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राहुल गांधी की तरह इंदिरा-सोनिया गांधी की भी सांसदी गई थी, कैसे वापसी हुई थी?

Rahul Gandhi Disqualified: राहुल उसी अध्यादेश से बच जाते जिसे 10 साल पहले बकवास बताया था.

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इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी के बाद अब राहुल गांधी की भी सदस्यता रद्द हो गई है. राहुल, गांधी परिवार के तीसरी पीढ़ी के नेता हैं, जिन्हें लोकसभा की सदस्यता से हाथ धोना पड़ा है. उन्हें 'मोदी सरनेम' वाले बयान पर 2 साल की जेल की सजा सुनाई गई, जिसके बाद उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई. हालांकि, कोर्ट ने उनकी सजा पर 30 दिनों के लिए रोक लगा दिया था और उन्हें ऊपरी अदालत में जाने की छूट दी थी. लेकिन, उससे पहले ही राहुल गांधी की सदस्यता छीन ली गई. अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि क्या राहुल गांधी भी दादी इंदिरा और मां सोनिया की तरह ही मजबूती से उभर कर सामने आएंगे?  

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सियासत में आज बात गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों की जिनको, किसी न किसी वजह से लोकसभा की सदस्यता गंवानी पड़ी. 

साल 1971, देश में 5वां लोकसभा चुनाव होना था. चुनाव के तारीखों की घोषणा कर दी गई. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रायबरेली से पर्चा दाखिल किया. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की ओर से राजनारायण ने भी इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी. 7 मार्च को चुनाव हुआ. 10 मार्च को चुनावी नतीजे आए. इंदिरा गांधी ने 1 लाख से भी ज्यादा वोटों से राजनारायण को हरा दिया. राजनारायण ने इंदिरा गांधी पर चुनाव में भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाया और कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

राजनारायण ने इलाहाबाद हाई कोर्ट को चुनाव में भ्रष्टाचार की एक लंबी फेहरिश्त सौंपी. राजनारायण की लंबी फेहरिश्त में से इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ज्यादातर को खारिज कर दिया और 2 सबूत पर ही इंदिरा गांधी को दोषी पाया. इनमें सरकार की मदद से स्टेज- लाउडस्पीकर लगवाना और गजेटेड अफसर को चुनावी एजेंट बनाना. हाई कोर्ट ने इसे लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के सेक्शन 123 (7) का उल्लंघन माना और 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर दिया और इसके साथ ही उनपर 6 साल का प्रतिबंध लगा दिया.

24 जून 1975, इंदिरा गांधी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट की छुट्टियां थी लेकिन देश की उच्चतम न्यायालय ने हाई कोर्ट के फैसले पर सशर्त स्टे लगाया. इंदिरा गांधी को पीएम के पद पर रहने की अनुमति दी गई, लेकिन संसद में मतदान करने से रोक दिया गया.
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25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लगा दी गई. 7 नवंबर 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया. 1977 में इमरजेंसी खत्म होने के बाद लोकसभा चुनाव की घोषणा की गई. इंदिरा गांधी ने फिर से रायबरेली से ही पर्चा दाखिल किया और राजनारायण उनके खिलाफ उतरे.

जनता पार्टी के नेतृत्व में राजनारायण ने इंदिरा गांधी को 50 हजार से ज्यादा वोटों के अंत से हरा दिया. इसके साथ ही कांग्रेस को बुरी तरह से हार का सामने करना पड़ा. जनता पार्टी की सरकार बनी और प्रधानमंत्री बने मोरारजी देसाई. लोकसभा में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए इंदिरा गांधी ने कर्नाटक के चिकमंगलूर को चुना. 1978 में चिकमंगलूर से उपचुनाव जीतकर वो लोकसभा पहुंची.

18 नवंबर 1978 को इंदिरा गांधी के खिलाफ एक प्रस्ताव लाया गया कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान सरकारी अफसरों का अपमान किया है और अपने पद का दुरुपयोग किया है. इस प्रस्ताव को खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई लेकर आए थे. प्रस्ताव पास हो गया. 7 दिनों की लंबी बहस के बाद इंदिरा गांधी के खिलाफ विशेषाधिकार समिति बनी, जिसे इंदिरा के खिलाफ पद के दुरुपयोग मामले सहित कई आरोपों पर जांच करके एक महीने में रिपोर्ट देनी थी. विशेषाधिकार समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची कि इंदिरा के खिलाफ लगे आरोप सही हैं, उन्होंने विशेषाधिकारों का हनन किया है और सदन की अवमानना भी की, लिहाजा उन्हें संसद से निष्कासित किया जाता है.

संसद की सदस्याता रद्द होने के बाद इंदिरा गांधी ने रैलियां करना और लोगों के बीच जाना शुरू कर दिया. इधर, विपक्षी एकता में टूट की वजह से 3 साल बाद जनता दल की सरकार गिर गई. साल 1980 में लोकसभा के चुनाव हुए. इंदिरा गांधी ने बड़ी ही मजबूती के साथ चुनाव लड़ा और कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाकर खड़ा कर दिया और प्रधानमंत्री बनीं.
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अब आता है साल 2004 का लोकसभा चुनाव. तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में UPA की सरकार बनती है और बीजेपी नेतृतव NDA की हार होती है. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया जाता है. 2 साल तक सब ठीक चल रहा होता है, लेकिन साल 2006 में लाभ के पद का मामला संसद में जोरशोर से उठता है. ये आरोप तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ लगाए जाते हैं.

सोनिया गांधी पर आरोप लगाए जाते हैं कि सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद थीं. इसके साथ ही वह UPA सरकार के समय गठित राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की चेयरमैन भी थीं, जिसे 'लाभ का पद' करार दिया जाता है. इसकी वजह से सोनिया गांधी को लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ता है. हालांकि, वह दोबारा रायबरेली से चुनाव लड़कर संसद पहुंचती हैं और कांग्रेस की कमान मजबूती से थामें रखती हैं. इसका परिणाम ही होता है कि साल 2009 में दोबारा UPA की सरकार बनती है, और प्रधानमंत्री फिर से मनमोहन सिंह को बनाया जाता है.

अब आता है साल 2013. मनमोहन सिंह सरकार एक अध्यादेश लेकर आती है, जिसे राहुल गांधी बकवास बताते हुए फाड़कर फेंक देने की बात कहते हैं और उसका विरोध करते हैं, अब उसी अध्यादेश की बात कर लेते हैं. 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) को रद्द कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट का फैसला मशहूर लिली थॉमस बनाम भारत संघ के नाम से चर्चित हुआ था. केरल के वकील लिली थॉमस ने जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसमें इस उपबंध को रद्द करने की मांग की गई थी. इसके पक्ष में तर्क दिया गया कि यह धारा दोषी सांसदों और विधायकों की सदस्यता बचाती है.

सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई 2013 को लिली थॉमस बनाम भारत संघ मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर कोई विधायक, सांसद या विधान परिषद सदस्य किसी भी अपराध में दोषी पाया जाता है और इसमें उसे कम से कम दो साल की सजा होती है तो ऐसे में वो तुरंत अयोग्य घोषित माना जाएगा.
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इस फैसले के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली UPA सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के काट के तौर पर एक अध्यादेश लेकर आती है. इस अध्यादेश में सांसदों और विधायकों को आपराधिक मामलों में सजा सुनाए जाने पर अयोग्य ठहराए जाने से राहत की व्यवस्था की गई थी. अध्यादेश को मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कैबिनेट से पास किया गया और मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया. लेकिन, राहुल गांधी ने इस अध्यादेश का विरोध किया और एक  प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इस अध्यादेश को बकवास बताते हुए इसकी कॉपी फाड़ देने की बात कही. बाद में इस अध्यादेश को कैबिनेट ने वापस ले लिया था.

अब इसी कानून की वजह से राहुल गांधी की सदस्यता रद्द कर दी गई है. राहुल, गांधी परिवार के तीसरे सदस्य हैं जिनकी सदस्यता को रद्द कर दिया गया है. इससे पहले दादी इंदिरा और मां सोनिया गांधी की सदस्यता रद्द की गई थी. लेकिन, उस समय कांग्रेस की स्थिति मजबूत थी लिहाजा, इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी दोनों ने ही जो भी राजनीतिक दांव-पेच सहे और उठा पटक देखे, उसके बाद भी उन्होंने दोबारा मजबूती से वापसी की. सवाल कि क्या राहुल गांधी भी ऐसा कर पाएंगे?

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