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हाथरस का सच: जन्म से मौत तक ‘ऊंच-नीच’, भेदभाव- ग्राउंड रिपोर्ट

दलितों को मंदिरों और खेतों में जाने की मनाही

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वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान

साल 2020 में भारत स्मार्ट सिटीज बना रहा है, लेकिन उत्तर प्रदेश के हाथरस में जाति-आधारित भेदभाव आज भी एक कड़वी सच्चाई है. हाथरस में एक 19 साल की दलित लड़की की कथित गैंगरेप के बाद हत्या हो जाती है. आरोप कथित ऊंची जाति के लड़कों पर लगता है, जिनके समर्थन में सभाएं हो रही हैं. क्विंट इस पूरे मामले की पड़ताल के लिए पीड़िता के गांव में ग्राउंड जीरो पर पंहुचा.

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क्विंट उस जगह भी पहुंचा, जहां 30 सितंबर की रात करीब 3 बजे पुलिस ने लड़की का परिवार की मौजूदगी और मर्जी के बिना अंतिम संस्कार कर दिया. वो श्मशान घाट भी जाति-आधारित भेदभाव की एक कहानी कहता है. वो भेदभाव जो इसी नहीं, देश के कितने गांवों में आज भी हो रहा है.

मौत में भी भेदभाव

गांव में दलितों और कथित ऊंची जातियों के लोगों के शमशान घाट तक अलग हैं. अमन राणा ठाकुर समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और हाथरस केस के आरोपियों का समर्थन करते हैं. अमन से जब पूछा गया कि जिस शमशान घाट में पीड़िता का अंतिम संस्कार हुआ, क्या पंडित और ठाकुर भी वहीं आते हैं, तो उन्होंने कहा, "नहीं. वो यहां नहीं आते. उनके पास सरकार से आवंटित जमीन नहीं हैं. वो अपने मृतकों का अंतिम संस्कार निजी जमीनों पर करते हैं, जो कि यहां से 200 मीटर दूर है."

हाथरस केस के आरोपी के परिवार ने भी अलग-अलग शमशान घाट होने की बात बताई. उन्होंने कहा कि दलित और ठाकुर अलग-अलग जगह अंतिम संस्कार करते हैं और दोनों ग्राउंड को एक जमीन का टुकड़ा अलग करता है. परिवार ने कहा, “दोनों के भगवान अलग हैं.” 
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शादियों में छुआछूत

वकील बीएस राणा का मानना है कि दलित नीची जाति के लोग होते हैं. राणा ने क्विंट से कहा, "हम उनके समुदाय में शादी नहीं करते हैं."

वो हमारे घर खाने आते हैं लेकिन अलग बैठते हैं. हम उनके घर खाने कभी नहीं जाते हैं. वो शेड्यूल्ड कास्ट के लोग हैं. हम उन्हें नीची जात मानते हैं.  
बीएस राणा

आरोपी लवकुश की मां मुन्नी ने क्विंट से कहा कि वो दलितों को दे सकती हैं, लेकिन उनसे कुछ ले कैसे सकते हैं. उन्होंने कहा, "वो वाल्मीकि हैं और हम ठाकुर. हमारे और उनके बीच ज्यादा लेनदेन नहीं होता है."

मंदिरों और खेतों में जाने की मनाही

दलित समुदाय की सबीना का कहना है कि ठाकुरों का एक समूह उन्हें काम नहीं करने देता, लेकिन एक दूसरा समूह करने देता है.

अगर हम ठाकुरों के पहले समूह के मंदिर में कुछ दान देने जाएंगे तो वो घुसने नहीं देंगे. वो हमें बहुत परेशान करते हैं. कहते हैं कि तुम दलित हो, हमारे मंदिर में कैसे आ सकते हो.  
सबीना

लेकिन ठाकुर समुदाय के रामकुमार का कहना है कि दलित मंदिर में आते हैं और बाहर से ही पूजा करते हैं. उन्होंने क्विंट से कहा कि दलित लोग खुद ही मंदिर के अंदर नहीं जाते और उन्हें इसकी वजह नहीं पता.

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