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उत्तराखंड: पूरे देश से कटा-कटा रहता है ये गांव

उत्तराखंड: दिल्ली से महज 600 KM दूर डिजिटल डिवाइड की सच्ची कहानी

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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

कैमरा शिव कुमार मौर्या

‘अगर कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन जारी रहा तो हमें पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी’ ये कहना है 15 साल के सुदर्शन सिंह बराल का, जो पूरी कोशिश में लगे हैं कि कहीं से उन्हें मोबाइल में नेटवर्क का सिग्नल मिल जाए.

उत्तराखंड के जयकोट (Jaikot, Uttarakhand) में रहने वाले 10वीं क्लास के छात्र सुदर्शन के गांव की हालात हमेशा से ऐसी नहीं थी. खराब कनेक्टिविटी के कारण सुदर्शन ने 20 किलोमीटर दूर धारचूला के स्कूल में दाखिला लिया था, लेकिन कोरोना वायरस (Coronavirus) की वजह से लगे लॉकडाउन (Lockdown) ने उसे फिर घर पर बैठने को मजबूर कर दिया.

जब लॉकडाउन लगा था तब मेरे स्कूल ने 10वीं क्लास का WhatsApp ग्रुप बनाया था छात्रों के लिए. शिक्षक उसमें पढ़ाई से सम्बंधित चीजें डालते थे. हम वहीं अपने सवाल भी पूछ सकते थे. मुझे मेरे गांव लौटना पड़ा धारचूला में रह कर फिर भी नेटवर्क मिल जाता था, लेकिन गांव में बिल्कुल भी नेटवर्क नहीं है, मैं ऑनलाइन पढ़ नहीं पा रहा हूं.
सुदर्शन सिंह बराल, 10वीं के छात्र

जयकोट में बराल और उनके जैसे कई छात्रों के लिए ऑनलाइन क्लास एक दूर का सपना ही साबित हो रहा है. जयकोट गांव इंडो-नेपाल बॉर्डर पर बसा एक छोटा सा गांव है जहां नेटवर्क भी नेपाल का इस्तेमाल होता है. इस गांव में भारतीय नेटवर्क का नामों-निशान नहीं है. गांव वालों को नेपाल के नेटवर्क पर निर्भर रहना पड़ता है, जो गांव वालों को काफी महंगा पड़ता है.

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जिंदगी का सवाल

12वीं क्लास की लीला बराल के लिए सिर्फ शिक्षा नहीं बल्कि जिंदगी का सवाल है. पिथौरागढ़ में पढ़ाई कर रही लीला वापस अपने गांव जयकोट लौटीं हैं. लीला को डर है कि गांव में नेटवर्क न आने के कारण वो अपना कॉलेज के लिए फॉर्म नहीं भर पाएंगी.

परिवार वाले कहते हैं कि मेरी अब उम्र शादी लायक हो गई है, यही वजह है कि कई लड़कियों को अपनी पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी है.
लीला बराल, 12वीं की छात्रा

लीला की शिक्षा नेटवर्क के कारण बंद है, लीला कहती हैं कि उन्हें पता है कि अगर वो आगे नहीं पढ़ सकी तो क्या होगा. बहुत कम या ना के बराबर नेटवर्क के कारण लीला कठिन सब्जेक्ट में अपने सवालों का जवाब शिक्षकों से भी नहीं पूछ पा रही हैं.

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