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राजस्थान विधानसभा चुनाव: BJP के बागियों से कैसे निपटेंगी राजे?

बीजेपी ने पुराने घोड़ों पर लगाया है दांव

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वसुंधरा राजे ने टिकट बंटवारे का टेस्ट अच्छे नम्बरों से पास कर लिया है. राजस्थान बीजेपी में साफ तौर पर उनकी चली है. राजे ने टिकट बंटवारे के मुद्दे पर उनसे भिड़ रहे बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पर स्पष्ट रूप से जीत हासिल कर ली है.

अब तक बीजेपी ने दो सूचियों में 162 योद्धाओं को चुनाव मैदान में उतारा है, इनमें राजे के वफादार भरे पड़े हैं.

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बीजेपी ने पुराने घोड़ों पर लगाया है दांव

दूसरे गुणा-भाग को छोड़ दें, तो भी बड़ी संख्या में वर्तमान विधायकों को टिकट नहीं देने की शाह की योजना को नजरअंदाज करने के पीछे मुख्य वजह पार्टी में सम्भावित बगावत को रोकना था. यह बगावत बड़ी संख्या में विधायकों को साइडलाइन कर दिए जाने से फूट सकती थी.

पार्टी के पुराने वफादारों पर विश्वास जताते हुए राजे को उम्मीद थी कि जिन नेताओं को टिकट नहीं मिले हैं, उनसे भीतरघात के खतरे को वो विफल कर देंगी. मगर वो उम्मीद खत्म हो चुकी है, क्योंकि दर्जनभर विधायक और राजे के कई मंत्रियों ने पिछले दिनों खुले तौर पर पार्टी से बगावत की है.

बगावत का झंडा बुलन्द करने वाले पहले व्यक्ति थे सुरेद्र गोयल. वो राजे कैबिनेट में लोक स्वास्थ्य अभियंता विभाग के मंत्री थे और पांच बार विधायक रह चुके थे. पहली सूची में नाम नहीं देखने के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी.

इस्तीफे के बाद पार्टी से खुद के अलग होने का इल्जाम उन्होंने आरएसएस पर लगाया और कहा:

पार्टी ने मेरे साथ विश्वासघात किया. केवल आरएसएस मुझसे नाराज था, क्योंकि मैंने चापलूसी नहीं की. लेकिन मेरे निर्वाचन क्षेत्र के लोग मेरी ताकत हैं और उनके समर्थन से अब मैं निर्दलीय संघर्ष करूंगा.
सुरेद्र गोयल, राजस्थान में बीजेपी के बागी नेता

हरीश मीणा की बगावत से हिल गया है बीजेपी का ‘मीणा’ वोटबैंक

बीजेपी में छोटे बागी बनकर कई लोगों ने गोयल की नकल की. पार्टी छोड़ने वाले प्रमुख नामों में दौसा से सांसद हरीश मीणा सबसे प्रमुख हैं. राजस्थान में डीजीपी रह चुके हरीश मीणा कांग्रेस में चले गये, जो किरोड़ीलाल मीणा के प्रभाव को चुनौती देना चाहते हैं.

मीणा समुदाय में किरोड़ी मजबूत पकड़ रखते हैं. वो दोबारा बीजेपी में शामिल हुए और उन्हें राज्यसभा सांसद बना दिया गया. मीणा समुदाय पूर्वी राजस्थान की 30 सीटों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. लेकिन हरीश मीणा के कांग्रेस में जाने के बाद इस बड़े वोटबैंक को लुभाने की बीजेपी की चाहत चकनाचूर हो चुकी है.

बीजेपी को राजस्थान में नहीं मिलेगा मुसलमानों से दूरी का फायदा

बीजेपी छोड़ने वाले एक और बड़े नेता हैं हबीबुर रहमान. नागौर से वे 5 बार विधायक रहे थे, जिन्हें इसलिए टिकट नहीं दिया गया, क्योंकि कथित रूप से बीजेपी की योजना मुस्लिम उम्मीदवार खड़े करने की नहीं है. रहमान तुरंत कांग्रेस में चले गये. कांग्रेस ने अब उन्हें पार्टी उम्मीदवार बना दिया है.

ऐसा लगता है कि मुस्लिम उम्मीदवार से दूर रहना आरएसएस के हार्डकोर हिन्दुत्व के एजेंडे का हिस्सा है. बीजेपी ने राजस्थान ने हाल के वर्षों में जो ध्रुवीकरण की राजनीति की है, यह उसी दिशा में एक प्रयास है.

विडम्बना यह है कि कैबिनेट में राजे के सबसे नजदीकी रहे PWD मंत्री यूनुस खान का भी नाम बीजेपी की दूसरी सूची से गायब रहा.

आखिरी सच्चाई यही है कि आखिरकार उनकी ‘बलि’ ले ली गयी. कई लोगों की इस पर बारीक नजर थी कि उत्तर प्रदेश की तर्ज पर मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट नहीं देने की आरएसएस की अघोषित योजना के बावजूद राजे अपने पसंदीदा व्यक्ति के लिए टिकट का इंतजाम कर पाती हैं या नहीं.

पहली सूची जारी होने के बाद से दर्जनभर से ज्यादा जिलों में बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं का विरोध सामने आया है. जयपुर में पार्टी कार्यालय पर कई राउंड प्रदर्शन हो चुके हैं और प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी और बहसबाजी की है. जयपुर में बीजेपी मुख्यालय की 24 घंटे सुरक्षा के लिए बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है.

ठगे हुए महसूस कर रहे हैं बीजेपी कार्यकर्ता

उन मंत्रियों और विधायकों को छोड़ दें, जिन्हें टिकट नहीं मिला है, तो भी बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता टिकट बंटवारे से दुखी हैं. हालांकि इसके कारण बिल्कुल अलग हैं. वर्षों से इन लोगों ने स्थानीय विधायकों और मंत्रियों के लिए शिकायतों को सुना है और इन्हें उम्मीद थी कि बदलाव होंगे. अमित शाह की वास्तविक योजना बड़ी संख्या में वर्तमान विधायकों को टिकट नहीं देने और नये चेहरे को सामने लाने की थी.

2018 में सालभर यही संदेश पार्टी कार्यकर्ताओं को दिया गया था कि बीजेपी के वर्तमान 160 विधायकों में से आधे को टिकट नहीं मिलेगा. लेकिन अब नेतृत्व बहुत ज्यादा विधायकों को बदलने से कतरा रही है. इस बात से पार्टी के कार्यकर्ता नाराज हैं. 

जयपुर में एक टिकटार्थी ने कई पार्टी कार्यकर्ताओं के गुस्से को आवाज दी, “अगर नतीजों को नजरअंदाज ही करना है, तो क्यों हमारी पार्टी के शीर्ष नेता अलग-अलग स्तरों पर सर्वे कराते है? जब ज्यादातर जगहों पर सर्वे के नतीजे स्थानीय विधायकों के खिलाफ थे, तो उन्हें दोबारा चुनाव लड़ाने का क्या तुक बनता है? जिन नेताओं ने इस चुनाव में सबकुछ बदल देने का वादा किया था, उन्होंने हमें धोखा दिया है“

अंदर ही अंदर चिन्ता बढ़ रही है, लेकिन राजे का दावा है कि जल्द ही इन प्रदर्शनों पर नियंत्रण हो जाएगा. मगर एक ऐसे समय में जबकि राजे राजस्थान में सत्ता को बनाए रखने की कोशिश में जुटी हैं, बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने और पार्टी कार्यकर्ताओं में गुस्से की वजह से बीजेपी के लिए माहौल खराब हो रहा है. लम्बे समय से जुड़े नेताओं के पद और पार्टी छोड़ने से राजे का काम बहुत आसान नहीं रह गया है.

हतोत्साहित कार्यकर्ताओं के साथ मजबूत नेता

वसुंधरा ने शाह के साथ भले ही लड़ाई जीत ली हो और बीजेपी उम्मीदवार चुनने की प्रक्रिया में वह भारी पड़ रही हों, लेकिन राजस्थान में अपने विरुद्ध बढ़ते प्रदर्शनों से निपटना उनके लिए काफी मुश्किल हो गया है.

बीजेपी ने तय कर लिया है कि अब राजे के साथ ही नैया पार करनी है या फिर नैया को डुबोना है. पार्टी को उम्मीद है कि आम लोगों से राजे का जुड़ाव और उनके करिश्मे से वह पिछले 5 साल के एन्टी इनकम्बेन्सी पर जीत हासिल कर लेगी.

यह दांव वोटरों को रिझाती है या नहीं, इसका पता तभी चलेगा जब 11 दिसम्बर को नतीजे आएंगे. युद्ध के मैदान में प्रवेश करते हुए बीजेपी के पास ताकतवर महिला सेनापति तो है, लेकिन कार्यकर्ता ऐसे हैं, जिनमें उत्साह नहीं है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजस्थान की राजनीति के विशेषज्ञ हैं, जो एनडीटीवी में स्थानीय सम्पादक रहे हैं. वर्तमान में वे राजस्थान यूनवर्सिटी में पत्रकारिता के प्रोफेसर हैं और मास कम्युनिकेशन के विभागाध्यक्ष हैं. उनका ट्विटर है @rajanmahan. इस आर्टिकल में छपे विचार लेखक के हैं. इसमें क्‍विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)

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