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Ben Stokes के संन्यास से क्रिकेट शेड्यूल पर सवाल,प्लेयर्स का खेल-खेलकर बुरा हाल?

Ben Stokes Retirement: बेन स्टोक्स के ODI सन्यास के बाद फ्रेंचाइजी क्रिकेट पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.

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इंग्लैंड के सबसे बड़े ऑलराउंडर्स में से एक बेन स्टोक्स (Ben Stokes) ने ODI क्रिकेट से संन्यास ले लिया. इस संन्यास के साथ दुनिया भर की क्रिकेट (Cricket) में एक ऐसा सवाल खड़ा हुआ है जिसे उठाने से अब तक हर खिलाड़ी बच रहा था. ये सवाल है खिलाड़ी को मशीन समझने का, ये सवाल है बोर्ड की कमाई के लिए खिलाड़ियों के साथ खिलवाड़ का...अगर मैं सीधे-सीधे कहूं तो ये सवाल है क्रिकेट की टाइट शेड्यूलिंग (Cricket Scheduling) का.

क्रिकेट शेड्यूल पर चौतरफा सवाल

दरअसल, सिर्फ 31 साल के बेन स्टोक्स ने 18 जुलाई को ऐलान किया कि वे ODI को अलविदा कह रहे हैं. आप भी मानेंगे कि ये संन्यास लेने की उम्र तो नहीं है, फिर स्टोक्स ने ऐसा क्यों किया? इसकी वजह भी उन्होंने खुद बताई, उन्होंने कहा, "तीनों फॉर्मेट खेलना खेलना अब मेरे लिए संभव नहीं है, खासकर जो शेड्यूल रहता है और हमसे जिस तरह के प्रदर्शन की उम्मीद की जाती है, वह काफी थकाने वाला है. मेरा शरीर मुझे इसकी इजाजत नहीं दे रहा."

बेन स्टोक्स ने जब सामने आकर बोलने की हिम्मत दिखाई तो इंग्लैंड के कई पूर्व कप्तानों ने भी इस समस्या को गंभीर बताया. केविन पिटरसन ने चुटकी लेते हुए कहा,

'एक बार मैंने कहा था कि शेड्यूल बहुत बेकार है और मैं उसके साथ डील नहीं कर सकता हूं. इसलिए मैंने वनडे क्रिकेट से संन्यास लेने का फैसला किया था, लेकिन इसके बाद बोर्ड ने मुझे टी20 क्रिकेट से भी बैन कर दिया था.'

इंग्लैंड के पूर्व कप्तान नासिर हुसैन ने कहा "स्टोक्स ने महज 31 साल की उम्र में एक प्रारूप को अलविदा कह दिया, ये किकेट के लिए शर्मनाक है. ये सिर्फ बेन स्टोक्स से जुड़ा नहीं है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय शेड्यूल का मसला है और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का शेड्यूल पूरी तरह से जैम पैक है. इसपर नजर दौड़ाने की जरूरत है, लेकिन मौजूदा समय में ये मजाक लग रहा है." इसके अलावा माइकल वॉन ने भी इसपर सवाल खड़े किए हैं.

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दुनिया भर के क्रिकेटर हैं टाइट शेड्यूलिंग से परेशान

अब आपको वर्ल्ड क्रिकेट में टाइट टाइम-टेबल के सबूत दिखाते हैं.

इंग्लैंड

इंग्लैंड का इस साल जनवरी से सितंबर तक का शेड्यूल हम आपको दिखा रहे हैं. इसमें साफ देख सकते हैं कि कैसे एक देश के साथ सीरीज खत्म होती है और तुरंत दूसरे देश के साथ सीरीज शुरू हो जाती है. इसमें गैप कभी महज 4 दिन का है, कभी 3 दिन का तो कभी 1 दिन का. इस शेड्यूल के हिसाब से तीनों फॉर्मेट खेलने वाला खिलाड़ी किसी मशीन की तरह प्रयोग किया जा रहा है.

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भारत

भारत भी इससे अछूता नहीं है. यहां भी 2 देशों के साथ सीरीज के बीच में कभी 2 दिन का गैप है, कभी सिर्फ 4 दिन, 5 दिन या 9 दिन का. इसी छोटे से गैप में खिलाड़ियों को यात्रा भी करनी होती है. अगर गैप 5 दिन से ज्यादा है जो ज्यादातर मौकों पर वार्मअप मैच भी करा लिए जाते हैं.

हालांकि, BCCI ने खिलाड़ियों को बीच-बीच में आराम देकर इस समस्या से निपटने की कोशिश की है, लेकिन ये तरीका कितना कारगर है इसपर अपने सवाल हैं. कोई भी खिलाड़ी उस दौरान घर नहीं बैठना चाहता जब आपके साथी खिलाड़ी मैदान पर खेल रहे हों. यदि कोई खिलाड़ी छुट्टी लेता भी है तो मजबूरी में.

इस फॉर्मूले से किसी भी खिलाड़ी को पर्याप्त मौके नहीं मिल पाते. न तो उस खिलाड़ी को जो पहले से टीम का हिस्सा है और न ही उस खिलाड़ी को जो टीम में नया है. क्योंकि ऐसी स्थिती में जब पुराना खिलाड़ी वापस आ जाएगा तो नए वाले को फिर टीम से बोहर होना ही पड़ेगा. इसका सबसे बेहतर उदाहरण देखना है तो भारत में संजू सैमसन और सूर्यकुमार यादव को देख सकते हैं, जो प्रतिभा होते हुए भी टी20 टीम में लंबे समय तक अपनी स्थाई जगह नहीं बना पाए.
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ऑस्ट्रेलिया

ऑस्ट्रेलिया का भी यही हाल है, बस वैसी मारामारी नहीं है जैसी इंग्लैंड में मची है. यहां भी एक-एक, दो-दो दिन के गैप के बाद दूसरे देशों के साथ सीरीज शुरू हो जा रही है. इस साल ऑस्ट्रेलिया का समर FTP यानी फॉरन टूर प्लान खिलाड़ियों के लिए काफी व्यस्त है.

फ्रेंचाइजी क्रिकेट का दबाव

क्रिकेटरों के लिए थकान का एक और कारण है कि लगभग पूरी दुनिया अब फ्रेंचाइजी क्रिकेट खेल रही है. एक से दो महीने तक बोर्ड लगातार इसी में उलझे रहते हैं. समय के साथ इसका और विस्तार हो रहा है क्योंकि फ्रेंचाइजी क्रिकेट से सीधे-सीधे बोर्ड के हाथ में पैसा आता है. माइकल वॉन ने इसको लेकर सवाल उठाया और साफ-साफ कहा कि फ्रेंचाइजी और बाइलेटरल एक साथ नहीं होना चाहिए.

अगर दुनिया भर के बोर्ड अपने-अपने फ्रैंचाइजी टूर्नामेंट के लिए बेताब हैं तो बाइलेटरल ODI या T20 सीरीज को खत्म होना होगा!! कुछ तो त्यागना पड़ेगा...31 साल की उम्र में खिलाड़ी किसी एक फॉर्मेट से संन्यास ले ले, ऐसा नहीं होना चाहिए!!!!

ये चिंता वास्तव में जायज है, क्योंकि क्रिकेट खेलने वाला लगभग हर बड़ा देश फ्रेंचाइजी क्रिकेट के मोह में फंस चुका है. यकीन न हो तो खुद देखिए कि कैसे हर देश अब अपनी एक अलग लीग चला रहा है.

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दूसरे तरफ की दलील

हालांकि एक दूसरा पहलू ये है कि तीनों फॉर्मेट में ज्यादा क्रिकेट होने से ज्यादा नए क्रिकेटरों को मौका मिलता है. अगर कोई शॉर्ट फॉर्म में ठीक है और टेस्ट में नहीं तो अब उसके पास काफी विकल्प हैं. एक बात और ये है जैसा कि भारत के आईपीएल में दिखा, फ्रेंचाइजी क्रिकेट के कारण देश को कई नए क्रिकेटर मिले हैं.

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