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सऊदी यात्रा: मुस्लिम देशों से क्या हासिल करना चाहते हैं मोदी?

PM नरेंद्र मोदी का सऊदी अरब दौरा, एक तीर से कई निशाने  

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कैमरा: सुमित बडोला

प्रोड्यूसर: कौशिकी कश्यप

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हर विदेश यात्रा अहम होती है. लेकिन सऊदी अरब का दौरा बेहद खास है. इसमें एक तीर से कई शिकार हुए हैं.

दो लफ्जों पर ध्यान दीजिए- फ्यूचर और स्ट्रेटजिक.

समझने की कोशिश करते हैं कि क्या हैं बड़े मैसेज और बड़े आउटकम. पहला तो ये है कि मिडिल ईस्ट के सभी देशों से हमारे रिश्ते अब नई ऊंचाई ले रहे हैं. और अब भारत ने सऊदी अरब के साथ स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप का समझौता किया है. यानी आम कारोबार के आगे एनर्जी, सिक्योरिटी, इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे सेक्टर्स में दोस्ती बढ़ाई जाएगी. मोदी रियाद में सऊदी सरकार का एक विशेष आयोजन अटेंड करने गए थे, वो है फ्यूचर इन्वेस्टमेंट इनिशएटिव फोरम. वहां उन्होंने की-नोट भाषण दिया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 अक्टूबर की देर रात सऊदी अरब के 2 दिवसीय यात्रा पर पहुंचे.
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पाकिस्तान हुआ अलग-थलग, टर्की को सबक

दूसरी बड़ी हाइलाइट ये है कि इस फोरम में पाकिस्तान को नहीं बुलाया गया था. आप इसे भारत की कूटनीतिक सफलता कह सकते हैं. सऊदी पाकिस्तान का भी दोस्त है लेकिन अब वो भारत और पाकिस्तान के बीच न्यूट्रल रहना चाहता है.

सऊदी ने भारत के साथ जो साझा बयान दिया है उसमें ये कहा गया है कि दोनों देश किसी भी देश के अंदरूनी मामलों में दखलंदाजी को रिजेक्ट करते हैं. कश्मीर में आर्टिकल 370 को जब भारत ने बेअसर कर दिया तो सऊदी ने कोई नेगेटिव प्रतिक्रिया नहीं दी बल्कि ये कहा कि वो भारत के एक्शन और अप्रोच को समझता है.

पाकिस्तान को करीब-करीब पूरे मुस्लिम वर्ल्ड में अलग-थलग करना और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सहयोग करना- ये मोदी डिप्लोमसी की एक बड़ी कामयाबी के रूप में देखा जा रहा है.
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इस यात्रा में हालांकि टर्की पर कोई फोकस नहीं था, लेकिन ध्यान देने की बात है कि सऊदी और टर्की के रिश्ते खराब हैं. टर्की ने कश्मीर एक्शन की आलोचना की तो भारत ने तय कर लिया कि टर्की को सबक सिखाया जाएगा.

मोदी की इस यात्रा में भारत ने इस बात को हाइलाइट किया कि जहां तक पड़ोसियों का सवाल है भारत और सऊदी का हाल एक जैसा है. खबरें हैं कि भारत टर्की के खिलाफ कुछ और एक्शन की तैयारी में है. उसने ट्रैवल अडवाइजरी जारी कर के कहा भी है कि टर्की की यात्रा सोच समझ के करें.

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मुस्लिम वर्ल्ड से भारत के रिश्ते में मजबूती

मुस्लिम वर्ल्ड से भारत के रिश्ते अच्छे रहे हैं. लेकिन नयी बात ये है कि अब उसमें गहराई आ रही है. सरकार का अप्रोच ये है कि मिडिल ईस्ट देशों के आपसी टकराव में वो ना पड़े, सबसे इंडिपेंडेंट रिश्ते बने और बाइलैटरल रिश्तों पर जोर रहे. इसलिए इजरायल और फिलिस्तीन दोनों से भारत आराम से डील कर रहा है.

ईरान और सऊदी में भले ही अनबन हो, ईरान से भारत का रिश्ता अपनी जगह ठीक है. टर्की की बात तो हमने अभी की ही.

सऊदी यात्रा से भारत को क्या मिला?

अपनी सऊदी यात्रा में पीएम मोदी ने भारत में निवेश के मौके बताए लेकिन एक नयी बात पर जोर दिया. वो ये कि ट्रेड रिलेशन्स की ही तरह मैनपावर के लिए भी आना जाना और काम करना आसान बनाया जाए.

  • सिर्फ सऊदी में करीब 30 लाख भारतीय काम करते हैं.
  • सऊदी से हम अपनी जरूरत का 18% तेल इम्पोर्ट करते हैं.
  • सऊदी और भारत केल बीच आपसी कारोबार 27 बिलियन डॉलर का है.
  • PM ने सऊदी की कम्पनी आरामको और रिलायंस की पार्टनरशिप का जिक्र भी किया. आरामको रिलायंस में 20 % शेयर लेने वाला है.

सऊदी पहले से कह चुका है कि वो भारत में 100 बिलियन डॉलर निवेश करेगा. और मोदी ने बताया कि भारत एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर पर 100 बिलियन डॉलर लगाने वाला है. सऊदी को टेक्नॉलजी और डिफेंस में भारत से काफी मदद चाहिए. दोनों देश जल्दी ही नौसैनिक एक्सरसाइज भी करने वाले हैं.

इस यात्रा में जो नजदीकियां बढ़ी हैं, उसका एक मैसेज भारत के भीतर भी है. मोदी ने इंटरनेशनल स्टेज से भारतीय मुस्लिम समाज तक पहुंचने के लिए एक नायाब तरीका निकाल रखा है. इसलिए दोस्त बराक हों, या ट्रंप, उसी और उतनी ही सहजता से हिज एक्सेलेन्सी किंग सलमान और हिज हायनेस क्राउन प्रिन्स मुहम्मद बिन सलमान से अपनी नजदीकियां वो अंडरलाइन करते हैं.

FIIF को ‘डावोस ऑफ डेजर्ट’ कहा जाता है. जहां बिजनेसमैन भी शामिल होते हैं. इसी प्लेटफॉर्म से मुकेश अंबानी और आनंद महिंद्रा ने इस बात पर जोर दिया कि भारत में मंदी की कोई समस्या नहीं है और ग्लोबल इन्वेस्टर्स के लिए यहां मौके ही मौके हैं.

अमेरिका और चीन की बड़ी दोस्ती को बैलेंस करना अपनी जगह है. लड़खड़ाते यूरोप के बीच भारत का मिडिल ईस्ट से दोस्ताना बढ़ाना एक जरूरी काम था, धीमे चलता था. अब इसे फ्यूचरिस्टिक और स्ट्रेटजिक बनाना है. सऊदी की ये यात्रा शायद उसमें तेजी लाएगी.

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