पिछले साल 12 मई को छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के सुकमा (Sukma) के सिलगर गांव में एक सुरक्षा बल शिविर के विरोध में प्रदर्शन किया गया था. जिसमें पिछले साल 17 मई को तीन आदिवासियों कवासी वागा, उइका पांडु, और कोर्सा भीमा को सुरक्षा बलों द्वारा कथित तौर पर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. चौथी शिकार पूनम सोमेली ने बाद में गोलीबारी में मची भगदड़ के दौरान दम तोड़ दिया.
पुलिस ने उस समय कहा था कि सभी मृतक प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) के ग्रामीण स्तर के 'फ्रंटल संगठनों' से जुड़े माओवादी थे.
हालाँकि, ग्रामीणों का कहना था कि मारे गए लोग सामान्य आदिवासी थे और वे केवल एक पुलिस शिविर को बेदखल करने की मांग कर रहे थे,जो कथित तौर पर ग्रामीणों की सहमति के बिना आया था.
चार आदिवासियों की मौत के बाद से सिलगर और आसपास के गांवों के निवासियों ने हत्या के स्थान पर एक अटूट विरोध प्रदर्शन किया. सुकमा और बीजापुर जिलों की सीमाओं के साथ एक माओवादी गढ़ में हताहतों के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की.
पिछले साल मई में पुलिस शिविरों और आदिवासी हत्याओं के विरोध के बीच उभरा एक आदिवासी अधिकार समूह "मूल निवास बचाओ मंच" के अध्यक्ष रघु मिदियामी ने कहा,
हम पिछले एक साल से यहां हैं हम अपना विरोध तब तक जारी रखेंगे जब तक कि हमारी मांगों को नहीं सुना जाता और 2021 में पुलिस द्वारा मारे गए कवासी वागा, कोर्सा भीमा, उइका पांडु और पूनम को न्याय नहीं दिया जाता.
17 मई को सिलगर में कथित पुलिस गोलीबारी की पहली वर्षगाँठ के अवसर पर आदिवासियों ने अपनी मांगें पूरी होने तक विरोध जारी रखने का संकल्प लिया.
'भूपेश सरकार ने पूरा नहीं किया वादा'
इस प्रदर्शन को आदिवासी नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा बस्तर क्षेत्र में सुरक्षा बलों और उनके शिविरों के खिलाफ वर्तमान समय के सबसे लंबे और सबसे बड़े विरोध प्रदर्शनों के लिए माना जा रहा है. सिलगर के प्रदर्शनकारियों ने दावा किया है कि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने वास्तव में "अधूरे वादों" के साथ उन्हें धोखा दिया है.
मूल निवास बचाओ मंच के अध्यक्ष रघु मिदियामी ने द क्विंट को बताया कि वे घटना के बाद से बघेल से दो बार मिल चुके हैं. लेकिन बैठकों और उनके आश्वासनों का कोई परिणाम नहीं निकला है.
मिदियामी ने मुख्यमंत्री के साथ अपनी पहली मुलाकात के बारे में कहा, "हमने 16 जून 2021 को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात की, जहां उन्होंने मजिस्ट्रियल जांच के निष्कर्षों के आधार पर हमारी मांगों को पूरा करने का वादा किया."
उन्होंने कहा "हम 25 मार्च 2022 को फिर से सीएम बघेल से मिले, जहां बातचीत के दौरान उन्होंने फिर से हमें एक महीने के भीतर प्रदर्शनकारियों की मांगों को पूरा करने का आश्वासन दिया. हालांकि, कोई नतीजा नहीं निकला और सिलगर का विरोध जारी है."
मिदियामी ने जोर देकर कहा कि उन्हें अब बस्तर में समर्थन प्राप्त है और आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा की मांग को लेकर उनकी मांगें पूरी होने तक विरोध जारी रहेगा.
मिदियामी ने कहा कि आदिवासियों की एक भी मांग पूरी नहीं हुई है, जिसमें घटना की मजिस्ट्रियल जांच, पीड़ितों के परिवार को एक करोड़ रुपये का मुआवजा और पुलिस शिविरों को हटाना शामिल है.
हमारी मांग साधारण है, पुलिस कैंप हटा दें, पुलिस कैंप लगाने से पहले ग्राम सभा की सहमति लें और पिछले साल सिलगर में पुलिस द्वारा मारे गए लोगों के परिजनों को मुआवजा दें.रघु मिदियामी
कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार का इरादा आदिवासियों के मांगों को पूरा करने का नहीं है.
बस्तर की वकील और आदिवासी कार्यकर्ता बेला भाटिया ने कहा कि सरकार में आदिवासियों के मुद्दों को हल करने के इरादे की कमी है.
आदिवासियों की मांगें बहुत साधारण हैं. वे ग्राम सभा की सहमति के बिना लगाए गए शिविरों को हटाने की मांग कर रहे हैं. एक और मांग पिछले साल चार आदिवासियों की हत्याओं की जांच कराने की है. हालांकि, प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की गई है. यह सरकार की इरादे की कमी को दर्शाता है.बेला भाटिया
बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक पी सुंदरराज ने मीडिया को बताया कि सिलगर सुरक्षा शिविर सुरक्षा उद्देश्यों के लिए आवश्यक है और इसे हटाने की मांग प्रेरित थी.
"निहित स्वार्थ वाले कुछ लोग क्षेत्र में शत्रुता और विरोधाभास का माहौल बनाने के लिए ग्रामीणों को भड़काने का प्रयास कर रहे हैं."पी सुंदरराजी
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