यूक्रेन पर हमला करते समय रूस (Russia) ने सोचा था कि अपनी विराट सैन्य शक्ति के बल पर चौंकाने वाले हमले करते हुए वह चंद दिनों के अंदर यूक्रेन के सभी बड़े शहरों पर कब्जा कर लेगा, पर उसकी यह ख्वाहिश पूरी होती नहीं दिख रही. कीव, खार्किव, मारियुपोल और खेरसॉन जैसे बड़े शहर अभी तक उसके नियंत्रण में नहीं आ पाए हैं. रूस जो 1945 के बाद से अपना पहला बड़ा युद्ध लड़ रहा है, अपने प्लान 'ए' के बल पर यूक्रेन को झुका न सका तो अब उसने अपने मंसूबे पूरे करने के लिए प्लान 'बी' अपना लिया है. द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने रूस के प्लान 'बी' वाले इस रणनीतिक बदलाव पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें उसने कई पश्चिमी सैन्य विश्लेषकों और खुफिया एजेंसियों के दावे को आधार बनाया है. यहां हम आपको उसी रिपोर्ट के आधार पर बताएंगे कि रूस की यह अगली योजना यानि उसका प्लान 'बी' कैसा है, और वह इसे कैसे अंजाम देना चाहता है.
यह था प्लान 'ए'
रूस का प्लान 'ए' तेज सैनिक कार्रवाई के साथ यूक्रेन की सेना को हथियार रहित करने का था, जिससे वह यूक्रेन में घुसकर वहां की सत्ता उखाड़ फेंके. रिपोर्ट के अनुसार इस प्लान में कीव मुख्य तौर पर निशाने पर था. इसके आसपास के हवाई क्षेत्र पर कब्जा किया जाना था. रूस के यंत्रीकृत बलों को कई थ्रस्ट लाइनों के साथ आगे बढ़ना था.
कीव और खार्किव पर 72-96 घंटों में कब्जा करने के लिए रूस ने हवाई-भूमि अभियान शुरू किया था और बड़े पैमाने पर हवाई हमलों, मिसाइल, ड्रोन, साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध अभियानों के साथ वह वॉर में उतरा था. उसका इस प्लान 'ए' में उद्देश्य यूक्रेन की मैक्जिमम लॉजिस्टिक और लड़ाकू क्षमता को नष्ट करने का था.
इसकी प्रारंभिक सैन्य रणनीति कीव, खार्किव, मारियुपोल और खेरसॉन जैसे शहरों को अलग-थलग करके बहुत ही उच्च गति से एक मल्टी डायमेंशनल अटैक शुरू करने की थी. इसके जरिए वह इस देश को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करना चाहता था और उसे मनोवैज्ञानिक, राजनीतिक और सैन्य सभी स्तरों पर तोड़ डालना चाहता था. यूरोपीय देशों के साथ-साथ अमेरिका ने भी यह कहा था कि रूस का लक्ष्य बिजली की तेजी से पूरे यूक्रेन पर कब्जा करना और ज़ेलेंस्की की सरकार की जगह रूसी समर्थक शासन को वहां स्थापित करना था. पर ऐसा हो न सका.
क्या है प्लान 'बी'
रूसी सेना यूक्रेन पर अपने आक्रमण में पहले की तेजी की बजाय अब बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रही है. उसकी रणनीति में यह परिवर्तन यूक्रेनी बलों के कड़े प्रतिरोध और अपनी सेना की रसद और सैन्य साजो सामान की सप्लाई चेन में समस्याएं खड़ी होने के कारण भी हुआ है. अपने आक्रमण के चौथे सप्ताह में रूसी सेना कीव के बाहरी इलाके में रुक गई है, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रणनीति बदल दी है. रूस का यह 'प्लान बी' संघर्ष को कई और हफ्तों, संभवतः महीनों तक बढ़ा सकता है.
रिपोर्ट में सैन्य विशेषज्ञों के आकलन के आधार पर कहा गया है कि पुतिन नाकाबंदी की रणनीति पर लौट रहे हैं. कुछ जानकार विश्लेषकों का कहना है कि पुतिन के उद्देश्य नहीं बदले हैं, बस उनकी रणनीति बदली है. हालांकि मॉस्को अपने इस रणनीतिक बदलाव को स्वीकार नहीं कर रहा है और उसका दावा है कि वह निर्धारित डेडलाइंस में अपने सभी टारगेट अचीव कर रहे हैं.
इन तथ्यों से प्लान चेंजिंग की पुष्टि
अमेरिकी अधिकारी लगातार कह रहे हैं कि रूस अब यूक्रेन पर दक्षिणी और पूर्वी क्षेत्रों पर रशियन आधिपत्य को स्वीकार करने के लिए दबाव बनाने का लक्ष्य बना रहा है.
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की भी कह चुके हैं कि रूसी सेना उनके देश के सबसे बड़े शहरों को अवरुद्ध करने की नीति पर चल रही है.
प्रमुख यूक्रेनी शहरों पर रूक रूककर गोलाबारी भी जेलेंस्की को नाटो या यूरोपीय संघ में शामिल होने की योजना को छोड़ने का दबाव बनाने की रणनीति प्रतीत होती है.
अब रूसी राष्ट्रपति यूक्रेन के दक्षिणी और पूर्वी क्षेत्रों पर मास्को के दावों को स्वीकार करने के लिए कीव को मजबूर करना चाहते हैं.
यह स्ट्रेटजी भी प्लान 'बी' का हिस्सा
रणनीतिक यूक्रेनी भंडारण स्थलों को बाहर निकालने के लिए हाइपरसोनिक मिसाइलों का इस्तेमाल करता रहेगा.
रूसी राष्ट्रपति यूक्रेन के दक्षिणी और पूर्वी क्षेत्रों पर मास्को के दावों को स्वीकार करने के लिए कीव को मजबूर करना चाहेंगे.
सैन्य विश्लेषकों ने कहा कि नाटो के साथ किसी भी बड़े युद्ध में जरूरत पड़ने पर लंबी दूरी की मिसाइलों को तैनात किया जा सकता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि साथ ही, पुतिन अपने सैन्य दबाव को जारी रखेंगे, जिसमें शहरों पर गोलाबारी भी शामिल है.
कीव, खार्किव, मारियुपोल और खेरसॉन को इसी तरह से घेरा जाएगा.
अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार, यदि पुतिन की मांगें पूरी नहीं की जाती हैं तो रूस अभी के क्षेत्रों को अपने कब्जे में रख धीरे-धीरे आगे बढ़ना जारी रखेगा.
कुछ विश्लेषकों का कहना है कि अगर यूक्रेन रूस की मांगों को स्वीकार करने से इनकार करता है, तो रूस संभवतः अपनी सेनाओं को उन सभी जमीनों पर नियंत्रण करने का आदेश देगा जो उसने अब तक जीत ली हैं.
पहली भी ऐसी लड़ाई लड़ चुकी है रूसी सेना ऐसा
इस रिपोर्ट के अनुसार रूस के लिए स्लो प्रोसेज और घेराबंदी वाली यह योजना नई नहीं है. रूसी सेना 1999 और 2000 में दूसरे चेचन युद्ध के दौरान ग्रोज़्नी में इस घेराबंदी वाली रणनीति को अपना चुकी है. उस समय पुतिन प्रधान मंत्री और तत्कालीन राष्ट्रपति के रूप में सत्ता में आए
तो फंस जाएगा यूक्रेन
रूस की इस रणनीति से यूक्रेन फंस भी सकता है. उसके प्रमुख शहरों को रक्षा के लिए तैयार नहीं किया गया है. हमलावरों का मुकाबला करने के लिए शहरों के बाहर कोई रिजर्व फोर्स नहीं है. रक्षकों के पास सीमित तोपखाने हैं और उसकी मुख्य रूप से छोटे हथियारों और तात्कालिक विस्फोटक उपकरणों पर निर्भरता है. रूस के साथ इसकी 2,295 किमी की सीमा और 2,782 किमी की तटरेखा है, जिस पर निरंतर मोर्चा संभालकर उसकी रक्षा करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है. रूस की तुलना में यूक्रेन की सैन्य क्षमता में भी भारी अंतर है.
(रूस के इस प्लान 'बी' श्रंखला की एक और खबर पढ़िए 'क्विंट हिंदी' पर, ''यूक्रेन से जंग में रणनीति बदलने पर क्यों मजबूर हुए पुतिन, जानिए इसके चार बड़े कारण'' )
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