वीडियो एडिटर: दीप्ति रामदास
नया मार्च, बीसीसीआई का नया काॅन्ट्रैक्ट लेकिन वही पुरानी निराशा जो पिछले साल थी. भारत के पुरुष और महिला क्रिकेटर्स को मिलने वाली सैलरी में भारी अंतर.
दुनिया की हाइयेस्ट रैंक्ड महिला ODI क्रिकेटर स्मृति मंधाना, खेल के इतिहास में दुनिया का हाइयेस्ट स्कोर खड़ा करने वाली वीमेन क्रिकेटर मिताली राज और भारत की टी-20 कैप्टन रहीं हरमनप्रीत कौर, इन सभी को सालाना 50 लाख रुपये का रिटेनर मिलता है. ये रकम पुरुष क्रिकेट टीम के लोएस्ट ग्रेड को मिलने वाली रकम की भी आधी है.
कुछ लोग अजीब तर्क देते हैं कि जेंडर ‘पे-गैप’ चिंता का विषय नहीं है क्योंकि पुरुष और महिलाओं की टीम से जो रेवेन्यू इकट्ठा होता है उनके बीच कई करोड़ रुपयों का फासला है तो इसलिए खिलाड़ियों के पास वापस जाने वाले पैसे में भी तो अंतर होना ही चाहिए!
हालांकि, CoA (कमिटी ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर्स) को भारत की महिला क्रिकेटरों के लिए कुछ बड़े बदलाव लाने का श्रेय दिया जाना चाहिए. 2015 में महिला क्रिकेटरों को पहली बार कॉन्ट्रैक्ट दिए जाने के बाद सीओए ने पिछले साल महिलाओं के टाॅप कैटेगरी के वेतन में 15 से 50 लाख रु तक की बढ़ोतरी भी की थी.
वैसे, भारत की महिला क्रिकेट टीम सबसे ज्यादा तन्ख्वाह पाने वाली टीम है. ऑस्ट्रेलिया के सबसे टाॅप ग्रेड को मिलने वाली रकम 40 लाख रुपये है तो वहीं न्यूजीलैंड की महिला टीम को मिलते हैं 17 लाख रुपये. इंग्लैंड भी अपने टाप स्टार्स को करीब 50 लाख रुपये दे रहा है.
एक तरफ मिताली, झूलन और हरमनप्रीत को दूसरे देशों की महिला खिलाड़ियों से तो ज्यादा पैसे मिल रहे हैं लेकिन घर पर उन्हें सही पेमेंट चेक मिल रहा है क्या?
भूल जाइए कि पुरुष क्रिकेटर्स को क्या मिलता है इसके उलट बीसीसीआई की बैलेंस शीट पर एक नजर डालते हैं, बहुत कुछ साफ हो जाएगा!
- इस साल जनवरी में, बीसीसीआई ने ‘स्पाइडरकैम’ के लिए एक कंपनी को 91 लाख का भुगतान किया वो भी सिर्फ वेस्ट इंडीज सीरीज के लिए.
- BCCI ने होम सीरीज के दौरान ग्राफिक्स बनाने वाली कंपनी को 1.1 करोड़ रुपए का भुगतान किया.
- BCCI के मेंस नेशनल सेलेक्टर्स हर साल 90 लाख रुपये कमाते हैं.
- चेयरमैन की कमाई 1 करोड़ रुपये है.
- COA खुद हर बैठक के लिए 1 लाख रुपये खर्च करती है.
दुनिया की सबसे अमीर क्रिकेट बाॅडी बीसीसीआई के रेवेन्यू से सबको इतना फायदा मिल रहा है तो महिला क्रिकेटरों को क्यों नहीं?
लेकिन सिर्फ महिला क्रिकेटर्स के साथ ही दोहरा व्यवहार नहीं हो रहा पुरुष टीम में भी कुछ ऐसे खिलाड़ी हैं जिनके नाम कॉन्ट्रैक्ट में न रखकर उनका हक छीना गया है- जैसे विजय शंकर जो इस साल का कॉन्ट्रैक्ट दिए जाने तक भारत के लिए 16 मैच खेल चुके थे और हाल ही में उन्होंने भारत को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दूसरा वनडे मैच जिताया और साथ ही वो वर्ल्ड कप की टीम के प्रमुख दावेदार हैं. लेकिन उन्हें कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं मिला. पृथ्वी शॉ का नाम भी लिस्ट से गायब रहा. वेस्टइंडीज के खिलाफ अपनी डेब्यू सीरीज में उन्होंने शतक ठोका, ऑस्ट्रेलिया में ओपनर के तौर पर भारत की नंबर- 1 चॉइस बन कर गए. लेकिन टेस्ट सीरीज से चंद दिन पहले प्रैक्टिस गेम में चोट लगी और कॉन्ट्रैक्ट लिस्ट से उनका नाम गायब.
साथ ही क्रुणाल पांड्या और मयंक अग्रवाल हैं जिन्होंने भारत के लिए अच्छा खेल दिखाया लेकिन उन्हें भी नजरअंदाज किया गया. और हार्दिक पांड्या जो तीनो फॉर्मेट में टीम इंडिया के रेगुलर सदस्य हैं, वो अब भी थर्ड ग्रेड में हैं जहां उनके साथ उमेश यादव, युजवेंद्र चहल और केएल राहुल हैं. उन्होंने पिछले साल पूरा साउथ अफ्रीका दौरा खेला, पूरा इग्लैंड दौरा खेला तो ऐसे में अगर बड़े कॉन्ट्रैक्ट के लिए “तीनों फॉर्मेट में खेलने” का थंब रूल है तो क्या उन्हें कोहली, रोहित और बुमराह के साथ A+ ग्रेड में नहीं होना चाहिए था? या उन्हें कम से कम ईशांत शर्मा और अजिंक्य रहाणे के साथ A ग्रेड में तो रहना ही चाहिए था.
मान लेते हैं पिछले साल काॅन्ट्रैक्ट के फैसले ने हमें जश्न मनाने के लिए पर्याप्त वजहें दी लेकिन इस साल BCCI इन खिलाड़ियों पर थोड़े पैसे खर्च कर बेहतरी की ओर एक कदम और बढ़ा सकता था आखिर में BCCI के जेब में पैसे तो इन खिलाड़ियों से ही आते हैं!
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