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असली मोदी कौन? कैसे एक 'लेख' ने PM के आसपास अजीब खींचतान का खुलासा किया

बिलकिस बानो मामले के दोषियों को बरी किए जाने को लेकर बीजेपी की शाजिया इल्मी और विहिप के बीच वाकयुद्ध छिड़ गया है.

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2002 में गुजरात दंगों के दौरान हुए बिलकिस बानो बलात्कार मामले में दोषी ठहराए गए लोगों की रिहाई का फैसला हाल ही में सुनाया गया है. इस फैसले के बाद एक दिलचस्प और अप्रत्याशित परिणाम देखने को मिला. इसने हिंदुत्व इको सिस्टम, खास तौर पर विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के भीतर के फ्रिंज एलिमेंट्स के बीच कुछ दरारों को उजागर किया है.

दोषियों की रिहाई के बाद, बीजेपी के भीतर से उठने वाली कुछ आवाजों ने इस फैसले का विरोध किया. इनमें से उल्लेखनीय आवाजें हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार, बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य खुशबू सुंदर और पार्टी प्रवक्ता शाजिया इल्मी की थीं.

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक लेख में इल्मी की आलोचना को व्यक्त किया गया था, इस आर्टिकल ने विहिप (विश्व हिंदू परिषद) की प्रतिक्रियाओं को बढ़ाने का काम किया. विहिप की प्रतिक्रिया पर हम बाद में आएंगे, पहले उन तीन नेताओं की आलोचनाओं के बारे में बात करेंगे जिनके नाम ऊपर दिए गए हैं.

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शांता कुमार, शाजिया इल्मी और खुशबू सुंदर के बोल

2002 के गुजरात दंगों की बात करें तो शांता कुमार लगातार इस घटना के आलोचक रहे हैं, हालांकि कुछ हद तक उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने रुख को नरम रखा. कुमार का विरोध अन्य दो (शाजिया और खुशबू) की अपेक्षा अलग है, उन्होंने (कुमार) इस रिहाई के लिए गुजरात सरकार को जिम्मेदार ठहराया है.

इल्मी और खुशबू ने सामान्य शब्दों में अपनी पीड़ा व्यक्त की और दोनों में से किसी ने भी सीधे तौर पर गुजरात सरकार को दोष नहीं दिया. ऐसा लगता है कि पार्टी के अंदर से आलोचना करके बीजेपी के नुकसान को कंट्रोल करने की कोशिश की गई है.

यहां तक कि इल्मी ने पूरे मामले में गुजरात सरकार को क्लीन चिट भी दे दी है और कहा है कि दोषियों की रिहाई कानूनी प्रक्रिया के तहत हुई है, इसमें कोई पक्षपात नहीं किया गया है.

इल्मी और शांता कुमार, दोनों की टिप्पणियों में जो दिलचस्प रहा वह यह कि जो कुछ हुआ, उससे पीएम मोदी को दूर रखने का प्रयास किया गया.

कुमार ने जोर देकर मोदी से गुजरात सरकार द्वारा की गई गलती को सुधारने का आग्रह किया.

इल्मी ने जो दावा किया वह दिलचस्प था, उनकी टिप्पणी के अनुसार पीएम मोदी और विहिप के बीच कटुता है.

"विहिप के सदस्यों द्वारा रिहा किए गए दोषियों का अभिनंदन किया गया. इसके लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराना विशेष रूप से हैरान करने वाला है, क्योंकि एक तरफ गुजरात बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरी ओर विहिप के बीच कटुता है."
इंडियन एक्सप्रेस में बीजेपी प्रवक्ता शाजिया इल्मी
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विश्व हिंदू परिषद की प्रतिक्रिया

जहां गुजरात सरकार ने कुमार की टिप्पणी पर कोई ध्यान नहीं दिया, वहीं विश्व हिंदू परिषद ने इल्मी की लिखी बातों पर बेहद आपत्ति जताई. इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक लेख में विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रवेश कुमार चौधरी ने इल्मी के आर्टिकल को "विहिप को बदनाम करने की साजिश" बताया.

निश्चित तौर पर इल्मी के लेख में विहिप पर लगे आरोप विवाद और विरोध के प्रमुख कारण हैं. लेकिन एक और पहलू है जो शायद राजनीतिक रूप से और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है. संघर्ष इस बात की कि पीएम मोदी कौन हैं और उनका स्टैंड किसके लिए है.

जहां एक तरफ, इल्मी ने विहिप पर पीएम को बदनाम करने की कोशिश करने का आरोप लगाया. वे लिखती हैं कि "ऑन रिकॉर्ड विहिप पीएम मोदी के खिलाफ बदनामी और मानहानि का अभियान चला रही है, उन पर 'हिंदू स्ट्रीट पावर को नष्ट करने' का आरोप लगा रही है, शायद उन्हें इस बात का अहसास नहीं है कि वे कानून और व्यवस्था के मामलों में उनके कट्टर गैर-पक्षपातपूर्ण व्यवहार को ट्रिब्यूट (श्रद्धांजलि) दे रहे थे."

वहीं दूसरी ओर, विहिप ने मोदी और खुद को एक ही श्रेणी में रखने का प्रयास किया है और दावा किया है कि गुजरात दंगों के बाद दोनों एक सुनियोजित अभियान के शिकार थे.

विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने विहिप के मुखपत्र हिंदू विश्व में एक लेख में लिखा है कि "हमने देखा है कि कैसे गुजरात के मुख्यमंत्री (मोदी) और हिंदू नेता दोनों धर्मनिरपेक्ष और जिहादी ताकतों के हमलों के निशाने पर थे."

यह एक खींचतान है कि पीएम मोदी कहां खड़े हैं.

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तो पीएम मोदी वास्तव में कहां खड़े हैं?

इल्मी और कुछ हद तक शांता कुमार जो कर रहे हैं वह यह है कि वे पीएम मोदी को "लार्जर दैन लाइफ" यानी विशेष शख्स के रूप में पेश कर रहे हैं, जो विचारधारा और राजनीतिक सोच से परे न्याय कर सकते हैं.

इल्मी और खुशबू (दोनों महिलाएं मुस्लिम बैकग्राउंड से हैं) की तैनाती एक और उद्देश्य पूरा करती है वह यह कि पीएम मोदी को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में चित्रित करना, जिससे मुस्लिम महिलाएं न्याय की अपील कर सकती हैं. जिस तरह से तीन तलाक प्रतिबंध को अपराध घोषित करने वाले विधेयक को सरकार द्वारा 'मुस्लिम महिला अधिकार दिवस' के रूप में पेश किया गया था, यह उसी का विस्तार है.

हालांकि यह उससे कहीं ज्यादा है. इल्मी द्वारा मोदी को विहिप जैसे मुख्यधारा के हिंदुत्व संगठनों से अलग होने के रूप में प्रस्तुत कर रही हैं. दिलचस्प बात यह है कि यह बीजेपी प्रवक्ता द्वारा किया जा रहा है और अभी तक सार्वजनिक तौर पर उनकी निंदा नहीं की गई है. भले ही बीजेपी की राजनीति में कोई वास्तविक बदलाव नहीं दिख रहा हो, लेकिन यह मोदी की अधिक समावेशी छवि बनाने का एक प्रयास है.

विहिप की टिप्पणियों से एक काउंटर मिशन का पता चलता है. विहिप नेताओं द्वारा लिखे गए लेख यह प्रदर्शित करने के लिए हैं कि कैसे गुजरात दंगों के लिए पीएम मोदी और विहिप दोनों को जिम्मेदार ठहराया गया था. कैसे इन संगठनों ने मोदी के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और उन्हें हिंदुत्व के संदर्भ से अलग नहीं देखा जा सकता है.

ये एक-दूसरे की विपरीत दिशाओं में रस्सी खींच रहे हैं. एक पक्ष मोदी को ऐसी शख्सियत के तौर पर प्रदर्शित कर रहा है जो विचारधारा से ऊपर उठकर है. वहीं दूसरा पक्ष यह दावा कर रहा है कि वह विचारधारा में अंतर्निहित हैं. एक पक्ष उन्हें वर्तमान में न्याय प्रदान करने वाले के रूप में दिखा रहा है जबकि दूसरा पक्ष उन्हें उनके अतीत की याद दिला रहा है.

इस तरह की खींचतान मोदी के लिए नुकसानदेह नहीं है. वास्तव में अलग-अलग लोगों को अलग-अलग चीजें दिखाना उसके लिए फायदेमंद है. कई मुद्दों पर उनकी चुप्पी इस तरह की अस्पष्टता को और बढ़ा देती है.

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