वीडियो एडिटर- संदीप सुमन और विवेक गुप्ता
कैमरा- फकीह अहमद खान
“अब तो पैदल चल ही रहे हैं. 700-800 किलोमीटर चलकर आए हैं. कहीं-कहीं साधन मिला है. अभी 60-70 किलोमीटर और चलना है. पैदल ही चल रहे हैं.” राजस्थान के जोधपुर से बिहार के सुपौल पैदल ही जा रहे नवीन ये बातें चलते-चलते ही कहते हैं. जोधपुर से सुपौल की दूरी करीब 1600 किलोमीटर है. जिसमें से करीब 700 किलोमीटर नवीन अपने कुछ मजदूर साथियों के साथ पैदल ही चले हैं.
दरअसल, कोरोना वायरस को देखते हुए 25 मार्च से देशभर में लॉकडाउन का ऐलान हुआ. लेकिन कोरोना से ज्यादा इस लॉकडाउन को लेकर देश के लाखों मजदूरों में डर और असमंजस की स्थिति पैदा हो गई. लाखों मजदूरों की तरह ही राजस्थान के जोधपुर के मार्बल के कारखाने में काम कर रहे बिहार के 7-8 मजदूरों ने भी काम छोड़कर अपने गांव वापस जाने का फैसला किया.
बेबसी के सफर में सरकार से नहीं मिली मदद
इन्हीं प्रवासी मजदूरों में से एक 64 साल के सहनी मुखिया बताते हैं, “हम लोग 28 मार्च को जोधपुर से पैदल ही चले थे, रास्ते में राजस्थान सरकार ने बस दिया और जिसने हमें उत्तर प्रदेश बॉर्डर तक छोड़ दिया गया. उसके बाद हमको कोई साधन नहीं मिला यूपी में. कई किलोमीटर चलने के बाद हम लोगों ने देखा कि यूपी सरकार ट्रक और बस से लोगों को भेज रही है.
फिर हम लोगअपना पैसा खर्च कर और पुलिस वालों की मदद से किसी तरह यूपी-बिहार बॉर्डर तक आए. लेकिन बिहार में कोई साधन नहीं मिला. ना आने जाने का, ना खाने-पीने का.
कोरोनावायरस का खौफ, लॉकडाउन की बंदिशें, छोड़ना पड़ा काम
प्रवासी मजदूरों के इस ग्रुप में एक और 60 साल के बुजुर्ग मुखिया जोधपुर से बिहार आने की मजबूरी को बताते हुए भावुक हो जाते हैं. वो कहते हैं, “ जहां हम रहते थे वहां कारखाने के मालिक ने कहा चले जाइए, यहां किसी चीज की सुविधा नहीं मिलेगी. लॉकडाउन की वजह से सब बंद हो गया है, ताला लग चुका है. ना पानी मिलेगा, ना खाने को मिलेगा. तो क्या कीजिएगा यहां घर चले जाइए, जब काम शुरू होगा, सारी परेशानी दूर हो जाएगी तब आइएगा.”
तो हम लोग सोचे कि यहां रहकर क्या करेंगे. चले जाते हैं घर, यहां भी मरना है दाना-पानी के लिए, यहां कोई सुविधा है ही नहीं, इसलिए हम लोग वहां से चल दिए.
बिहार सरकार ने प्रवासियों को 1000 रुपये देने का किया ऐलान,लेकिन उसके आगे क्या?
बता दें कि बिहार सरकार ने बिहार के बाहर या बिहार आए प्रवासी मजदूरों को एक हजार रुपए देने का ऐलान किया है. जब ये बात हमने प्रवासी मुखिया नवीन को ये बात बताई तो उन्होंने कहा, “लेकिन एक हजार रुपए में हम लोगों के बाल बच्चों का गुजारा नहीं हो पाएगा. हम जोधपुर में कंपनी में रहते थे 12-13 हजार रुपए घर भेजते थे. इससे तो हम लोगों का खर्चा तो नहीं चल पाएगा. इसके लिए सरकार आगे जॉब देगी या क्या देगी पता नहीं. हम काम करने को तैयार हैं. कुछ भी काम मिल जाए. हमारा परिवार तो चलेगा.”
कोरोना वायरस को फैलने से रोकने की वजह से सरकार ने लॉकडाउन लगाया है लेकिन बिना तैयारी के इस तरह अचानक सब बंद हो जाने से करोड़ों लोगों के लिए रोजगार की समस्या पैदा हो रही है. हालांकि सरकार ने लोगों की मदद की बात कही है लेकिन फिलहाल असमंजस बरकरार है.
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