राजस्थान 'राइट टू हेल्थ' लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंगलवार, 4 अप्रैल को ट्वीट कर बताया कि मुझे खुशी है कि आखिरकार सरकार और डॉक्टरों के बीच स्वास्थ्य के अधिकार पर एक समझौता हो गया है.
मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि 'मुझे उम्मीद है कि भविष्य में भी डॉक्टर-मरीज का रिश्ता ऐसा ही बना रहेगा.'
राजस्थान IMA के अध्यक्ष डॉ. सुनील चुघ ने फिट को बताया कि मंगलवार की रैली के बाद, प्रदर्शनकारी डॉक्टर एक बैठक करेंगे और आधिकारिक रूप से विरोध वापस लेंगे.
सरकार और डॉक्टरों के बीच क्या समझौता हुआ?
समझौते के अनुसार ‘स्वास्थ्य का अधिकार’ लागू करने के प्रथम चरण में 50 बेड से कम के निजी मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल को इस कानून के दायरे से बाहर रखा जाएगा.
जिन निजी अस्पतालों ने सरकार से कोई रियायत नहीं ली है या अस्पताल के भू-आंवटन में कोई छूट नहीं ली है, उन पर भी इस कानून की बाध्यता नहीं होगी.
समझौते के अनुरूप प्राइवेट मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल्स, पीपीपी मोड पर संचालित अस्पताल, निःशुल्क या अनुदानित दरों पर भू-आवंटन वाले अस्पताल, ट्रस्ट द्वारा संचालित वे अस्पताल जिन्हें रियायती या अनुदानित दरों पर भूखण्ड प्राप्त हुए हैं, इन सभी अस्पतालों पर यह कानून लागू होगा.
प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर चल रहे अस्पतालों का 'कोटा मॉडल' के अनुरूप नियमितीकरण पर विचार किया जाएगा. कोटा मॉडल के तहत उन अस्पतालों के भवनों को नियमों में शिथिलता प्रदान कर नियमित करने पर विचार किया जाएगा, जो आवासीय परिसर में चल रहे हैं.
आंदोलन के दौरान दर्ज पुलिस और अन्य केस वापस लिए जाएंगे.
निजी अस्पतालों को लाइसेंस एवं अन्य स्वीकृतियां जारी करने के लिए सिंगल विण्डो सिस्टम लाए जाने पर विचार किया जाएगा.
निजी अस्पतालों को फायर एनओसी प्रत्येक पांच साल में देने के बिंदु पर विचार किया जाएगा.
भविष्य में स्वास्थ्य के अधिकार कानून से संबंधित नियमों में बदलाव आईएमए के प्रतिनिधियों से चर्चा कर किया जाएगा.
डॉक्टर बिल के खिलाफ क्यों थे?
प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों का आरोप था कि बिल के परिणामस्वरूप निजी अस्पतालों के कामकाज में नौकरशाही नियंत्रण और हस्तक्षेप बढ़ सकता है
बिल ने स्पष्ट नहीं किया कि 'आपातकालीन देखभाल' से इसका क्या मतलब है
मरीजों के नि:शुल्क इलाज के लिए निजी चिकित्सकों को कब और कैसे प्रतिपूर्ति मिल सकती है, इसका कोई उल्लेख नहीं है
इस पर कोई स्पष्टता नहीं था कि सरकार किसके लिए भरपाई करेगी. क्या सरकार परिवहन, उपकरण, आदि की लागत के लिए निजी क्लीनिकों की भरपाई करेगी?
डॉक्टरों को आपातकालीन मामलों का इलाज न करने के लिए गलत तरीके से मुकदमा चलाने का डर था. क्या होगा यदि एक छोटा क्लिनिक आपातकालीन मामले को संभालने के लिए तैयार नहीं है? क्या इसके लिए भी डॉक्टर को जिम्मेदार ठहराया जाएगा?
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