वीडियो एडिटर: मौसमी सिंह
आज GDP के आंकड़ों में चुनावों के एग्जिट पोल जैसी स्ठिति बन गई क्यों कि अर्थशास्त्री मानकर चल रहे थे कि जीडीपी में करीब 8% की नेगेटिव ग्रोथ देखने को मिल सकती है. लेकिन आंकड़ों ने थोड़ा चौंकाया और जीडीपी ग्रोथ -7.5% रही. इसका मतलब ये है कि फाइनेंशियल ईयर 2020-21 की पहली तिमाही में ग्रोथ 23.9% नेगेटिव में रही थी, जिसके मुकाबले दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रिकवर होकर -7.5% रही है. सरकार कह रही है कि ये एक 'वी शेप' रिकवरी है लेकिन ये ऐसा नहीं है. मानलो अगर कोई गढ्ढे में 24 फुट गिरा था लेकिन अब सिर्फ 7 फुट गिरा है. कुल मिलाकर बात इतनी है कि व्यक्ति अभी भी गढ्ढे में ही है. तो इन आंकड़ों पर ताली बजाने जैसा कुछ नहीं है.
मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ में तेजी देखने देखने को मिली है और अब ये पॉजिटिव जोन में आ गयी है. एग्रीकल्चर में भी ग्रोथ देखने को मिली है. सर्विस सेक्टर में रिकवरी अच्छी है, लेकिन वो अभी भी नेगेटिव जोन में ही है. लेकिन जो 2 डेटा सबसे खराब हैं, वो ये कि सरकारी खर्च में गिरावट है और प्राइवेट खर्च में गिरावट.
अभी भी चिंता खत्म नहीं हुई
अगर सेक्टर को देखें तो आंकड़े मिले जुले हैं. अर्थशास्त्रियों ने जब जीडीपी के आंकड़े देखे तो उनका कहना था कि निश्चित तौर पर ये आंकड़े अनुमान से बेहतर हैं लेकिन अभी भी चिंता खत्म नहीं हुई है. क्योंकि अगली तिमाही भी शायद नेगेटिव जोन में ही रहेगी. चौथी तिमाही में कहीं जाकर इकनॉमी पॉजिटिव टेरिटरी में आएगी. इस पूरे फाइनेंशियल ईयर के लिए अनुमान था कि -10.5% जीडीपी ग्रोथ रहेगी, लेकिन अब हो सकता है कि वो -8% पर छूटे.
रिकवरी की क्या है वजह?
इकनॉमी में रिकवरी की सबसे बड़ी वजह ये है कि कोरोना वायरस के बाद लगे लॉकडाउन की वजह से उन दिनों में लोगों ने जो खरीदारी नहीं की थी, उस पेंटअप डिमांड की वजह से ग्रोथ आई है. इसके अलावा फेस्टिवल सेल, ऑटो सेल्स में तेजी वगैरह ने भी रिकवरी की उम्मीद बढ़ा दी. लेकिन अगर ऑटो बिक्री के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि जितनी गाड़ियां मैन्यूफैक्चर की जा रही हैं, उतनी गाड़ियां बिक नहीं रही हैं. कुल मिलाकर यहां पर भी मिले जुड़े आंकड़े देखने को मिल रहे हैं.
आकंड़ों पर ताली मत पीटिए, लेकिन थोड़ी राहत जरूर
कोर सेक्टर में भी मिले जुले आंकड़े देखने को मिल रहे हैं. एक्सपर्ट बताते हैं कि रिकवरी के इन आंकड़ों में एक बड़ी वजह ये भी है कि कई सारी कंपनियों ने अपने खर्चों में कटौती की है जिसकी वजह से उनका मुनाफा बढ़ गया है और यही ग्रोथ में झलक रहा है. लेकिन असल में प्रोडक्शन उतना नहीं हुआ है. एक्सपर्ट कह रहे हैं कि इन आकंड़ों पर ताली मत पीटिए, लेकिन थोड़ी राहत ले सकते हैं.
तकनीकी रूप से अब इकनॉमी मंदी में
लगातार दो तिमाहियों में ग्रोथ नेगेटिव रही है तो इस हिसाब से अब जाकर तकनीकी रूप से इकनॉमी मंदी में आ गई है. एशिया में हम ग्रोथ के मामले में सबसे पीछे चल रहे हैं. 24 बड़े देशों की लिस्ट में भी हम सबसे पीछे हैं ये भी चिंतित करने वाली बात है. चिंता बढ़ाने वाली एक और बात ये है कि सरकार ने अपना खर्च कम कर दिया है. प्राइवेट सेक्टर ने भी अपना निवेश घटा दिया है. कर्ज के बाजार का हाल चाल बताने वाला डेटा क्रेडिट ग्रोथ भी इस वक्त 5% के करीब है. नरेगा की डिमांड अगर बढ़ रही है, इससे ये साफ होता है कि असंगठित क्षेत्र में भी हालत खराब है.
अब आगे क्या होगा?
जब तक कोरोना महामारी को नियंत्रित किए जाने के बारे में सफाई नहीं आती है तब तक इकनॉमी की रफ्तार बढ़ाना मुश्किल होगा. अभी तक इकनॉमी में तेजी पहले की बची हुई डिमांड, कुछ रिजर्व बैंक के अच्छे कदमों की वजह से चली है. सरकार के 30 लाख करोड़ के पैकेज के बाद अगर ये असर देखने को मिला है तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ये बेअसर डिलेवरी है. सरकार के लिए जरूरी है कि अगर सरकार को प्री-कोरोना स्तर तक पहुंचना है तो इस साल संभव नहीं दिखता. लेकिन अगर सरकार बहुत जोर लगा दे, तो हो सकता है कि चौथी तिमाही तक हम अपने पुराने दिनों में लौट सकते हैं. लेकिन इसके लिए सरकार को दिल कड़ा करना होगा. 11 बड़े राज्यों का रेवेन्यू करीब 20% गिरा हुआ है, मतलब साफ है कि सरकार के पास खर्च करने के लिए पैसे ही नहीं है.
सरकार की दुविधा यही है कि जब तक कोरोना की स्थिति साफ न हो जाए, तब तक सरकार खुलकर खर्च नहीं करेगी. अब अगला बड़ा फैक्टर बजट पर होगा. बजट में सभी की नजर फिस्कल डेफिसिट पर होगी. इससे पता चलेगा कि सरकार फिस्कल मैनेजमेंट को लेकर कितनी अनुशासित है. RBI से ज्यादा उम्मीद इसलिए नहीं की जा सकती कि अगर महंगाई बढ़ेगी तो वो भी हाथ खड़े कर देगा. अभी हम एक मामूली राहत ले सकते हैं, लेकिन भारत जैसे देश की जरूरतों के लिए ये ग्रोथ नाकाफी है.
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