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बिकिनी से बगावत: ओलंपिक से बीच वॉलीबॉल तक सेक्सिजम के खिलाफ महिलाओं का हल्लाबोल

Tokyo Olympics में महिला जिमनास्टों और यूरोपियन बीच हैंडबॉल में नॉर्वे की महिलाओं ने बिकिनी को कहा ना

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नॉर्वे की महिला बीच वॉलीबॉल की टीम (Norway Women beach vollyball team) के सपोर्ट में अमेरिकन सिंगर पिंक (Singer, Pink) ने एकदम ठीक ही बोला है- ''फाइन नॉर्वे की टीम पर नहीं बल्कि यूरोपियन हैंडबॉल फेडरेशन पर लगना चाहिए, उसकी सेक्सिस्ट सोच के लिए.'' लेकिन यूरोपियन हैंडबॉल फेडरेशन पर ही क्यों जुर्माना लगे, जुर्माना तो दूसरे खेलों और खेल संघों पर लगना चाहिए. अभी ये विवाद थमा भी नहीं था कि रविवार को टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics) के क्वालिफिकेशन गेम में जर्मनी की महिला जिमनास्टों ने फुल बॉडी सूट पहनकर बिन बोले बिकिनी नुमा ड्रेस के खिलाफ अपना विरोध जता दिया. लेकिन महिलाओं के साथ भेदभाव और खेलों में महिलाओं को ऑब्जेक्टिफाई करने के उदाहरण तो भरे पड़े हैं. नॉर्वे और जर्मनी की महिलाओं ने दरअसल उस पूरी सोच के खिलाफ बगावत की है.

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क्या है पूरा मामला?

स्पोर्ट्स में ड्रेस नाम पर होने वाले सेक्सिजम के विरोध में नॉर्वे फीमेल बीच वॉलीबॉल टीम ने हाल ही में बिकिनी बॉटम वाले ड्रेस कोड की बजाय पुरुषों की तरह शॉर्ट्स वाले ड्रेस में मैच खेला. यूरोपियन हैंडबॉल बीच चैम्पियनशिप के दौरान नॉर्वे की ये टीम स्पेन की टीम के साथ खेली थी लेकिन ड्रेस कोड के उल्लघंन में यूरोपियन हैंडबॉल फेडरेशन ने नॉर्वे की टीम पर 1500 डॉलर का फाइन लगा दिया. अब सिंगर पिंक ने कहा है कि इन महिलाओं ने कुछ भी गलत नहीं किया है और इनपर लगा जुर्माना वो भरने के लिए तैयार हैं. नॉर्वे के वॉडीबॉल फेडरेशन ने अपनी टीम का साथ दिया है और जुर्माना भरने की पेशकश की है.

क्या है बीच वॉलीबॉल में ड्रेस कोड?

महिलाओं को इस गेम में स्पोर्ट्स ब्रा और बिकिनी बॉटम पहनना होता है. बिकिनी बॉट्म भी कोई अपनी मर्जी का नहीं बल्कि यूरोपियन हैंडबॉल फेडरेशन के सेट किए हुऐ नाप वाला पहनना होता है जो काफी रिवीलिंग होता है.

दूसरी ओर मेल बीच वॉलीबॉल के खिलाड़ी शॉर्ट और टीशर्ट में खेलते हैं. सेम स्पोर्ट्स के लिए दो तरह का ड्रेस कोड और उसमें भी फीमेल की ड्रेस ऐसी जिसे पहनने में वो कंफर्टेबल हों या ना हो. इस बात पर कई बार बीच वॉलीबॉल की महिला खिलाड़ी कर चुकी हैं.

नॉर्वे फीमेल बीच वॉलीबॉल टीम पहली ऐसी टीम नहीं है जिसने खेलों में महिला और पुरुष के बीच होने वाले भेदभाव का विरोध किया है. यहां हम चंद और स्पोर्ट्स का जिक्र कर रहे हैं, जिसमें ऐसी ड्रेस हैं जहां कपड़ों से सेक्सिजम झलकता है

जिमनास्टिक में सिर्फ महिलाओं के लिए बिकिनी स्टाइल ड्रेस

टोक्यो ओलंपिक में रविवार को बिकिनी नुमा ड्रेस की जगह फुल बॉडी सूूट पहनने वाली जर्मनी की खिलाड़ियों का कहना था कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि महिलाओं को वो पहनने के लिए बढ़ावा मिले जिसमें वो आराम महसूस करती हैं. टीम की सदस्य सारा वोस ने पहले भी ऐसे ड्रेस की पैरवी की है. इसी साल सारा वोस ने यूरोपियन आर्टिस्टिक जिमनास्टिक चैम्पियनशिप में फुल बॉडी सूट पहना. बाद में सारा के इस कदम का दो और साथी खिलाड़ियों ने समर्थन किया और फुल बॉडी सूट पहना. सारा अपने इस बोल्ड स्टेप के बाद काफी चर्चा में आ गईं और महिला खिलाड़ियों के अलावा विदेशी मीडिया में भी उनको सराहना मिली.

यूनिटाड

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जिमनास्टिक में भी मेल और फीमेल के लिये अलग ड्रेस कोड है. जहां मेल जिमनास्टिक फुल बॉडीसूट पहनता है जिसे यूनीटाड कहते हैं. महिला जिमनास्टिक लीयटाड पहनती है जिसमें बिकिनी स्टाइल ड्रेस होती है और उसमें हिप्स से नीचे का पूरा हिस्सा ओपन होता है.

लीयटाड

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टेनिस कोर्ट में रैकेट के साथ हवा में लहराती स्कर्ट

2019 में फ्रेंच ओपन के दौरान जब सेरेना विलियम्स कैट सूट पर टेनिस कोर्ट में आईं तो उस पर खूब विवाद हुआ. हालांकि उसके पीछे वजह बतायी गई थी वो ड्रेस सेरेना ने प्रेगनेंसी में ब्लड क्लॉट से बचने के लिये पहनी थी. लेकिन इससे पहले भी महिला टेनिस प्लेयर और पुरुष टेनिस प्लेयर के अलग ड्रेस कोड होने पर सवाल उठते रहे हैं.

मेल खिलाड़ी शॉर्ट्स और टीशर्ट में खेलते हैं तो वहीं फीमेल प्लेयर स्कर्ट और स्लीवलेस टीशर्ट में रैकेट घुमाती हैं. हालांकि उस स्कर्ट का कोई यूज नहीं क्योंकि प्लेयर टेनिस बॉल ज्यादातर नीचे पहने शॉर्ट्स में रखती हैं. तो फिर स्कर्ट का क्या औचित्य है?

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रेसिंग ट्रैक पर भेदभाव

रेस ट्रैक पर भी आप देखो तो मेल और फीमेल एथलीट के कपड़ों में अंतर दिखता है. उसेन बोल्ट या कोई भी दूसरा रेसर आपको टैंक टॉप और स्पैडक्स में दौड़ते नजर आएगा जिनमें उनकी आधी बॉडी ढकी रहती है. लेकिन वहीं महिलाओं के लिये स्पोर्ट्स ब्रा और बहुत छोटे शॉर्ट का नियम है.

कपड़े ही नहीं, पैसा भी देखिए

महिलाओं को लगभग हर खेल में शामिल तो कर लिया लेकिन इनाम की राशि कम देकर पूरी दुनिया में उनको कमतर बता देते हैं. फीफा वर्ल्ड कप जीतने पर मेल टीम को मिलता हैं 38 मिलयन डॉलर के करीब और फीमेल टीम को मिलते हैं बस 2 मिलयन डॉलर. यही हाल क्रिकेट, हॉकी और दूसरे एथलेटिक गेम्स में भी है. यानी खेल एक सा, मेहनत एक सी लेकिन पैसा पुरुषों की टीम के लिए ज्यादा, स्टार वो बड़े ज्यादा.

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ये सिर्फ कुछ उदाहरण हैं जिनसे ये पता चलता है कि महिलाओं को खेलों में ऑब्जेक्टिफाई किया जाता है. ओलंपिक जहां जोश, जुनून और जज्बे की बात होती है, टैलेंट की बात होती है, वहां भी ये भेदभाव देखा जा सकता है. जब तक खेल आयोजनों में महिलाओं के साथ ये भेदभाव होता रहेगा तब तक ये थोड़े कम महान रहेंगे. आज हमें ये सुनकर भी ताज्जुब होता है कि कभी महिलाओं को वोट का अधिकार नहीं था. आने वाली पीढ़ियां 21वीं सदी की दुनिया पर हंसेंगी कि हम महिला खिलाड़ियों के साथ ऐसा बर्ताव करते थे. नॉर्वे की महिला वॉलीबॉल टीम ने आज की दुनिया को कल आने वाली उस शर्म से बचाने की कोशिश की है. उन्हें सम्मान मिलना चाहिए, जुर्माना नहीं.

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