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वेबकूफ राउंडअप: पेट्रोल रेट,कांग्रेस-BJP से जुड़े झूठे दावों का सच

पिछले सप्ताह हमने किन-किन फेक खबरों का फैक्ट चेक किया, आपको जानना जरूरी है.  

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हर रोज कुछ न कुछ ऐसा वायरल होता है जो भ्रामक और गलत होता है. इन झूठे दावों को ऐसे पेश किया जाता है मानो ये सच हों. ऐसे दावों की पड़ताल करके क्विंट आप तक सही जानकारी पहुंचाता है और आपको भ्रामक खबरों के जाल से बचाता है. बीजेपी शासित राज्यों में पेट्रोल की कीमतें कम हैं, इस झूठे दावे से लेकर सांप्रदायिक रंगों में लपेटकर परोसी जाने वाली भ्रामक खबरों और पुरानी फोटो को हाल का बताकर शेयर करने के दावों तक. हर उस दावे की पड़ताल एक साथ पढ़िये जिनका हमने इस हफ्ते फैक्ट चेक किया है.

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BJP शासित राज्यों में पेट्रोल की कीमतें कम हैं? भ्रामक है जानकारी

सोशल मीडिया पर पेट्रोल की कीमतों को दिखाने वाला एक चार्ट (इन्फोग्राफ) वायरल हो रहा है. इसमें 17 फरवरी को देश के विभिन्न राज्यों में पेट्रोल की कीमतें दिखाई गई हैं. जिसके हिसाब से जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार नहीं है वहां पेट्रोल की कीमतें सबसे ज्यादा हैं.

पिछले सप्ताह हमने किन-किन फेक खबरों का फैक्ट चेक किया, आपको जानना जरूरी है.  
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(सोर्स: स्क्रीनशॉट/ट्विटर)  

इस लिस्ट को दो भागों में बांटा गया है. लिस्ट के एक भाग में बीजेपी शासित राज्य और वहां पेट्रोल की कीमतें 90 रुपये प्रति लीटर से कम दिखाई गई हैं. दूसरे भाग में गैर बीजेपी शासित राज्य और पेट्रोल की कीमतें 90 रुपये से ज्यादा दिखाई गई हैं.

पिछले सप्ताह हमने किन-किन फेक खबरों का फैक्ट चेक किया, आपको जानना जरूरी है.  
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(सोर्स: स्क्रीनशॉट/ट्विटर)  

वेबकूफ की पड़ताल में ये दावा भ्रामक निकला. पड़ताल में हमने पाया कि लिस्ट में दिख रही जानकारी भ्रामक है क्योंकि इसमें उन बीजेपी शासित राज्यों की जानकारी नहीं दी गई है जहां 17 फरवरी को पेट्रोल की कीमतें ज्यादा थीं. इसके अलावा जहां-जहां बीजेपी गठबंधन से सरकार बनी है उन्हें भी गैर बीजेपी राज्य की तरह पेश किया गया है. और पेट्रोल की कीमतें ज्यादा बताई गई हैं. इससे ये लिस्ट और भी भ्रामक हो जाती है. जैसे बिहार और कर्नाटक, नागालैंड.

पूरी पड़ताल यहां पढ़ें

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बंगाल में कांग्रेस-CPI की रैली बता पुरानी फोटो गलत दावे से वायरल

पश्चिम बंगाल में 27 मार्च, 2021 से चुनाव शुरू हो रहे हैं. चुनावों की तारीखें तय होते ही सोशल मीडिया पर साल 2019 की लेफ्ट फ्रंट की संयुक्त रैली की एक फोटो वायरल की जा रही है. हजारों की भीड़ वाली इस फोटो को इस दावे के साथ सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है कि ये फोटो कोलकाता में हाल में आयोजित कांग्रेस और CPI(M) की संयुक्त रैली की है.

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(सोर्स: स्क्रीनशॉट/फेसबुक)  

पड़ताल में हमने पाया कि करीब 2 साल पुरानी फोटो को सोशल मीडिया पर हाल की बताकर गलत दावे से शेयर किया जा रहा है. बता दें कि ये फोटो तब की है जब 3 फरवरी 2019 को कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में हजारों लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई थी. ये रैली लेफ्ट फ्रंट ने आयोजित कराई थी.

पूरी पड़ताल यहां पढ़ें

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वायरल वीडियो में दिख रहा शख्स कॉन्स्टेबल ‘आदेश’ है,‘सलीम चोर’ नहीं

लखनऊ के एक मॉल से शर्ट चुराने के आरोपी कॉन्स्टेबल का एक वीडियो सोशल मीडिया पर इस दावे के साथ वायरल हो रहा है कि कॉन्स्टेबल का नाम 'सलीम' है. वीडियो में दिख रहा है कि वर्दी के नीचे शर्ट पहने कॉन्सटेबल को वहां जमा भीड़ पीट रही है.

वीडियो को इस कैप्शन के साथ शेयर किया जा रहा है, ''सलीम का सिनेमा बन गया, लखनऊ: मॉल में खरीदारी करने गए सिपाही सलीम की चोरी के आरोप में हुई पिटाई,,,, ट्रायल रूम में वर्दी के नीचे चोरी कर तीन शर्ट पहन कर निकले सलीम की पोल खुली.''

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(सोर्स: स्क्रीनशॉट/ट्विटर) 

वेबकूफ टीम ने जब इस पूरे मामले की पड़ताल की तो पाया कि कॉन्सटेबल का नाम सलीम नहीं आदेश कुमार है. मामला सामने आने के बाद कॉन्सटेबल को सस्पेंड कर दिया गया है. क्विंट की वेबकूफ टीम ने हुसैनगंज थाने के एसएचओ दिनेश कुमार से भी संपर्क किया.

एसएचओ दिनेश कुमार ने पुष्टि की कि वायरल वीडियो में दिख रहा कॉन्स्टेबल आदेश कुमार है जो पुलिस लाइन में तैनात था. इसके अलावा हमें कई मीडिया रिपोर्ट्स मिलीं जिनमें कॉन्सटेबल का नाम आदेश कुमार ही बताया गया है.

मतलब साफ है कि वीडियो को गलत दावे से शेयर करके सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है.

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राष्ट्रपति कोविंद और अमित शाह की ये फोटो गलत दावे से हो रही शेयर

अहमदाबाद में नरेंद्र मोदी स्टेडियम के उद्घाटन समारोह के दौरान गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की एक फोटो सोशल मीडिया पर गलत दावे से वायरल हो रही है. इस फोटो को शेयर करके दावा किया जा रहा है कि अमित शाह तो रेड कार्पेट पर चल रहे हैं लेकिन राष्ट्रपति कोविंद अमित शाह के लिए रेड कार्पेट को छोड़कर जमीन पर चल रहे हैं.

इस फोटो को इस दावे से शेयर किया जा रहा है, ''यह देश के राष्ट्पति हैं जो जहाँपनाह मोदी और गब्बर अमित शाह के लिए लाल कार्पेट छोड़ कर खुद नीचे चल रहे हैं देश ऐसे गुलाम राष्ट्रपति को पाकर धन्य हो गया||''

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पड़ताल में हमने पाया कि राष्ट्रपति कोविंद के रेड कार्पेट के बाहर चलने का कुछ सेकंड का स्क्रीनशॉट भ्रामक दावे के साथ वायरल किया जा रहा है. कोविंद अमित शाह के लिए रेड कार्पेट से बाहर चल रहे हैं. ये दिखाने वाले विजुअल भ्रामक दावों के साथ पेश किए जा रहे हैं. दावा गलत है.

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खाने को दूषित करती महिला का 10 साल पुराना वीडियो गलत दावे से वायरल

सोशल मीडिया पर एक वीडियो इस दावे के साथ शेयर किया जा रहा है कि मध्यप्रदेश के भोपाल में घरेलू काम में मदद करने वाली महिला भोजन में मूत्र मिला रही है. वीडियो को सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है. दावे में कहा जा रहा है कि ये महिला मुस्लिम है.

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मामले से जुड़े कीवर्ड सर्च करने पर हमें ‘Jansandesh News’ नाम के यूट्यूब चैनल पर 17 अक्टूबर, 2011 को अपलोड किया गया न्यूज बुलेटिन मिला इसमें काम कर रही महिला का नाम आशा बताया गया है. इसके अलावा दैनिक जागरण की साल 2011 की रिपोर्ट में भी महिला का नाम आशा कौशल ही बताया गया है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की 18 अक्टूबर 2011 की रिपोर्ट के मुताबिक 55 वर्षीय इस महिला का नाम आशा कौशल है. घर के मालिक की शिकायत पर आशा पर धारा 270 के तहत मामला दर्ज कर गिरफ्तार किया गया था.

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महिला का नाम हसीना नहीं, आशा है
(सोर्स: स्क्रीनशॉट/वेबसाइट)  

मतलब साफ है कि 10 साल से भी पुराने वीडियो को हाल का बताकर इस गलत दावे से शेयर किया जा रहा है कि महिला मुस्लिम है. ये दावा झूठा है.

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हिंदू देवी सीता के पदचिह्न की जगह ईसाइयों ने लगाया क्रॉस?गलत दावा

आंध्र प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के पदाधिकारियों ने दावा किया है कि राज्य के गुंटूर जिले में ईसाइयों ने अवैध रूप से एक पहाड़ी पर 'क्रॉस' का निर्माण कराया है. इस पहाड़ी पर देवी सीता के पदचिह्न हैं.

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इस दावे को शेयर करने वाले अन्य में आंध्र प्रदेश के बीजेपी के जनरल सेक्रेटरी एस विष्णु वर्धन रेड्डी और आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर भी हैं. राइटविंग पोर्टल Swarajya ने भी इस मुद्दे को लेकर एक रिपोर्ट पब्लिश की थी. जिसमें ये बताया गया था कि बीजेपी और आरएसएस ने ऐसा आरोप लगाया है.

इस दावे को गुंटूर ग्रामीण जिला पुलिस ने खारिज करते हुए एक वीडियो अपलोड किया और बताया कि वायरल फोटो में दिख रही दोनों संरचनाएं (क्रॉस और पैरों के निशान) अलग-अलग पहाड़ियों पर हैं.

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एक अन्य ट्वीट में गुंटूर के जिला कलेक्टर ने इस दावे को खारिज कर दिया और लिखा, ''सीता माता के पदचिन्हों वाली पहाड़ी और क्रॉस वाली पहाड़ी दोनों अलग हैं.''

पड़ताल में हमने अपने स्थानीय रिपोर्टर्स से भी संपर्क किया और ये दावा गलत पाया कि ईसाइयों नें देवी सीता के पदचिह्नों वाली जगह पर क्रॉस लगाया है.

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