वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज
एक 24 साल का जूनियर डॉक्टर जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा है, बंगाल में हेल्थ सर्विसेज शट डाउन हो चुकी हैं. सौ नहीं हजारों की तादाद में डॉक्टर सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं, उनकी जुबान पर बस एक मांग है- जान बचाने वालों को बचाओ.
कोलकाता और पूरे देश ने इससे पहले भी डॉक्टरों की स्ट्राइक देखी है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक. देश के 75% डॉक्टर किसी न किसी तरह की हिंसा के शिकार होते हैं, सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही इसी साल डॉक्टरों के खिलाफ कम से कम 100 हिंसा के केस रिपोर्ट हुए हैं इसके पहले ऐसे प्रदर्शन भी हुए हैं, यहां तक की लेफ्ट फ्रंट के जमाने में भी.
क्यों इतना बड़ा हुआ मामला?
इस बार राज्य सरकार इसको एक हेल्थ और इंफ्रास्ट्रक्चरल क्राइसिस की तरह नहीं बल्कि एक राजनीतिक क्राइसिस की तरह देख रही है. कोलकाता का नील रतन सरकार मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल 24 साल के जूनियर डॉक्टर परिबाह मुखर्जी के सिर पर गहरी चोट आई, जब एक मरीज का देहांत हो गया था और उनके परिवार ने डॉक्टरों पर हमला बोल दिया, रिपोर्ट के मुताबिक 100 से भी ज्यादा लोग 10 जून की रात को NRS अस्पताल में घुस आए जब एक 75 साल के मरीज मोहम्मद सईद की हार्ट अटैक के बाद मौत हो गई वहां मौजूद डॉक्टर के मुताबिक पुलिस सब चुप चाप देखती रही.
डॉक्टर ने अभी अपना प्रदर्शन चालू ही किया था. बीजेपी के मुकुल रॉय ने इस पूरे मामले को दिया एक सांप्रदायिक मोड़
एक खास समुदाय के लोगों ने हमला किया, जिन लोगों से अटैक किया वो तृणमूल कांग्रेस के हैं और जिस डॉक्टर पर हमला किया गया वो परिबाह मुखर्जी हैंपरिबाह मुखर्जी और उनके साथियों पर हमले को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, ये समुदाय की साजिश है जिसे रूलिंग पार्टी का सपोर्ट हैमुकुल रॉय, नेता, बीजेपी
इस बयान ने तय कर दिया कि ममता सरकार का रिएक्शन क्या होगा
प्रदर्शन कर रहे डॉक्टर की 3 मुख्य मांगे थीं
- ममता बनर्जी परिबाह और उसके परिवार से मिलें और डॉक्टर को ये आश्वासन दे कि ऐसे इंसिडेंट आगे से नहीं होंगे
- NRS में जिन्होंने मारपीट की उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है, उसका सबूत दें
- NRS में उस रात जो पुलिस ऑफिसर मौजूद थे, उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई ये बताएं
राज्य में हजारों की संख्या में मरीज परेशान थे, ऐसे में डॉक्टर की यह डिमांड बहुत बड़ी नहीं थी, जरा सोचिये, डॉक्टर की एक मांग ये है कि सीएम साहिबा बस पीड़ित के परिवार से एक बार मिल लें, लेकिन ममता दीदी ने ऊपर से मरहम लगाने की बजाए घाव पर नमक डाल दिया,
डॉक्टरों को ममता का जवाब
- 'प्रदर्शन कर रहे बाहर के लोग हैं, जो बंगाल में आकर तमाशा कर रहे हैं'
- 'अगर ये लोग 4 घंटे में काम पर नहीं लौटे तो उनके खिलाफ पुलिस एक्शन लिया जाएगा'
- 'अगर इन्होंने काम नहीं किया तो उनको हॉस्टल छोड़ने पड़ेंगे'
- 'पुलिस अफसर हर दिन मारे जाते हैं लेकिन वो तो कभी स्ट्राइक नहीं करते, ये उनके काम का एक हिस्सा है'
डॉक्टरों को ज्यादा गुस्सा तब आया जब ये सब ममता ने NRS, जहां से विवाद शुरू हुआ, ये नहीं कहा बल्कि एक दूसरे सरकारी अस्पताल में कहा तृणमूल के ट्विटर 'वीर' भी सीएम के दिखाए हुए रास्ते पर चल पड़े...इन लोगों ने डॉक्टरों और हमलावरों दोनों को आउटसाइडर बता दिया संक्षेप में बोलें तो हजारों गैरराजनीतिक, क्वालिफाईड डॉक्टर काम करते वक्त सुरक्षा की एक बेसिक मांग कर रहे हैं, लेकिन टीएमसी और बीजेपी को लगता है कि यह सब कुछ उनकी हिन्दू मुस्लिम और बांग्ला-गैर बांग्ला राजनीति के बारे में है, इसलिए दोनों पार्टियों के लिए एक विशेष सूचना- सब कुछ आपके और आपकी राजनीति के बारे में नहीं है
मार खाना डॉक्टरों के लिए काम के साथ आने वाला खतरा नहीं है, सोशल मीडिया पर जैसे बहुत सारे डॉक्टरों ने कहा- दुनिया भर में इंफेक्शन या फिर HIV संक्रमण से बहुत डॉक्टरों की मौत हुई है, किसी डॉक्टर ने कभी उसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई...लेकिन ये ऑक्युपेशनल हजार्ड नहीं है, इंफ्रास्ट्रक्चरल फेलियर है और वो डॉक्टर खास कर के जो सरकारी अस्पताल में घंटों ओवरटाइम और मिनिमल रिसोर्स के साथ दिन रात काम करते हैं...उनका ये हक बनता है कि वो बिना डरे अपना काम कर सकें यह मामला राइट टू लाइफ का है, राजनीति का नहीं, तो फिलहाल राजनीति छोड़ दें वो करने के लिए तो अभी बहुत टाइम है.
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