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रूस-भारत दोस्ती से परेशान नहीं अमेरिका, रिश्तों की दुहाई दे पुतिन को मनाएं मोदी

अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा, भारत का रूस से एक विशिष्ट रिश्ता है जो हमारे संबंधों से अलग है.

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अमेरिका ने कहा है कि वह रूस के साथ भारत के विशिष्ट संबंधों को लेकर बिल्कुल असहज नहीं है और वह अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के नियमों की रक्षा करने के लिए भारत को इन खास संबंधों के इस्तेमाल के लिए मना सकता है.

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न्यूयॉर्क में सुरक्षा परिषद की बैठक से पहले वाशिंगटन में पत्रकारों से बात करते हुए विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने हाल ही में कहा था कि भारत और रूस के बीच एक रिश्ता है और अमेरिका ने हर देश को अंतरराष्ट्रीय मानदंडों को बनाए रखने के लिए इसका इस्तेमाल करने के लिए कहा है. उसी तरह से भारत भी अपने अच्छे संबंधों के आधार पर रूस से शांति के लिए कह सकता है.

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गौरतलब है भारत ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा करते हुए अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा सुरक्षा परिषद में लाए गए निंदा प्रस्ताव पर वोटिंग में भाग नहीं लिया था. हालांकि प्राइस ने यह बात प्रस्ताव पर वोटिंग से पहले कही थी.

यह पूछे जाने पर कि क्या रूसी आक्रमण के बाद भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव आया है तो प्राइस ने कहा था कि रूस और भारत के विशिष्ट संबंध ठीक है.

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उन्होंने कहा हम भारत के साथ महत्वपूर्ण हितों और मूल्यों को साझा करते हैं लेकिन हम जानते हैं कि भारत का रूस के साथ एक रिश्ता है जो रूस के साथ हमारे संबंधों से अलग है. भारत के साथ हमारी व्यापक रणनीतिक साझेदारी है और रूस के साथ भारत के संबंध रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र में हैं. हमने दुनिया भर के हर देश से जो उम्मीद की है, वह यह है कि वे पिछले 70 वर्षों से विश्व के केन्द्र में रहे प्रमुख बिंदुओं जैसे सुरक्षा, स्थिरता और समृद्धि के मानदंडों को बनाए रखने के लिए अपने अच्छे प्रभाव का उपयोग करें.

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सुरक्षा परिषद की रविवार की बैठक में अमेरिका और उसके सहयोगियों के उस प्रस्ताव पर विचार किया जाएगा, जिसमें यूक्रेन संकट को लेकर महासभा का आपात सत्र बुलाने का आह्वान किया गया है. इसमें जब उस पर कोई मतदान होगा तो सभी का ध्यान भारत पर रहेगा जिसने पिछले महीने यूक्रेन मुद्दे से जुड़े एक प्रक्रियात्मक वोट पर और विगत शुक्रवार को रूस की निंदा करने वाले प्रस्ताव पर भाग नहीं लिया था.

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अमेरिका ने रूस के प्रस्ताव को बहुत महत्व दिया था और उसके खिलाफ वैश्विक स्तर पर सभी देशों को एकजुट करने के प्रयास में था. सुरक्षा परिषद में तीन एशियाई देशों भारत, चीन और संयुक्त अरब अमीरात ने प्रस्ताव में भाग नहीं लिया था और उसे 11 वोट मिले थे लेकिन स्थायी सदस्य रूस के वीटो द्वारा इसे रद्द कर दिया गया था.

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अमेरिका की स्थायी प्रतिनिधि लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने मतदान से पहले विभिन्न देशों के रूख को एक परीक्षण करार देते हुए कहा था, कोई बीच का रास्ता नहीं है. उन्होंने मतदान के बाद भारत या अन्य दो देशों का नाम लिए बिना उसकी आलोचना करते हुए कहा इस मतदान ने दिखाया है कि कौन से देश वास्तव में संयुक्त राष्ट्र के मूल सिद्धांतों का समर्थन करने में विश्वास करते हैं और सुरक्षा परिषद के कौन सदस्य संयुक्त राष्ट्र चार्टर का समर्थन करते हैं और कौन से देश नहीं.

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रूस और अमेरिका दोनों ने अपना-अपना पक्ष लेने के लिए भारत से बातबात की थी.. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया और अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने विदेश मंत्री एस जयशंकर से बात की थी.

प्राइस के मुताबिक भारत का रूस के साथ जो रिश्ता है जो निश्चित रूप से हमारे साथ नहीं है। भारत और रूस के बीच रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र सहित अन्य क्षेत्रों में एक रिश्ता है. हमने हर उस देश से बात की है, जिसका रूस के साथ बेहतर संबंध है. निश्चित रूप से वे देश अपने अच्छे संबंधों का इस्तेमाल उसे मनाने में कर सकते हैं.

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भारत का मॉस्को के साथ ऐतिहासिक रूप से घनिष्ठ संबंध रहा है और बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उसने सोवियत संघ के वीटो का लाभ प्राप्त किया था, लेकिन भारत शीत युद्ध के बाद के युग में अमेरिका और पश्चिम देशों के करीब पहुंच गया है.

अमेरिका के साथ संबंधों का एक महत्वपूर्ण तत्व क्वाड की भारत की सदस्यता है. यह वह समूह है जिसमें अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे वे देश शामिल हैं, जिन्हें चीन से चुनौती मिल सकती है.

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जयशंकर ने इस महीने की शुरूआत में मेलबर्न में क्वाड के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लिया और ब्लिंकन के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी की.

यह पूछे जाने पर कि क्या रूस के आक्रमण के दिन पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान की मॉस्को यात्रा विश्व के देशों के पुनर्गठन का संकेत है तो प्राइस ने कहा था, हमने पाकिस्तान को उस समय हमले के खतरे में बताया था. पाकिस्तान सही तरीके से जानता है कि हमारा इस मसले पर क्या रूख है.

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