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Ruble में रिकवरी के साथ रूसी अर्थव्यवस्था में भी सुधार या पुतिन का ‘मायाजाल’?

Russia-Ukraine War: जहां रूबल ने रिकवरी की है वहीं रूस में बढ़ती महंगाई में 7.6% का उछाल देखा गया

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यूक्रेन पर रूसी हमलों (Russia-Ukraine War) को शुरू हुए छह सप्ताह से भी अधिक का समय गुजर चुका है. पश्चिमी देशों के “कठोर” प्रतिबंधों के बावजूद रूस की अर्थव्यवस्था उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन कर रही है. रूस की करेंसी रूबल (Russian ruble) ने अपने शुरूआती सभी नुकसानों के बाद रिकवरी की है.

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दूसरी तरफ क्रूड ऑयल और नेचुरल गैस का निर्यात करने के कारण यूरोप और भारत जैसे तमाम अन्य देशों से अरबों डॉलर का प्रवाह रूसी अर्थव्यवस्था में जारी है. यानी पुतिन सरकार के हाथों में अपने अंतरराष्ट्रीय लोन्स के भुगतान के लिए जरुरी डॉलर आ रहे हैं.

ऐसे में सवाल है कि क्या पुतिन सरकार प्रतिबंधों को आसानी से बिना किसी बड़ी परेशानी झेल रही है या आम रूसी जनता द्वारा अनुभव किए जा रहे वास्तविक दर्द और अर्थव्यवस्था पर असली तनाव पर यह मुखौटा भर है?

चलिए कहानी शुरू से शुरु करते हैं और आपको बताते हैं कि पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का रूसी अर्थव्यवस्था पर क्या कुछ असर हुआ है.

पश्चिम के प्रतिबंध, रूबल पर मार और रिकवरी

24 फरवरी, 2022 को रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया. तब उसके तुरंत बाद 50 से अधिक देशों ने रूस पर व्यापक और गहरे प्रतिबंध लगाए. खास बात है कि प्रतिबंध लगाने में स्विट्जरलैंड और ताइवान जैसे देश भी शामिल थे जो ऐतिहासिक रूप से तटस्थ रहे हैं. इन प्रतिबंधों का तत्काल प्रभाव भी देखने को मिला.

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रूसी जनता ने अपने बैंक एकाउंट्स से डॉलर और रूबल निकालने के लिए लाइने लगा दी और इस बीच रूबल कुछ ही दिनों में 50% कमजोर हो गया. लेकिन रूसी करेंसी ने जितना गोता लगाया वो उतनी ही जल्दी रिकवर भी कर गयी.

10 मार्च को जहां 1 डॉलर के मुकाबले 136 रूबल की कीमत बराबर थी वहीं 17 अप्रैल को रूबल मजबूत होकर 1 डॉलर के मुकाबले 81 हो गया- लगभग यूक्रेन पर रूसी हमले के पहले की स्थिति. सवाल यह भी है कि यह कैसे संभव हुआ. संभावित जवाब यह रहा :

रूस के केंद्रीय बैंक का सख्त नियम लागू करना

  • निर्यातकों को अपनी डॉलर की कमाई का 80% रूबल में बदलना आवश्यक कर दिया गया

  • रूस से से US $10,000 से अधिक लेकर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया

  • डॉलर की खरीद पर 12% टैक्स शुरू किया गया

दूसरी तरफ जहां अमेरिका, यूके और लिथुआनिया जैसे कुछ देशों ने घोषणा की है कि वे अब रूसी तेल और गैस नहीं खरीदेंगे वहीं यूरोपीय यूनियन अपनी निर्भरता के कारण ऐसा कदम उठाने का जोखिम नहीं उठा सकता है. भारत और चीन भी धड़ल्ले से रूसी तेल-गैस का आयात कर रहे हैं.

खास बात है कि प्रतिबंधों के कारण निर्यात की मात्रा में किसी भी गिरावट की भरपाई तेल की कीमत में 60% की बढ़ोतरी से अपने आप हो गयी. यही कारण है कि अपने तेल और गैस निर्यात से रूस प्रति महीने $ 35 बिलियन का कारोबार कर रहा है और आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद अपने अंतरराष्ट्रीय लोन दायित्वों को पूरा करने में सक्षम बना हुआ है.

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क्या वाकई रूस की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है ?

हालांकि आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि रूबल अब एक परिवर्तनीय मुद्रा (convertible currency) है, इसलिए इसका एक्सचेंज रेट सिर्फ आर्टिफिशियल इंडिकेटर है और हमें रूस की अर्थव्यवस्था के बारे में बहुत कम बताता है. इन विशेषज्ञों का कहना है कि रूस में जीवन यापन की बढ़ती लागत वहां की अर्थव्यवस्था की सेहत का एक अधिक खुलासा करने वाला इंडिकेटर है.

रूस में बढ़ती महंगाई ऐसा मुद्दा है जिसके बारे में पुतिन सरकार चिंतित है क्योंकि यह संभावित रूप से सामाजिक अशांति का कारण बन सकती है.

रूस के अंदर मार्च में उपभोक्ता कीमतों में 7.6% का उछाल देखा गया और एक साल पहले की तुलना में 16.7% अधिक था. इसका एक कारण रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले ही वैश्विक स्तर पर खाद्य कीमतों में वृद्धि भी है.

बढ़ती बेरोजगारी की संभावना भी पुतिन सरकार के लिए एक और चिंता का विषय है. ब्लूमबर्ग द्वारा सर्वे किए गए विश्लेषकों ने आने वाले महीनों में रूस में बेरोजगारी 9% से अधिक होने का अनुमान लगाया है. एक दशक से अधिक समय में यह पहली बार इतना अधिक होगा.


बढ़ती बेरोजगारी के झटकों को कम करने के लिए पुतिन सरकार पश्चिमी प्रतिबंधों से प्रभावित उद्योगों में मजदूरी पर 40 बिलियन रूबल (लगभग $ 470 मिलियन) खर्च कर रही है.

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रूसी मजदूरों के लिए एक महत्वपूर्ण सेफ्टी वाल्व यह है कि यहां लगभग 10 मिलियन प्रवासी मजदूर हैं जो कुल वर्कफोर्स के 15% हैं. अगर आगे कंपनियां मजदूरों को निकालती भी हैं तो सबसे पहले इन प्रवासी मजदूरों को निकाला जायेगा.

कंपनियों से लेकर उपभोक्ताओं का हाल खस्ताहाल

रूसी उपभोक्ताओं और कंपनियों को भी कई प्रकार के सामानों की कमी का सामना करना पड़ रहा है. इसमें फार्मास्युटिकल आपूर्ति, जैसे अस्थमा इनहेलर और पार्किंसंस रोग के लिए दवाएं शामिल हैं.

यहां तक ​​​​कि कॉपी पेपर की कीमत पिछले महीने में तीन गुना हो गई है जिसके कारण इस साल रूसी यूनिवर्सिटियों में की प्रवेश परीक्षाओं को स्थगित करने की मांग की जा रही है. इसके पीछे कारण है कि कई प्रमुख केमिकल्स के के आयात पर लगे रोक के कारण इनकी किल्लत हो गयी है.

रूस में निजी और राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियां आयातित हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर पर बहुत अधिक निर्भर रहती हैं. प्रतिबंधों के कारण Microsoft और Google जैसी कंपनियां अब रूस में बिजनेस नहीं कर रही हैं, जिससे स्थानीय कंपनियां वैकल्पिक सॉफ्टवेयर खोजने के लिए हाथ-पांव मार रही हैं.

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