लोकसभा चुनाव 2019 अब अपने आखिरी दौर में है. पांच चरणों की वोटिंग हो चुकी है और अब महज दो चरणों की वोटिंग बाकी है. ऐसे में जाहिर है कि अब सियासत चुनाव प्रचार तक सीमित नहीं रह गई है. सियासत के मंझे हुए खिलाड़ी अब 23 मई के बाद उभरने वाली संभावित तस्वीर को समझने और डिकोड करने में जुट गए हैं.
हालांकि, सत्ताधारी दल और विपक्ष दोनों ही अब तक हो चुकी पांच चरणों की वोटिंग को अपने पक्ष में बताने में लगे हैं, लेकिन अंदरखाने वे किसी भी तरह की परिस्थिति से निपटने के लिए खुद को तैयार करने में लगे हैं.
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पांचवें चरण के चुनाव के बाद नेताओं का आपसी संवाद
पांचवें चरण की वोटिंग के बाद नेताओं में आपसी संवाद शुरू हो गया है. हाल ही में तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने दक्षिण के नेताओं से मुलाकात की, जो नए सियासी समीकरणों के तैयार होने की दिशा में इशारा कर रही है.
वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओडिशा दौरे के दौरान मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की तारीफ कर और बीएसपी सुप्रीमो मायावती प्रति नरम रुख दिखाकर नए सियासी समीकरणों की ओर इशारा कर दिया है. दरअसल, पांच चरणों के चुनाव के बाद गुणा-भाग का दौर जारी है. अगर किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है तो ऐसे में सियासी उठापटक और तेज हो सकती है. इसके लिए सभी दल पहले से ही अपने संभावित साथियों तक पहुंच बनाने में जुट गए हैं.
इसके पीछे बड़ा कारण ये भी है कि आखिरी दो चरणों में 543 में से 118 सीटों की वोटिंग बची है. बाकी राज्यों में वोटिंग हो चुकी है. इसलिए वे खाली समय का इस्तेमाल सियासी संभावनाएं तलाशने में कर रहे हैं. विपक्ष की ओर से चंद्र बाबू नायडू और एचडी देवगौड़ा इसकी कमान संभाल रहे हैं. दोनों ही नेता 21 मई को दिल्ली में होने वाली बैठक में सभी विपक्षी दलों को बुलाने की कोशिश कर रहे हैं.
क्षेत्रीय दलों की हैसियत बढ़ी
बीजेपी और कांग्रेस को चुनाव में स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की चर्चा के बीच क्षेत्रीय दलों को अपनी हैसियत बढ़ती दिख रही है. बीते मंगलवार को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला, तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेता कांग्रेस पार्टी के साथ दिल्ली में एकजुट दिखे. वहीं, बीजेपी और शिवसेना ने भी बहुमत न मिलने की स्थिति में नए सहयोगियों की तलाश शुरू कर दी है.
उधर, उत्तर प्रदेश में मायावती और अखिलेश यादव के तेवर बदले हुए नजर आ रहे हैं. तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर तीसरे मोर्चे की संभावनाएं तलाश रहे हैं. केसीआर ने 6 मई को केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन से मुलाकात की. इसके अलावा वह डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन और कर्नाटक के सीएम एचडी कुमार स्वामी के संपर्क में भी हैं. आंध्र में वाईएसआर को ज्यादा सीटों की चर्चाओं के बीच कांग्रेस की नजर जगनमोहन रेड्डी पर भी है.
पुराने सहयोगियों को रोकने और नए सहयोगियों को मनाने की जिम्मेदारी
सहयोगियों के छिटकने की आशंका दूर करने और नए सहयोगियों को जुटाने के लिए बीजेपी ने अपनी कोशिशें तेज कर दी हैं. सूत्रों की मानें तो केसीआर को साधने की जिम्मेदारी बीजेपी महासचिव मुरलीधर राव को दी गई है.
इसी तरह जेडीयू के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर को वाईएसआर नेता जगनमोहन रेड्डी को मनाने की जिम्मेदारी दी गई है. वहीं बीजेपी नेता राममाधव को उत्तर-पूर्व के सहयोगी दलों के साथ-साथ दूसरे दलों से भी संपर्क साधने को कहा गया है.
आखिरी दो चरणों की 118 सीटों पर NDA के सामने 2014 का प्रदर्शन दोहराने की चुनौती
आखिरी दो चरणों की 118 सीटों में से एनडीए ने साल 2014 में 103 सीटें जीती थीं. इनमें से उत्तर प्रदेश की सभी 27 सीटें, दिल्ली की सभी 7 सीटें, हिमाचल प्रदेश की सभी 4 सीटें और मध्य प्रदेश की 15 सीटें थीं. ऐसे में अगर अब बीजेपी को 2014 में मिली 282 सीटें का प्रदर्शन दोहराना है तो उसके सामने आखिरी दो चरणों की ज्यादातर सीटों को बरकरार रखने की चुनौती है.
यही कारण है कि आखिरी दो चरणों को 'मेक or ब्रेक' चरण माना जा रहा है. आखिरी दो चरणों के तहत 12 मई को 59 और 19 मई को 59 लोकसभा सीटों पर चुनाव है.
चुनाव का आखिरी दौर, दलों ने प्रचार अभियान को दी धार
यही कारण है कि बीजेपी आखिरी दो चरणों में हाई वोल्टेज चुनाव प्रचार करने की रणनीति पर काम कर रही है. दूसरी और विपक्ष को भी इन्हीं दो चरणों बीजेपी को पीछे धकेलने का मौका दिख रहा है. उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी की दो से तीन रैलियां बढ़ाई जा सकती हैं. उधर, मायावती और अखिलेश भी आखिरी दौर में अपनी रैलियां बढ़ा सकते हैं. समाजवादी पार्टी से जुड़े सूत्रों की मानें तो इस बार गठबंधन की रणनीति ये है कि जहां पीएम मोदी रैली करें, उसके बाद मायावती और अखिलेश भी वहां संयुक्त रैली करें.
उदाहरण के लिए 9 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आजमगढ़ में रैली कर रहे हैं, तो 10 मई को मायावती और अखिलेश गोरखपुर में संयुक्त रैली करेंगे.
आखिरी के दो चरणों की 118 सीटें ज्यादातर शहरी क्षेत्रों की हैं. इनमें दिल्ली की सभी 7 सीटों के अलावा पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और बिहार के शहरी क्षेत्र हैं. ऐसे में सभी दल चुनाव प्रचार की रणनीति इसी हिसाब से तय कर रहे हैं. शहरी क्षेत्रों में रैलियों की जगह बड़े नेताओं के रोड शो ज्यादा लोकप्रिय हो रहे हैं. बीजेपी सूत्रों के मुताबिक पीएम मोदी का चुनाव प्रचार आखिरी हफ्ते में और आक्रामक दिखेगा.
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