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राजस्थान पॉलिटिक्स : तख्तापलट को गहलोत ने कैसे किया ‘टैप’?

गहलोत ने इस तख्तापलट को कुछ इस तरह हैंडल किया कि सरकार अल्पमत में नहीं आ पाई

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राजस्थान में भी मध्य प्रदेश की ही तरह अचानक सियासी भूचाल आया और लगा कि इससे सरकार भी पलट जाएगी. लेकिन अशोक गहलोत ने इस तख्तापलट को कुछ इस तरह हैंडल किया कि सरकार अल्पमत में नहीं आ पाई. जबकि इससे पहले डिप्टी सीएम सचिन पायलट की तरफ से दावा किया जा चुका था कि 30 विधायक उनके साथ हैं. लेकिन विधायक दल की बैठक में गहलोत ने करीब 107 विधायकों की परेड कराकर अपनी ताकत दिखा दी.

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तो क्या विधायक दल की बैठक के बाद अशोक गहलोत सरकार पर मंडराता खतरा टल चुका है? क्योंकि आज की जीत के बाद भी सरकार को ये खतरा तो है कि अब उनके पास ज्यादा विधायक नहीं बचे हैं. यानी आंकड़ा 100 के आसपास है. अब अगर कुछ विधायक और कम हुए तो सरकार गिरने का डर है. इसीलिए मुख्यमंत्री गहलोत समेत सभी कांग्रेस विधायक होटल में डेरा डाल चुके हैं.

क्यों बागी हुए सचिन पायलट?

राजस्थान में राज्यसभा चुनाव से ही कहा जा रहा था कि सरकार को गिराने की कोशिश हो रही है. लेकिन तब गहलोत ने अपने 123 विधायकों के साथ दिखाया कि उनकी सरकार काफी मजबूत स्थिति में है. इसके बाद लगातार ऐसी कोशिशें चलती रहीं. लेकिन अब सचिन पायलट ने बगावत कर दी है. पायलट की नाराजगी की वजह मुख्यमंत्री की कुर्सी है, क्योंकि वो चुनाव के वक्त से ही खुद को इसका दावेदार मान रहे थे. लेकिन वो उप मुख्यमंत्री के तौर पर काम करने लगे. इसके बाद उन्होंने आरोप लगाया कि सीएम अशोक गहलोत उनसे बिना पूछे ही काम कर रहे हैं. इसीलिए लगातार ये मतभेद चलता रहा.

दरअसल चुनाव के वक्त पायलट की इस नाराजगी को दबाकर दोनों के बीच जबरन एक समझौता कराया गया. लेकिन ये एक बेमेल शादी थी, जिसमें लगातार कलह होती रही. ऐसे ही चुनाव जीतने के बाद से ये सरकार चलती रही. ऐसा नहीं है कि ये पहली बार हो रहा है, ऐसा दूसरी या तीसरी बार हो रहा है.
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'तख्तापलट' को गहलोत ने वक्त रहते किया 'टैप'

अब अगर इस ताजा एपिसोड को लेकर पिछली घटनाओं पर नजर डालें तो इस बार शायद सरकार गिराने को लेकर काम हो रहा था. इसमें बकायदा दो लोगों को गिरफ्तार भी किया गया. जो ये बात कर रहे थे कि कितने करोड़ में कितने विधायक आ सकते हैं, जिससे मुख्यमंत्री बदला जा सकता है. इसके बाद अशोक गहलोत ने रिस्क लेकर एक बड़ा कदम उठाया और पुलिस को मामला दर्ज करने को कहा. इसके बाद मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री पायलट समेत कुछ लोगों को नोटिस जारी हुए कि स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप उनसे पूछताछ करेगा.

अब ये बात सचिन पायलट को नागवार गुजरी कि उन्हीं की पार्टी में उन्हें कटघरे में खड़ा किया जा रहा है. लेकिन अशोक गहलोत ने पहले से तैयारी की थी, उन्होंने जाकर हाईकमान को समझाया कि बीजेपी सरकार गिराने की कोशिश कर रही है और उसमें पार्टी के कुछ लोग मिले हैं. हमें इसकी जांच करानी चाहिए.

गहलोत ने ये भी कहा कि अगर किसी और के ऊपर आने से सरकार बच सकती है तो मैं हट जाता हूं. यहां पर आलाकमान ने चुप्पी तो दिखाई, लेकिन एक तरह से गहलोत को हरी झंडी दे दी कि जो आपको ठीक लगता है वो कीजिए.

सचिन पायलट नहीं समझ पाए गहलोत का 'जादू'?

अब अगर गहलोत ने ये सब कुछ किया था तो शायद सचिन पायलट की तरफ से पूरा खेल तैयार नहीं था. बीजेपी से शायद उनकी बातचीत चली होगी, लेकिन मीटिंग से ठीक पहले उन्होंने ये साफ कर दिया कि वो बीजेपी ज्वाइन नहीं करेंगे. तो इस गेम में बीजेपी कहां है? दरअसल बीजेपी को मध्य प्रदेश की तरह यहां की स्क्रिप्ट क्लियर नहीं दिख रही थी. उन्होंने ये सोचा होगा कि अगर पार्टी में झगड़ा होता है और सरकार गिरती है तो इसमें हमारा तो कोई नुकसान नहीं है. हो सकता है कि पायलट के साथ बाचतीत कर उन्हें कुछ ऑफर दिया गया हो, लेकिन बात बनी न हो.

दरअसल सचिन पायलट को लगता है कि मुख्यमंत्री उन्हें ही होना चाहिए, क्योंकि पार्टी की जीत के लिए उन्होंने मेहनत की थी. लेकिन तब विधायक गहलोत के साथ थे. इस पर आखिर में कांग्रेस पार्टी ने कहा कि व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा वाजिब हो सकती है, लेकिन इस आधार पर पार्टी के पॉलिटकल फैसले नहीं हो सकते हैं.

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