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Tokyo Olympics: प्रवीण को मिला 31वां रैंक, मजदूरी न करना पड़े सो उठाया तीर-कमान

Tokyo Olympics तीरंदाजी से गरीबी को हराया क्या पदक दिला पाएंगे जाधव?

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टोक्यो ओलंपिक 2020 (Tokyo Olympics 2020) में तीरंदाजी (Archery) स्पर्धा के व्यक्तिगत रैंकिंग राउंड (Individual Recurve Ranking Round) के परिणाम आ गए हैं. महिला वर्ग में दीपिका कुमारी 9 वें स्थान पर रहीं, वहीं पुरुषों में प्रवीण जाधव, अतनु दास और तरुणदीप राय क्रमश: 31वें, 35वें और 37वें स्थान पर रहे. सतारा, महाराष्ट्र के प्रवीण का यह पहला ओलंपिक है.उनके माता-पिता मजदूरी करते हैं, ऐसे में उनके लिए यह काफी गौरवांवित करने वाला समय होगा. प्रवीण ने काफी संघर्ष करके यहां तक की राह तय की है. आइए उनके संघर्ष पर एक नजर डालते हैं.

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मजदूरी न करनी पड़े इसलिए खेल में आया : प्रवीण

पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में खुद प्रवीण जाधव ने कहा था कि हमारी हालत बहुत खराब थी. मेरा परिवार पहले ही कह चुका था कि सातवीं कक्षा में ही स्कूल छोड़ना होगा ताकि पिता के साथ मजदूरी कर सकूं. एक दिन स्कूल के खेल प्रशिक्षक विकास भुजबल सर ने मुझसे एथलेटिक्स में भाग लेने को कहा. सर ने मुझे दौड़ने के लिए लिए कहा. उन्होंने बोला था कि इससे जीवन बदलेगा और दिहाड़ी मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी. तब मैंने 400 से 800 मीटर दौड़ना शुरू किया.

लेकिन शारीरिक रूप से बहुत मजबूत नहीं होने के कारण प्रवीण बतौर एथलीट ज्यादा सफल नहीं हो पाएं. इसके बाद उनके खेल प्रशिक्षक ने उन्हें कोई दूसरा खेल देखने को कहा. तब उनकी ही सलाह पर प्रवीण तीरंदाज बन गए.

पिता दिहाड़ी मजदूर, मुश्किल से होता था खाने का इंतजाम

प्रवीण एक इंटरव्यू में कहते हैं कि हमारे घर की छत आज भी टीन की है. आज मैं जो कुछ हूं, वह आर्चरी की बदौलत ही हूं. अगर मैं स्पोर्ट्स में नहीं आता, तो मजदूरी कर रहा होता. मेरे परिवार को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता. जब मैं एथलेटिक्स करता था, तो कई बार भूखे पेट भी दौड़ना पड़ जाता था. एक बार मैं बेहोश हो गया था. यह बात जब भुजबल सर को पता चली तो उन्होंने मेरी मदद की. वे हमारे खाने-पीने का काफी ध्यान रखते थे.

मेरी मां और पिता दूसरों के खेत में मजदूरी करते थे. आर्मी में नौकरी मिलने के बाद से मैंने उन्हें मजदूरी करने से रोक दिया और अब वे घर पर ही रहते हैं.

प्रवीण के तीरंदाजी का खेल चुनने के पीछे सबसे बड़ी वजह उनके घर की गरीबी ही थी. प्रवीण ने अपने परिवार की गरीबी मिटाने के लिए धनुष उठाया था. जाधव ने एक बार कहा था कि हम एक छोटी सी झोपड़ी में रहते थे, जहां बिजली की भी कोई सुविधा नहीं थी. हमारे पास दो वक्त के खाने के लिए भी पैसे नहीं थे.

10 में 10 गेंदों को छल्ले में डाला, यहीं से तीरंदाजी में आना हुआ 

अहमदनगर एकेडमी के हॉस्‍टल में प्रवीण की आर्चरी में एंट्री अनोखे अंदाज हुई थी. वहां एक ड्रिल हुई थी, जिसमें प्रवीण ने 10 मीटर की दूरी से 10 में से 10 गेंदें रिंग में डाली थी. इंटरव्यू में जाधव ने कहा था कि चूंकि मेरा शरीर थोड़ा कमजोर था, तो मुझे आर्चरी में हाथ आजमाने को कहा गया और इसके बाद से मैंने इसे जारी रखा.

वे बताते हैं तीरंदाजी की प्रैक्टिस सबसे पहले बांस के धनुष से करनी शुरू की थी. उसके बाद धीरे-धीरे आधुनिक उपकरणों पर हाथ जमाना होता है.

अहमदनगर के बाद प्रवीण अमारवती गए जहां उन्होंने अपनी तीरंदाजी को धार दिया और एक साल के अंदर ही नेशनल लेवल पर मेडल जीता. यहां तक प्रवीण एथलीट्स और आर्चरी दोनों में प्रैक्टिस करते थे लेकिन इसके बाद वे आर्चरी में ही पूरा ध्यान देने लगे.

2015 में उनका चयन इंटरनेशनल जूनियर कॉम्पिटिशन के लिए इंडिया कैंप में हुआ, उसके बाद 2016 में सीनियर टीम के साथ वर्ल्डकप के लिए वे सिलेक्ट हुए.

2016 में प्रवीण ने बैंकॉक में आयोजित एशिया कप स्टेज-1 में पहली बार भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए पुरुष रिकर्व टीम स्पर्धा में कांस्य पदक जीता था.

2019 में प्रवीण ने अतनु दास और तरुणदीप के साथ मिलकर विश्व तीरंदाजी चैम्पियनशिप की पुरुष रिकर्व टीम स्पर्धा का रजत पदक जीता. इस दौरान उन्होंने कनाडा (छठी रैंक) को शिकस्त देकर नॉकआउट दौर में जगह बनाई थी, जिसके बाद रिकर्व टीम ने ओलंपिक कोटा हासिल कर लिया था.

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तीरंदाजी में सफल न होते तो मजदूरी करनी पड़ती!

एक इंटरव्यू में प्रवीण ने कहा था कि मुझे पता था कि अगर आर्चरी में सफल नहीं हुआ तो मजदूर बनना होगा, इसलिए मैंने कड़ी मेहनत जारी रखी. भारत के मुख्य कोच मिम बहादुर गुरंग ने प्रवीण के बारे में कहा है कि वह क्षमतावान हैं. वह हर परिस्थिति में शांत रहते हैं, जो उनकी सबसे बड़ी खूबी है. व्यक्तिगत रैंकिंग राउंड के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे प्रवीण का प्रदर्शन कैसे रहेगा? क्या यहां से पदक आ पाएगा?

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