दिल्ली (Delhi) छावनी के पास ओल्ड नांगल गांव की ओर जाने वाली सड़कों को मंगलवार, 3 अगस्त को दोनों ओर से बंद कर दिया गया था. गांव की सैकड़ों महिलाएं और पुरुष एक श्मशान के बाहर अस्थायी तंबू के नीचे इकट्ठा हुए थे, जहां एक दिन पहले वाल्मीकि समुदाय की एक नौ वर्षीय नाबलिग लड़की के साथ कथित तौर पर बलात्कार, हत्या और जबरन अंतिम संस्कार किया गया था.
गुड़िया की मां, सदमे में थीं, उन्होंने द क्विंट को बताया, "मुझे बस अपनी बच्ची वापस चाहिए. मैं उसे वापस पाने के लिए कुछ भी दे दूंगी. बस मुझे मेरी बेटी वापस दे दो."
"वो शाम को पानी भरने गई थी. काफी देर तक जब वो वापस नहीं आई तो हम सब उसे ढूंढते रहे. पुजारी ने तब मुझे बुलाया और कहा कि उसे बिजली का झटका लगा है. उसने कहा कि अगर हम पुलिस या अस्पताल गए, तो वे उसकी किडनी चुरा लेंगे. उन्होंने कहा कि वो उनका अंतिम संस्कार मुफ्त में करेंगे. मैंने अपनी बेटी का जला हुआ शरीर देखा और मैं सदमे में थी. कृपया मुझे मेरी बेटी वापस दे दो."गुड़िया की माँ ने क्विंट को बताया
आरोपियों की पहचान श्मशान घाट के पुजारी राधेश्याम, कुलदीप कुमार (63), लक्ष्मी नारायण (48) और मोहम्मद सलीम (49) के रूप में हुई है, जिनके बारे में स्थानीय लोगों का कहना है कि वो सभी लड़की से परिचित थे.
"उसने गुड़िया की मां से चिल्लाने-चीखने के लिए मना कर दिया. उसने सिर्फ इतना कहा कि जो हुआ है वो अब हो गया. और फिर उसने गुड़िया को आग लगा दी."गुड़िया की आंटी
'न्याय चाहिए, दोषियों को फांसी दो'
इससे पहले कि माता-पिता कुछ समझ पाते, गुड़िया के पड़ोसियों का कहना है कि, उसके शरीर का 'आधा दाह संस्कार' कर दिया गया था.
गुड़िया की मौसी के रूप में अपनी पहचान बताने वालीं सुनीता ने आरोप लगाया, ''उसके होंठ नीले थे और उसके यहां-वहां जलने के निशान थे. जैसे ही पड़ोसी और हम लोग पहुंचे तो हमने देखा कि उसे जलाया जा रहा था."
ओल्ड नांगल गांव के रहने वाले किशोर बेनीवाल ने बताया कि गुड़िया के माता-पिता कचरा बीनने वाले हैं और श्मशान के पास रहते हैं. उन्होंने उस जगह को साफ करने में भी मदद की - इस तरह गुड़िया पुजारी से परिचित हो गई.
"जब तक ग्रामीण मौके पर पहुंचे और उन्होंने माता-पिता को पुलिस को बुलाने के लिए मनाया, तब तक उसके शरीर का आधा दाह संस्कार हो चुका था. हालांकि, पुलिस भी सहयोग नहीं कर रही थी. आरोपी को पकड़ने के बजाय वे माता-पिता को ले गए और उनसे पूछताछ की. ऐसा इसलिए है क्योंकि हम गरीब लोग हैं."किशोर बेनीवाल
इसके बाद ग्रामीणों ने आग बुझाई. हालांकि, वे उसके पैरों के कुछ हिस्सों, सिर के कुछ हिस्सों और उसके कूल्हे के एक हिस्से को ही बचा सके.
'आप एफआईआर की कॉपी क्यों नहीं दिखा रहे हैं?'
डीसीपी (साउथवेस्ट) इंगित प्रताप सिंह ने कहा कि लड़की की मां के बयान के मुताबिक, आईपीसी की धारा 304-ए (लापरवाही से मौत), 201(सबूत नष्ट करना), 342 (गलत संयम) और 34 (सामान्य इरादा) के तहत एफआईआर दर्ज की गई है. साथ ही दिल्ली छावनी पुलिस स्टेशन में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO), एससी / एसटी अधिनियम, आईपीसी की धारा 302 (हत्या के लिए सजा), 376 (बलात्कार के लिए सजा), और 506 की धाराओं के तहत भी केस दर्ज किया गया है.
हालांकि, परिवार का दावा है कि उन्होंने एफआईआर नहीं देखी है और इसलिए वो ये नहीं मान सकते की असल में बताई गयी धाराओं के तहत आरोप दयार किये गए हैं या नहीं.
एडवोकेट सीमा कुशवाहा, जो 2012 के दिल्ली गैंगरेप मामले का नेतृत्व करने वाली वकील थीं, उन्होंने कहा कि, वो गुड़िया का केस लड़ना चाहेंगी - लेकिन आगे बढ़ने के लिए एफआईआर की एक कॉपी चाहिए होगी.
"मैं गारंटी देती हूं कि मैं ये केस लड़ूंगी. लेकिन पुलिस परिवार को एफआईआर क्यों नहीं दे रही है? उन्हें क्या रोक रहा है? हम एफआईआर के बिना कानूनी पहलू पर कैसे आगे बढ़ सकते हैं? मैं ग्रामीणों से अनुरोध करती हूं कि वे एफआईआर की मांग करते रहें. ये परिवार का अधिकार है."निर्भया की वकील सीमा कुशवाहा
स्थानीय लोगों का आरोप है कि पुलिस माता-पिता को थाने ले गई, रात भर रखा और पूछताछ की.
"पीड़ितों से पूछताछ क्यों की जा रही है, जबकि आरोपियों को छोड़ दिया गया है? 1 अगस्त को इकट्ठा होने के लिए हम ग्रामीणों को पीटने का क्या मतलब है? वो हमें एफआईआर की कॉपी क्यों नहीं दिखा रहे हैं. हमें पुलिस से जवाब चाहिए."रीना चौहान, ओल्ड नांगल निवासी
फोरेंसिक टीम और क्राइम टीम ने भी मौके से सबूत जुटाए हैं. दिल्ली पुलिस का कहना है कि अगले कुछ दिनों में रिपोर्ट आने की उम्मीद है.
"महिलाएं भारत में सुरक्षित नहीं हैं": स्थानीय लोगों ने केंद्र सरकार को घेरा
दिल्ली गांव के निवासियों ने महिलाओं की सुरक्षा को 'अनदेखा' करने के लिए केंद्र सरकार की भी आलोचना की.
उन्होंने कहा कि सरकार महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर 'फैंसी नारे देने के अलावा कुछ नहीं' कर रही है.
"बेटी बचाओ, बेटी पढाओ का नारा कागज पर अच्छा लगता है. लेकिन लड़कियों को क्यों बचाओ? ताकि उनका बलात्कार और जबरन दाह संस्कार किया जा सके? ये सभी नारे व्यर्थ हैं. वे उनके भाषणों और कागजों में अच्छे लगते हैं. लेकिन हकीकत में क्या होता है?"गुड़िया की आंटी
"अगर सरकार वास्तव में महिलाओं की सुरक्षा के बारे में चिंतित है, तो वो कानूनों को मजबूत क्यों नहीं कर रहे हैं? संसद में कोई चर्चा क्यों नहीं है? भारत में कोई भी महिला अपने घरों के अंदर या बाहर, कहीं भी सुरक्षित नहीं है. और सरकार कुछ नहीं कर रही है."रीना चौहान, ओल्ड नंगल निवासी
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