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राजस्थान में आज किसका शुक्र,चलेगा पायलट का प्लान या गहलोत का जादू?

राजस्थान को लेकर उठने वाले हर सवाल का जवाब

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राजस्थान में सियासी अखाड़े की लड़ाई अब कोर्ट तक पहुंच गई है. स्पीकर सीपी जोशी के नोटिस के खिलाफ हाईकोर्ट गए 19 विधायकों की याचिका पर शुक्रवार भी सुनवाई होनी है. समय है दोपहर का और फिर शाम स्पीकर कोई फैसला कर सकते हैं. तो अब सवाल ये है कि ये विधायक अयोग्य घोषित होते हैं तो क्या होगा, और नहीं होते हैं तो क्या होगा?

दरअसल स्पीकर ने पायलट समेत 19 बागी विधायकों को नोटिस जारी किया है और पूछा कि वो व्हिप जारी होने के बावजूद विधायक दल की बैठक में क्यों नहीं पहुंचे? साथ ही पूछा गया कि आखिर क्यों उन्हें अयोग्य घोषित न किया जाए. जवाब देने के लिए दो दिन का वक्त दिया गया. लेकिन नोटिस जारी होने के बाद बागी विधायकों को इस बात की चिंता सताने लगी कि स्पीकर दो दिन बाद उन्हें अयोग्य घोषित कर देंगे.

इसीलिए सबसे पहले दो दिग्गज वकीलों हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी को मैदान में उतारा गया और बागी विधायक हाईकोर्ट पहुंच गए. मांग थी कि जो नोटिस स्पीकर ने जारी किया है वो संवैधानिक रूप से गलत है, इसीलिए इसे तुरंत खारिज किया जाए. 16 जुलाई को हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए सचिन पायलट कैंप को नई याचिका फाइल करने के लिए वक्त दिया है. अब मामले की सुनवाई राजस्थान हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच करेगी.

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क्या गहलोत सरकार सेफ है?

सचिन पायलट की बगावत के बाद सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या राजस्थान सरकार सुरक्षित है या नहीं. लेकिन इस सवाल का जवाब भी अब विधायकों के भाग्य पर आने वाले फैसले पर ही टिका है. क्योंकि फिलहाल राजस्थान कांग्रेस के पास 107 विधायक थे. ये पायलट के धड़े के अलग होने से पहले का आंकड़ा है. अब अगर पायलट समेत 19 विधायकों को कम कर दिया जाए तो कांग्रेस के पास 88 विधायक रह जाते हैं. अब इसमें सीपीएम और भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो-दो विधायक और आरएलडी के एक विधायक को जोड़ दें तो आंकड़ा 93 तक पहुंचता है. इसके बाद 13 निर्दलीय विधायकों पर सब कुछ निर्भर करेगा. अगर सभी निर्दलीय गहलोत के साथ रहते हैं तो सरकार को कोई खतरा नहीं होगा. लेकिन अगर इनमें से विधायक टूटते हैं तो फिर सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.

विधायकों पर फैसले का क्या होगा असर?

अब दूसरा सवाल ये है कि बागी विधायकों पर कोर्ट के फैसले का क्या असर होगा. तो सरल भाषा में समझें तो अगर सभी 19 विधायक अयोग्य घोषित हो जाते हैं तो गहलोत सरकार के लिए ये एक जीत की तरह होगा. वहीं अगर फैसला विधायकों के पक्ष में गया तो राजस्थान सरकार डामाडोल स्थिति में होगी.

विधायकों के अयोग्य घोषित होने की स्थिति

अगर 200 सदस्यीय विधानसभा से 19 विधायक कम होते हैं, यानी अगर अयोग्य घोषित होते हैं तो विधानसभा की संख्या घटकर 181 हो जाएगी. जिसके बाद बहुमत का आंकड़ा 91 होगा. कांग्रेस के पास तब 88 विधायक अपने होंगे. यानी उसे अन्य दलों के अलावा निर्दलीय विधायकों का साथ भी चाहिए होगा. वहीं बीजेपी के पास 72 अपने और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के तीन विधायक हैं. यानी बीजेपी फिलहाल 75 के आंकड़े पर है. अब अगर विधायक अयोग्य घोषित हुए तो बीजेपी का 91 के आंकड़े को छू पाना मुश्किल होगा.

विधायकों के हक में फैसला आने की स्थिति

लेकिन अब दूसरी सूरत में अगर देखें, यानी अगर विधायकों के हक में फैसला आता है तो गहलोत सरकार कैसे खतरे में आएगी. ऐसे में 19 बागी विधायक बीजेपी के पक्ष में वोट कर सकते हैं. यानी बीजेपी की सदन में संख्या 75 से बढ़कर अब 94 तक पहुंच जाएगी. ऐसे में भले ही बीजेपी के पास बहुमत नहीं दिख रहा, लेकिन इसके बाद तोड़फोड़ के आसार काफी ज्यादा हैं. बीजेपी निर्दलीय विधायकों को तोड़कर सत्ता की चाबी अपने हाथों में ले सकती है. यानी बीजेपी अगर सिर्फ 7 विधायकों को तोड़ती है तो गहलोत सरकार का गिरना तय है.

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स्पीकर के क्या हैं अधिकार

अब अगर हाईकोर्ट का फैसला स्पीकर के पक्ष में आता है तो स्पीकर के अधिकारों की चर्चा होगी. स्पीकर के पास ऐसे मे विधायकों से सवाल करने का अधिकार है कि वो विधायक दल की बैठक में शामिल क्यों नहीं हुए. इसके अलावा व्हिप का अवहेलना करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई के भी अधिकार हैं. स्पीकर का विधायकों के इस्तीफे से संतुष्ट होना जरूरी है. इसके बाद स्पीकर चाहें तो विधायकों को पूरे कार्यकाल के लिए अयोग्य घोषित कर सकते हैं.

ठीक ऐसा ही कर्नाटक में देखने को मिला था. जहां कई बागी विधायकों को स्पीकर ने एक साथ अयोग्य घोषित कर दिया था. हालांकि स्पीकर के इस फैसले के खिलाफ बागी विधायक सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. जिन्हें बाद में उपचुनाव लड़ने की इजाजत दी गई थी.

अब आखिर में बात करते हैं सचिन पायलट की. अब तक जितनी भी कहानी आपको बताई गई है उसी से पायलट का भविष्य तय होगा. यानी अगर सभी बागी विधायक अयोग्य घोषित होते हैं तो पायलट के लिए "घर का ना घाट का" जैसे हालात होंगे. क्योंकि ऐसी स्थिति में अगर वो बीजेपी में जाने की सोचते हैं तो उन्हें वो ओहदा नहीं मिल पाएगा. वहीं पार्टी में वापसी की राह कांटों भरी होगी. क्योंकि वो नाराज होकर गए थे और कुछ शर्तें रखी थीं, बिना उन शर्तों को माने वापस आना उनके लिए खुद की साख दांव पर लगाने जैसा होगा. इसके बाद वो अलग पार्टी बनाने की सोच सकते हैं. 18 विधायकों के साथ वो राजस्थान में तीसरा मोर्चा खड़ा कर सकते हैं, सरकार नहीं गिरने की स्थिति में यही उनके लिए आखिरी रास्ते के तौर पर देखा जा रहा है.

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