कोरोना वायरस महामारी ने जीने के तरीके, काम के तरीके और रहन-सहन में बड़े बदलाव किए हैं. जॉब की बात करें तो वर्क फ्रॉम होम कल्चर बढ़ा है और तेजी से फ्रीलांस काम करने वाले प्रोफेशनल भी बढ़े हैं.
फ्रीलांस प्रोफेशनल्स की बात करने से पहले जरा तेजी से बढ़ते आंकड़ों को देखते हैं-
देश में इस साल फ्रीलांसर्स 46 फीसदी बढ़ गए हैं.
फिलहाल, भारत में लगभग डेढ़ करोड़ फ्रीलांसर अलग-अलग सेक्टर में काम कर रहे हैं.
फाइनेंशियल सर्विस कंपनी Payoneer की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया में दूसरा सबसे तेजी से बढ़ता हुआ फ्रीलांस बाजार बनकर उभरा है.
इसी रिपोर्ट के मुताबिक हर पांच भारतीय फ्रीलांसर्स में एक महिला है.
मैकिन्से की 2018 की रिपोर्ट कहती है कि भारत में, 2025 तक फ्रीलांस इंडस्ट्री के 20 से 30 बिलियन डॉलर तक बढ़ने का अनुमान है.
ऐसे में ये आंकड़े कहते हैं कि बतौर फ्रीलांसर जॉब करना युवाओं की पसंद में शुमार हो रहा है. दरअसल, फ्रीलांसर के लिए 9 से 6 की नौकरी का दायरा नहीं होता, साथ ही एक ही जॉब में बंधकर रहने की मजबूरी भी नहीं होती है. हालांकि, बतौर फ्रीलांसर काम करने के अपने नुकसान भी हैं, जैसे हेल्थ इंश्योरेंस का नहीं होना, कई दफा आइडेंटिटी कार्ड का ना मिलना और एक परमानेंट जॉब से जुड़ी दूसरी सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं.
बतौर फ्रीलांस ग्राफिक्स डिजाइनर तीन साल से काम कर रही लखनऊ की सौम्या तिवारी इसे 'आजादी' के तौर पर देखती हैं, साथ ही वो ये भी कहती हैं फ्रीलांस में कई बार डिग्री मायने नहीं रखती, कंपनियां सिर्फ और सिर्फ आपका हुनर देखती हैं और आप काम में कितने सक्षम हैं, इसकी कद्र होती है.
कोरोना के समय फ्रीलांसिंग तेजी से बढ़ा
Payoneer की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना वायरस महामारी के इस दौर में फिलिपींस के बाद भारत सबसे तेज फ्रीलांस मार्केट के तौर पर सामने आया है. 2020 में नए फ्रीलांसरों में 46% की वृद्धि देखी गई.
कोविड के समय में लॉकडाउन के कारण सभी के काम करने के तरीके में बदलाव आया है. बहुत से लोगों के बिजनेस बंद हो गए, वहीं दूसरी ओर लगभग सभी ने ऑनलाइन काम करना शुरु कर दिया.
कोविड-19 ने फ्रीलांस और गिग इकनॉमी को नये अयाम पर पहुंचाया है. अभी तक गिग इकॉनमी केवल सेमी-स्किल्ड स्पेस (उबर, अर्बन कंपनी) में पनप रही थी लेकिन कोविड की वजह से बड़ी-बड़ी कम्पनियां भी गिग इकनॉमी को बढ़ावा दे रही हैं.
बेंगलुरु-आधारित रिफ्रेन के एक अध्ययन में पाया गया कि 64 प्रतिशत फ्रीलांसरों ने बताया कि उन्हें मार्च-अप्रैल की तुलना में मई और जून में अधिक असाइनमेंट मिले हैं
कोरोना के समय में फ्रीलांसर्स की मांग इसलिए ज्यादा बढ़ी है क्योंकि बड़ी-बड़ी कम्पनियों को नुकसान हुआ है और अब फुल टाइम कर्मचारियों को रखने लायक स्थिति नहीं है. कारोबारियों को एहसास हो रहा है कि लागत में कटौती करने की जरूरत है, तो फ्रीलांसर उनके लिए एक अच्छा और लचीला विकल्प हैं.
आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में 60 प्रतिशत फ्रीलांसर्स 30 साल से कम उम्र के हैं. भारत की युवा पीढ़ी बंधकर काम नहीं करना चाहती है.
वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की रिपोर्ट के मुताबिक, आम नौकरी में एक महिला कर्मचारी की पुरुष कर्मचारी के मुकाबले 64% ही कमाई होती है, लेकिन एक फ्रीलांसिंग में ये अंतर घटकर 84% के करीब रह जाता है. तो आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि फ्रीलांसिंग में महिला और पुरुषों के बीच के मेहनताने का फर्क कम होने की संभावना है. फ्रीलांस वर्कफोर्स में महिलाओं की संख्या में भी लगातार वृद्धि हो रही है, लेकिन नियमित वर्कफोर्स में महिलाओं की संख्या कम है. जबकि ग्लोबल वर्कफोर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी 39 प्रतिशत है, जबकि फ्रीलांसिंग श्रेणी में यह 24 प्रतिशत है.
हमने कुछ फुल टाइम फ्रीलांसर्स से बात की और उनके अनुभव जानने की कोशिश की.
प्रगति गुप्ता भोपाल की रहने वाली हैं और अभी फुल टाइम कंटेंट राइटर और कॉपीराइटर हैं. प्रगति लगभग डेढ़-दो साल से फ्रीलांसिंग कर रही हैं. प्रगति ने कहा, "फ्रीलांसिंग मजेदार है, आपको बहुत अधिक एक्सपोजर मिलता है और आप लचीले ढंग से काम कर सकते हैं." प्रगति का कहना है कि वो भविष्य में भी फ्रीलांसिंग जारी रखना चाहेंगी.
अभिषेक एक दिल्ली में रहते हैं वह एक वेब डिजाइनर हैं, अभिषेक ने एक साल के अन्दर ही फुल टाइम जॉब छोड़ कर 'फ्रीलांसिंग' का रुख कर लिया था. अभिषेक का कहना है कि वो बॉस के प्रेशर में रहकर काम नहीं कर सकते और फ्रीलांसिंग की सबसे अच्छी बात होती है कि वहां आप खुद के बॉस होते हैं. नौकरी में, अक्सर आपको कम्पनी के और बॉस के नियमों में बंध कर काम करना पड़ता है, कई बार वह काम भी करने पड़ते हैं जो आपको नापसंद होते हैं लेकिन फ्रीलांसिंग में आप अपने मालिक होते हैं और अगर कोई काम पसंद नहीं आता तो आप प्रोजेक्ट को बिना हिचके ना बोल सकते हैं .
चुनौतियां क्या हैं?
हर चीज के फायदे और नुकसान दोनों ही होते हैं. जब हम फ्रीलांसिंग के फायदों की बात कर चुके हैं तो आइए एक नजर उसके नुकसान पर भी डालते हैं.
अंशुमन पांडेय जो कि एक ऐप डेवलपर हैं उनका कहना है कि जब आप फ्रीलांसिंग शुरू करने के लिए निकलते हैं तो यह पहली और महत्वपूर्ण बात होती है कि आपको एक दम से नौकरी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि फ्रीलांसिंग में स्थिरता लाने में समय लगता है और तब तक आपको अपने जीवन का निर्वाहन करने के लिए पैसों की जरूरत होती है इसीलिए जब तक आपकी कमाई स्थिर ना हो जाए तब तक फुल टाइम जॉब नहीं छोड़नी चाहिए.
फ्रीलांसर कॉपीराइटर अंकित बताते हैं कि फ्रीलांसिंग में शुरुआत करना आसान नहीं है, आपको बहुत इंतजार करना पड़ता है और फिर आपको पहली गिग मिलती है.
फ्रीलांसिंग के बारे में अक्सर सुनी जाने वाली शिकायत यह है कि यह एक अस्थिर काम है. फ्रीलांसिंग में आपको मार्केटिंग, क्लाइंट सर्विसिंग से लेकर बहीखाता तक सबकुछ करना होता है.
अगर आप फ्रीलांसिंग करना चाहते हैं तो आमदनी में उतार-चढ़ाव के लिए तैयार रहें. आपके पास एक बढ़िया काम हो सकता है लेकिन इसकी गारंटी नहीं है. अपने क्लाइंट्स को ढूंढने में आपको कभी-कभी बहुत समय लग सकता है. फ्रीलांसिंग में धोखाधड़ी से बचना एक बहुत बड़ा चैलेंज होता है. किसी भी क्लाइंट के साथ काम करने से पहले उसके बैकग्राउंड और कंपनी के बारे में जानना जरूरी है.
फ्रीलांसिंग में काम और व्यक्तिगत समय के बीच की लाइन बहुत बार धुंधली हो जाती है.
कुछ सेक्टर में फ्रीलांसिंग का चलन तेजी से बढ़ा
भारत में फ्रीलांसिंग का भविष्य नजर आता है. आजकल फ्रीलांसिंग की मांग वैसे तो हर क्षेत्र में बढ़ रही है लेकिन कुछ सेक्टर में ये चलन तेजी पकड़ रहा है-
कंटेंट राइटिंग
ग्राफिक डिजाइनिंग
वेबसाइट डेवेलपमेंट
वीडियो एडिटिंग
फोटो एडिटिंग
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