था.
झारग्रामः यहां बीजेपी 329 पंचायत सीटों पर जीत हासिल कर दूसरे नंबर पर रही, जबकि टीएमसी को यहां सबसे ज्यादा 372 सीटें मिलीं.
पुरुलियाः बीजेपी 626 सीटों पर जीत हासिल कर दूसरे नंबर पर रही, जबकि टीएमसी ने 748 सीटों पर जीत हासिल की.
मालदाः टीएमसी ने 973 सीटों पर जीत दर्ज कराई, वहीं बीजेपी ने 502 और कांग्रेस ने 359 सीटें हासिल की.
2014 से अब तक बंगाल में बीजेपी का प्रदर्शन
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में कुल दो सीटों, आसनसोल और दार्जिलिंग में जीत दर्ज कराई थी. इस चुनाव में बीजेपी को 17 फीसदी वोट मिले थे. पिछले पंचायत चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा था. इन चुनावों में बीजेपी वाम मोर्चे को पीछे छोड़कर दूसरे पायदान पर आ गई थी.
साल 2018 में पश्चिम बंगाल की कुल 31,802 ग्राम पंचायत सीटों पर हुए चुनाव में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने 20,848 पंचायत सीटें जीती थीं. वहीं बीजेपी ने इन चुनावों में दूसरे नंबर पर रहते हुए 5,636 सीटें जीती थीं.
अब लोकसभा चुनाव 2019 के लिए बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में 20 से 22 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है.
अगर विधानसभा चुनाव की बात करें, तो साल 2011 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले 2016 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की स्थिति बेहतर रही थी.
साल 2016 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने तीन सीटें हासिल की थीं, जबकि उसके हिस्से 10 फीसदी वोट शेयर आया था. 2011 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी एक भी सीट नहीं जीती थी और बीजेपी के हिस्से सिर्फ 4 फीसदी वोट आया था.
पश्चिम बंगाल में बीजेपी के बढ़ते दबदबे ने ममता को चौकन्ना कर दिया है. यही वजह है कि ममता ने पहले अपने राज्य में अमित शाह की रथयात्रा को रोक दिया और फिर बीजेपी के बड़े नेताओं के उड़नखटोलों को जमीन पर नहीं उतरने दिया.
जाहिर है, आने वाले दिनों में ममता बनर्जी और बीजेपी के बीच ये तनातनी और बढ़ेगी. लेकिन ये देखना वाकई दिलचस्प होगा कि बीजेपी पश्चिम बंगाल के लिए तैयार किए गए अपने प्लान में किस हद तक कामयाब हो पाएगी?
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