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कश्मीर : ‘क्या चुनाव 2019 हमारे बिछड़े बच्चे लौटा पाएगा?’

कश्मीर में गुमशुदा की पत्नी को ‘आधी विधवा’ कहते हैं

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प्रोड्यूसर: मौसमी सिंह

वीडियो एडिटर : अभिषेक शर्मा

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हम मांग कर रहे हैं कि हमारे बच्चे दे दो. हमें न पैसे की जरूरत है,ना नौकरी की जरूरत. हमें सिर्फ अपने बच्चों की जरूरत है.  
परवीना आहंगर, फाउंडर, एपीडीपी

दर्द में डूबी ये गुहार है एक मां की जो 29 साल से अपने बेटे को ढूंढ रही है. कश्मीर के एसोसिएशन ऑफ पेरेंट्स ऑफ डिसअपीयर्ड पर्सन्स (एपीडीपी) की फाउंडर परवीना आहंगर का. 18 अगस्त, 1990 को श्रीनगर से गायब हुआ परवीना का 16 साल का बेटा जावेद अहमद आज तक नहीं मिला.

परवीना ने बेटे की तलाश के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. लेकिन सैन्य बलों को खास अधिकार देने वाले कानून, आफस्पा (AFSPA) की वजह से तफ्तीश के लिए केंद्र सरकार की मंजूरी चाहिए थी, जो नहीं मिली. चार साल तक बेनतीजा भटकने के बाद परवीना ने 1994 में एपीडीपी की शुरुआत की.

कोई बोलता था मेरा भाई, कोई बोलता मेरा पति, कोई बोलता मेरा बेटा, सब लोगों को इकट्ठा करके मैंने धरना शुरु किया. अगर हमारे बच्चों को उठाया तो कहां रखा. अगर कानून मेरे लिए, आपके लिए है तो उनके लिए कोई कानून नहीं है? उनके लिए कोई सजा नहीं है?
परवीना आहंगर, फाउंडर, एपीडीपी
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चुनाव से नहीं उम्मीद

देश भर में लोकसभा चुनाव की धूम है. लेकिन परवीना को चुनाव से कोई उम्मीद नहीं दिखती. उनका कहना है कि सरकारें बदलती हैं लोगों की किस्मत नहीं.

फारूख अब्दुल्ला आया, फिर आ गया मुफ्ती सईद, फिर आ गया गुलाम नबी आजाद, फिर आ गया उमर अब्दुल्ला, फिर आ गया मुफ्ती सईद. कितनी बार चुनाव हो गये. 30 साल में किसी ने कुछ नहीं किया तो अब क्या करेंगे. सब औपचारिकता निभाते हैं. किसी का दुख-दर्द नहीं समझते.  
परवीना आहंगर, फाउंडर, एपीडीपी

एपीडीपी के मुताबिक कश्मीर में 8-10 हजार लोग लापता हैं. परवीना का कहना है कि उन्हें ‘जबरन गुमशुदा’ किया गया है. उनका एसोसिएशन ऐसे तमाम मामलों की जांच स्वतंत्र आयोग से करवाने की मांग कर रहा है.

क्या चुनाव 2019 कश्मीर की 'आधी विधवाओं', 'आधी माओं' या 'आधी बहनों' का दर्द दूर कर पाएगा?

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