आइए हम नफरत फैलाना बंद करें और सहानुभूति बांटना शुरू करें, क्योंकि इस पर हमारा हक है.
चीन के वुहान में कोरोनावायरस के फैलने के बाद 30 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इंटरनेशनल हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया. इसके बाद दुनिया भर में जो रिपोर्ट छप रही हैं और लगातार जो खबरें आ रही हैं वो बेहद भयावह हैं.
हम जिस तरह के हालात झेल रहे हैं उसे सभी न्यूज एजेंसियों ने बिलकुल सटीक तरीके से दुनिया के सामने नहीं रखा है. इससे ठीक उलट, कभी-कभी तो ऐसा लगता है कुछ मीडिया संस्थान जानबूझ कर चीजों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखा रहे हैं.
इस दौरान, एक विदेशी नागरिक की तरह, बीजिंग में रहते हुए मैंने जो देखा है उसे सामने रखकर मैं कुछ चीजें स्पष्ट कर देना चाहती हूं, ताकि जो लोग बीजिंग में रहने वाले अपने करीबियों को लेकर चिंतित हैं या जिन्हें चीन के लोगों की फिक्र है, उन्हें तसल्ली मिले और हकीकत का पता चले.
मैंने पहली बार इस वायरस के बारे में दिसंबर महीने में सुना, उस वक्त वुहान में कुछ ही ऐसे मामले सामने आए थे, और इंसान से इंसान में बीमारी के फैलने की पुष्टि नहीं हुई थी. अगर मैं कहूं कि मैं परेशान नहीं हुई थी तो ये झूठ होगा. बीसवीं शताब्दी के शुरुआती सालों में महामारी बनकर उभरने वाले SARS ने कैसे लोगों की जान ली थी मैं कई बार लोगों से सुन चुकी थी.
इसलिए मैंने न्यूज रिपोर्टों को काफी बारीकी से पढ़ना शुरू कर दिया था, ताकि मैं सार्वजनिक जगहों पर जाते समय और ज्यादा सतर्कता बरत सकूं, और स्वच्छता को लेकर सारे जरूरी ऐहतियात का ध्यान रख सकूं.
जनवरी के बीच में, हालांकि, ये साफ हो चुका था कि हमने जो अंदाजा लगाया था हालात उससे ज्यादा गंभीर हो चुके थे. ये वो वक्त था जब बीमारी की रोकथाम और इसके फैलने से जुड़े कदम उठाए जाने लगे थे.
दुर्भाग्य की बात ये है कि इसी दौरान लोग चीन में नये साल के जश्न की तैयारी शुरू कर चुके थे, जिसका मतलब ये था कि लाखों की तादाद में लोग अपने घर और विदेश लौटने लगे थे, जिससे वायरस के फैलने की रफ्तार और तेज हो गई.
आने वाले दिनों में जितने केस रिपोर्ट किए गए, उतनी ही इंटरनेशनल मीडिया की रिपोर्ट खौफनाक होती चली गई.
कई सरकारों ने अपने नागरिकों को वहां से बाहर निकालने का फैसला किया, तो कुछ ने चीनी मुसाफिर या चीन से लौटने वाले यात्रियों की देश में एंट्री ही बंद कर दी. और जैसे कि वो नाकाफी हो, कई इंटरनेशनल एयरलाइंस ने चीन आने-जाने वाली सारी उड़ानें ही रद्द कर दी.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि वायरस से पब्लिक हेल्थ को बड़ा खतरा होता है, और इसके साथ-साथ अर्थव्यवस्था पर भी इसका बुरा असर होता है. ये बात भी समझी जा सकती है कि विदेशी सरकारें अपने नागरिकों की हिफाजत करना चाहती हैं, और इंटरनेशनल एयरलाइंस इन बीमारियों में इजाफे को रोकने में सहायक होते हैं.
हालांकि, चीन में रह रहे एक विदेशी नागरिक के तौर पर, ये देख कर मुझे बहुत तकलीफ होती है कि चीनी सरकार, चीन में तैनात हजारों हेल्थ वर्कर और इस बीमारी से रोज जंग लड़ रहे लाखों चीनी नागरिकों की तमाम कोशिशों को दुष्प्रचार से भरी हेडलाइंस के जरिए नीचा दिखाया जा रहा है, बेरहमी से निंदा की जा रही है.
मैं कोई हेल्थ स्पेशलिस्ट नहीं हूं, ना ही मेरे पास कोई ऐसी योग्यता है जिससे वायरस की पुष्टि के बाद सरकारी कार्रवाईयों का ठीक-ठीक मूल्यांकन करने का कोई हक हो. मुझे लगता है हर कोशिश के बावजूद महामारी से मुकाबला करने के कई और बेहतर और असरदार तरीके हो सकते हैं, लेकिन मैं ये भी मानती हूं कि वो सारे विकल्प तुरंत मौजूद हों ये जरूरी नहीं है.
हालांकि मैं इस बात की गवाही दे सकती हूं कि चीन की सरकार और बीजिंग के स्थानीय अधिकारियों ने – खास तौर पर हाइडियान जिले में – पिछले दो हफ्तों में बीमारी से लड़ने के लिए हरसंभव और फौरी कार्रवाई की है.
वायरस को फैलने से रोकने के लिए हैरतअंगेज तरीके से जरूरी सामान मुहैया कराए जा रहे हैं, लोगों को तैनात किया जा रहा है. दवाई के दुकानदार फ्री में सर्जिकल मास्क बांट रहे हैं; मैं जिन सुपरमार्केट में गई वहां खाने के सामान और दूसरी जरूरी चीजें की कोई कमी नहीं नजर आई; जो चीनी रेस्तरां नए साल की छुट्टियों के दौरान भी खुले रहे वहां स्वच्छता से जुड़ी हर सावधानियां बरती जा रही हैं.
स्कूलों और विश्वविद्यालयों में ऑनलाइन शिक्षा शुरू कर दी गई है, और कई कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को घर से काम करने की छूट दे दी है.
ये संकट भी दूर हो जाएगा
मैं इस स्वास्थ्य संकट के खतरे को कम आंकने की कोशिश नहीं कर रही हूं. अगर हम स्वच्छता का ख्याल नहीं रखें और रोकथाम के जो जरूरी उपाय हैं - जैसे कि सार्वजनिक जगहों पर उपयुक्त मास्क पहनना और दूसरों से शारीरिक संपर्क ना बनाना, भीड़-भाड़ वाली जगहों से दूर रहना - उनकी अनदेखी करें तो इस वायरस के संक्रमण का खतरा बहुत ज्यादा है,
तर्क से समझें तो जिन लोगों में बीमारी से लड़ने की क्षमता कम है उनके बीमार पड़ने की संभावना ज्यादा है, और उनके जल्द ठीक होने की संभावना भी कम रहती है. लेकिन, ये मान लेना बेहद हास्यास्पद होगा कि चीन का हर नागरिक कोरोना वायरस से ग्रसित है, और ये भी कि जिसे ये बीमारी हो गई उसकी मौत तय है.
हालांकि वायरस का मृत्यु दर कम होने का मतलब ये नहीं है कि इस संकट को गंभीरता से नहीं लिया जाए, लेकिन इससे हालात की सच्चाई समझ में आ जाती है. Wechat जैसे कई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर पल-पल ये आकंड़े मुहैया कराए जा रहे हैं कि कहां और कितने लोग इस बीमारी से ग्रसित हो चुके हैं, कितने संदिग्ध बताए जा रहे हैं, कितने लोग बीमारी से छुटकारा पा चुके हैं, और कितने लोग अपनी जान गंवा चुके हैं.
इन आंकड़ों पर एक नजर डालें तो ये स्पष्ट है कि कोरोना वायरस ने बहुत तेजी से अपने पैर पसारे, लेकिन इससे मरने वालों की तादाद उतनी नहीं रही जितना कि इंटरनेशनल मीडिया हमें यकीन दिलाना चाहता है.
दुर्भाग्य से इन इंटरनेशनल ब्रॉडकास्टर्स को दुनिया भर में लाखों लोग फॉलो करते हैं. इनकी नकारात्मक रिपोर्ट ने लोगों में डर और पूर्वाग्रह को हवा दे दी है, जिससे एशियाई लोगों, खासकर चीनी नागरिकों, के खिलाफ नस्लवाद की घटनाएं बढ़ गई हैं.
इंटरनेट पर षडयंत्रकारी बातों की बाढ़ आ गई है और चीन के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर द्वेष बढ़ता जा रहा है. इन सबके बीच उन लोगों की मुश्किलों की तरफ से ध्यान हट गया जो वायरस से पीड़ित हैं, जिनकी इस बीमारी की वजह से जान चली गई, उन परिवारों की हालत कैसी है जिन्हें लगातार अपने करीबियों की जान और सेहत का डर सता रहा है.
ये दुनिया का अंत नहीं है, ये चीन का अंत नहीं है. आखिरकार ये संकट भी खत्म हो जाएगा. लेकिन कुछ लोगों के संवेदनहीन पोस्ट, एशियाई लोगों के खिलाफ दिए गए नफरत भरे बयान, नस्लवादी हरकतों से पहुंचाई गई तकलीफ हमेशा उनके दिल और दिमाग में बने रहेंगे जो आज इसे झेल रहे हैं. इसलिए नफरत फैलाना बंद करिए और सहानुभूति बांटना शुरू करिए, क्योंकि हमें इसकी जरूरत है.
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