'भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में एक नाम 'आनंद' सामने आया और उन्होंने उसे आनंद तेलतुंबडे से जोड़ दिया. और हमारी जिंदगी उथल-पुथल हो गई."
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक, दलित एक्टिविस्ट और लेखक आनंद तेलतुंबडे ने 14 अप्रैल को NIA के सामने सरेंडर कर दिया. इस बात के एक महीने बाद उनकी पत्नी और डॉ बीआर अंबेडकर की पौत्री रमा तेलतुंबडे ने बताया कि 20 अगस्त 2018 से उनकी जिंदगी कैसे बदल गई, जब उस साल जनवरी में हुई भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में पुलिस उनके घर आई थी.
सरेंडर से पहले बेटियों को आखिरी कॉल
आनंद तेलतुंबडे ने सरेंडर से पहले विदेश में रह रही अपनी दोनों बेटियों को कॉल किया और उनसे कहा, "अपनी जिंदगी जीती रहना."
रमा तेलतुंबडे ने कहा, "उन्होंने मुझसे भी सामान्य रूप से जिंदगी जीते रहने को कहा था. लेकिन ये बहुत मुश्किल है."
तेलतुंबडे को अब मुंबई की तलोजा जेल शिफ्ट कर दिया है, जहां उनकी पत्नी रेगुलर उनसे नहीं मिल सकती. रमा ने बताया, "जब वो NIA की कस्टडी में थे, उन्होंने मुझे आनंद से रोजाना एक घंटे मिलने दिया. मैं रोज आनंद को मोरल सपोर्ट देने जाती थी."
रमा ने कहा, "अब मुझे नहीं पता कि वो कैसे हैं या वो किस स्थिति में हैं. मैं कभी-कभी बहुत ज्यादा परेशान हो जाती हूं."
'सुप्रीम कोर्ट से जमानत याचिका खारिज होने पर उम्मीद खो दी थी'
तेलतुंबडे समेत कई नागरिक अधिकार एक्टिविस्ट पर सख्त प्रावधानों वाले UAPA के तहत मामला दर्ज किया गया था. इन पर आरोप लगे कि इनका संपर्क कथित रूप से माओवादियों के साथ है और ये लोग सरकार गिरना चाहते हैं.
पुलिस के मुताबिक, इन एक्टिविस्ट ने 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद बैठक में भड़काने वाले भाषण दिए थे. पुलिस ने कहा कि इन भाषणों की वजह से अगले दिन हिंसा भड़क गई.
तेलतुंबडे और गौतम नवलखा को बॉम्बे हाई कोर्ट ने गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा दी थी, जिस दौरान उनकी गिरफ्तारी से पहले की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई चल रही थी.
हाई कोर्ट से अपील खारिज होने के बाद दोनों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. 17 मार्च 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने भी इनकी याचिका खारिज कर दी और इन्हें सरेंडर के लिए तीन हफ्तों का समय दिया. 9 अप्रैल को कोर्ट ने दोनों को एक और हफ्ते की मोहलत दी थी.
रमा तेलतुंबडे ने कहा, "दो सालों से हम अदालतों में जमानत के लिए लड़ रहे थे. हमें लगा कि कुछ राहत मिल जाएगी."
जब सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज की, तो हम पूरी तरह टूट गए थे. हमें नहीं पता था कि अब क्या करें. और कोई रास्ता नहीं बचा था.रमा तेलतुंबडे
COVID संकट के बीच परिवार को आनंद की सेहत की फिक्र
कोरोना वायरस महामारी की वजह से देशभर के जेल खाली किए जा रहे हैं. कई बंदियों के कोरोना वायरस पॉजिटिव पाए जाने की खबरें भी सामने आई हैं. ऐसे में रमा तेलतुंबडे की पत्नी का कहना है कि आनंद के लिए बहार आने का रास्ता नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद महाराष्ट्र सरकार ने 11,000 कैदियों को अस्थायी तौर पर रिहा करने का फैसला किया. ये वो कैदी हैं, जिनकी सजा सात साल से कम है.
रमा ने कहा, "आनंद का ट्रायल अभी शुरू ही नहीं हुआ, तो हमें कैसे पता चलेगा कि उनकी सजा कितनी है."
मैं काफी डरी हुई हूं. आनंद 70 साल के हैं और उन्हें अस्थमा भी है. हमने कोर्ट से महामारी के समय हमें राहत देने की अपील की, लेकिन कोर्ट ने अपील खारिज कर दी.”रमा तेलतुंबडे
'कोर्ट पर पूरा भरोसा है, आनंद बाइज्जत बरी होंगे'
पुलिस और कोर्ट के साथ लंबे संघर्ष के बाद भी रमा का कहना है कि उन्होंने देश की न्यायिक व्यवस्था में भरोसा नहीं खोया है. रमा को उम्मीद है कि आनंद जल्दी ही बाइज्जत बरी होंगे. रमा ने कहा, "मैं चाहती हूं कि ट्रायल जल्द से जल्द शुरू हो जाए. एक बार ट्रायल शुरू हो गया, तो सच सबके सामने आ जाएगा."
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)