दुनियाभर के जंग प्रभावित क्षेत्रों में यौन हिंसा के खिलाफ काम करने के लिए कांगो के डॉक्टर डेनिस मुकवेगे और यजीदी एक्टिविस्ट नादिया मुराद को 2018 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुना गया है. शुक्रवार को नोबेल समिति की अध्यक्ष बेरिट रेइस एंडरसन ने नामों का ऐलान करते हुए कहा कि इन दोनों को यौन हिंसा को युद्ध के हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने पर रोक लगाने की इनकी कोशिशों के लिए संयुक्त रूप से चुना गया है. दोनों वैश्विक अभिशाप के खिलाफ संघर्ष की मिसाल हैं.
डॉ मुकवेगे: तीस हजार से ज्यादा रेप पीड़ितों का इलाज
डॉ डेनिस मुकवेगे पेशे से स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं. उन्होंने कांगो में लंबे समय से चल रहे सशस्त्र गृह युद्ध के दौरान रेप और गैंग रेप का शिकार हुई महिलाओं का इलाज किया है. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने और उनके सहकर्मियों ने मिलकर अब तक तीस हजार से ज्यादा रेप पीड़ितों का इलाज किया है. गंभीर यौन हिंसा की शिकार महिलाओं के इलाज में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है.
नादिया मुराद: आतंकियों की गुलाम से नोबेल तक का मुश्किल सफर
ISIS के आतंकवादियों की सेक्स स्लेव रही यजीदी महिला नादिया मुराद उनके चंगुल से किसी तरह जान बचा कर भागी थी. नादिया उत्तरी इराक के सिंजर के एक नजदीकी गांव में शांति से जिंदगी जी रहीं थी. लेकिन 2014 में इस्लामिक स्टेट के जड़े जमाने के साथ ही उनके बुरे दिन शुरू हो गए. वह जिस गांव में रह रही थी, उसकी सीमा सीरिया के साथ लगती है और यह इलाका किसी जमाने में यजीदी समुदाय का गढ़ था. उसी साल आतंकी उनके गांव कोचो में घुस आए. इन आंतकवादियों ने गांव पुरूषों की हत्या कर दी. साथ ही बच्चों को लड़ाई सिखाने के लिए और हजारों महिलाओं को सेक्स स्लेव बनाने और बल पूर्वक काम कराने के लिए अपने कब्जे में ले लिया.
पकड़ने के बाद आतंकी मुराद को मोसुल ले गए. दरिंदगी की हदें पार करते हुए आतंकवादियों ने उनसे लगातार सामूहिक दुष्कर्म किया, यातानांए दी और मारपीट की. हजारों यजीदी महिलाओं की तरह मुराद का एक जिहादी के साथ जबरदस्ती निकाह कराया गया.
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अपने ऊपर हुए अत्याचारों से परेशान मुराद लगातार भागने की फिराक में रहती थीं और आखिरकार मोसुल के एक परिवार की मदद से वह भागने में कामयाब रहीं. वह बताती हैं कि गलत पहचान पत्रों के जरिए वह इराकी कुर्दिस्तान पहुंची और वहां कैम्पों में रह रहे यजीदियों के साथ रहने लगीं. वहां उन्हें पता चला कि उनके छह भाइयों और मां को कत्ल कर दिया गया है.
इसके बाद यजीदियों के लिए काम करने वाले एक संगठन की मदद से वह अपनी बहन के पास जर्मनी चलीं गईं. आज भी वह वहां रह रही हैं. मुराद ने अब अपनी जिंदगी आतंकियों के चंगुल में फंसी यजीदी महिलाओं के लिए समर्पित कर दिया है. आज मुराद और उनकी मित्र लामिया हाजी बशर तीन हजार लापता यजीदियों के लिए संघर्ष कर रहीं हैं. माना जा रहा है कि ये अभी भी आईएस के कब्जे में हैं. दोनों को यूरोपीय संघ का 2016 शाखारोव पुरस्कार दिया जा चुका है. मुराद फिलहाल मानव तस्करी के पीड़ितों के लिए संयुक्त राष्ट्र की गुडविल एंबेसडर हैं.
(इनपुट: भाषा)
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