महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भीमा-कोरेगांव मामले की जांच को NIA को सौंपे जाने को सही कदम बताया है. फडणवीस का कहना है कि ऐसा करने से कथित अर्बन नक्सल का पर्दाफाश होगा.
देवेंद्र फडणवीस ने कहा " यह सही फैसला है क्योंकि यह मामला महाराष्ट्र तक ही सीमित नहीं है, इसका असर पूरे देश में दिखा हैं. केंद्र सरकार ने सही कदम उठाया है, इससे शहरी नक्सलियों का पर्दाफाश होगा.”
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार को बताया कि, NIA 2018 भीमा-कोरेगांव मामले की जांच कर रही है. यह जांच कई राज्यों में फैली हुई है.
वहीं महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि, ‘राज्य सरकार की सहमति के बिना भीमा-कोरेगाव हिंसा मामले की जांच एनआईए को सौंप दी है. मैं इसकी कड़ी निंदा करता हूं.’
एनसीपी प्रमुख शरद पवार पहले ही गिरफ्तारियों की SIT जांच की मांग कर चुके हैं. उधर शिवसेना का कहना है कि भीमा कोरेगांव मामले में पुणे पुलिस ने सबूतों के आधार पर ही कार्रवाई की है. साफ है कि सरकार में ही इस मसले को लेकर मतभेद है.
1 जनवरी 2018 को पुणे के भीमा कोरेगांव कोरेगाव में दो गुटों में हिंसक झड़प हुई थी. पुणे पुलिस ने इस मामले की तफ्तीश की और 9 एक्टिविस्ट को गिरफ्तार किया. पवार का आरोप ये है कि तत्कालीन फडणवीस सरकार की कार्रवाई बदले की भावना से की गई थी.
क्या है पूरा मामला?
31 दिसंबर 2017 को पुणे में एल्गार परिषद का आयोजन किया गया था. 250 साल पहले दलितों और मराठों के बीच हुए युद्ध में दलितों की जीत का जश्न मनाने के लिए हर साल दलित यहां जमा होते हैं. इस कार्यक्रम में कुछ भड़काऊ भाषण देने का आरोप है.
इसी के अगले दिन हिंसा हुई थी. सरकार का आरोप था कि कार्यक्रम आयोजित करने वालों के माओवादियों से संबंध हैं. इस बिनाह पर पुलिस ने सुधीर धवले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, महेश राउत, सोमा सेन,अरुण परेरा समेत 9 लोगो को गिरफ्तार किया था, जिन्हें आज भी जमानत नहीं मिल सकी है.
एनसीपी और कांग्रेस गिरफ्तारियों को गलत बता रही है तो शिवसेना विधायक और पूर्व गृह राज्य मंत्री दीपक केसरकर ने कहा है कि पुणे पुलिस ने कार्रवाई सबूतों के आधार पर की थी. कुल मिलाकर भीमा कोरेगांव मामले पर महाराष्ट्र की सहयोगी पार्टियों के बीच मतभेद साफ नजर आ रहा है.
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