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आय से अधिक केस में मुलायम को क्लीन चिट,नंबर गेम के लिए जुगाड़ फिट?

आएगा तो मोदी ही के शोर के बीच मुलायम सिंह और अखिलेश यादव को सीबीआई ने क्लीन चिट दे दी

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एग्जिट पोल चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे हैं कि आएगा तो मोदी ही. नक्कारों के इसी शोरगुल के बीच तूती की एक आवाज भी सुनाई दी है. दबी आवाज में तूती एक खबर दे रही है और कह रही है कि मुलायम सिंह और उनके बेटे अखिलेश यादव को आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई ने क्लीन चिट दे दी है.

तूती की इस आवाज को अनसुना कर दिया जाए तो नतीजा सिफर, लेकिन सियासी मायनों पर गौर किया जाए तो गणित साफ समझ में आता है. क्या ये सीधी सादी प्रक्रिया है या लोकसभा चुनाव के नतीजों से ठीक पहले किसी भी कमीबेशी लिए समर्थन का इंतजाम.

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एग्जिट पोल का सच क्या है ये 48 घंटे बाद रुझानों की शक्ल में तब सामने आना शुरू होगा जब 23 तारीख को वोटों की असल गिनती शुरू होगी. लेकिन सियासी सच ये है कि वोटों की गिनती से ठीक पहले सीबीआई ने देश की सबसे बड़ी अदालत में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव और एसपी सुप्रीमो अखिलेश यादव के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं. यानी दोनों ही नेता बरी समझे जाएं. कहा भी जा सकता है कि इसमें कौन सी नई बात है, लेकिन कम से कम इस हलफनामे की टाइमिंग पर तो सवाल बनता ही है.

चुनाव से ठीक पहले सीबीआई का तोता बनना

सवाल ये कि मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के खिलाफ डिस्प्रपॉर्शनेट एसेट्स का केस 2 अगस्त 2013 को बंद कर दिया गया था. लेकिन फिर याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी ने फरवरी 2019 को फिर एक अर्जी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की. इस अर्जी में कहा गया कि मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के खिलाफ सीबीआई से स्टेटस रिपोर्ट मांगी जाए.

25 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से स्टेटस रिपोर्ट तलब कर ली. ये सब तब हो रहा था जब देश चुनाव की चौखट पर खड़ा था. अधिसूचना, नामांकन और टिकटों के ऐलान का दौर चल रहा था. 11 अप्रैल, 2019 को पहले चरण के मतदान से आगाज हुआ और 19 मई 2019 को चुनाव खत्म हो गए. वोटों की गिनती से ठीक 48 घंटे पहले सीबीआई ने दोनों को क्लीन चिट दे दी.

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क्या कहती है ये टाइमिंग?

यानी 2013 में जो केस बंद हो चुका था उसके 6 साल बाद फिर से खुलने और बंद होने में सिर्फ 47 दिन लगे. इस दौरान चुनाव भी हो गए और अब तो नतीजे आने ही वाले हैं. क्या कहती है ये टाइमिंग. क्या ये कि भारतीय जनता पार्टी ने कोई कसर न छोड़ने के लिए यूपी से अपना इंतजाम पुख्ता कर लिया है. सवाल सिर्फ सीबीआई को लेकर है. वो सीबीआई जिसे तोता भी कहा गया और ये तोते आपस में कैसे एक दूसरे को पटखनी दे रहे थे ये मोदी सरकार में सबने खुली आंखों से देखा है.

जरा याद कीजिए नरेंद्र मोदी ने भाषण के दौरान बीएसपी सुप्रीमो मायावती को आगाह किया था कि समाजवादी पार्टी उनकी पीठ में छुरा घोंप रही है और अंदर ही अंदर कांग्रेस से मिली हुई है. सियासी गलियारों में इसके मायने ये निकाले गए कि मोदी इस गठबंधन में दरार डालने की कोशिश कर रहे हैं. आज सीबीआई का हलफनामा इस ‘दरार मिशन’ का पार्ट-टू नजर आ रहा है.

अब दूसरी घटना याद कीजिए जब मोदी ने बनारस से पर्चा दाखिल किया तो लगभग पूरा एनडीए वहां मौजूद था. मेरी नजर में ये एक पॉलिटिकल पॉश्चरिंग थी, ये दिखाने के लिए कि नरेंद्र मोदी के साथ एनडीए इंटैक्ट है.

अब तीसरी घटना पर दिमाग दौड़ाइए. मोदी प्रेस कॉन्फ्रेंस में आए लेकिन मीडिया से सवाल नहीं लिए. लेकिन इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीजेपी के इलेक्शन आर्किटेक्ट अमित शाह ने कहा था कि उनके दरवाजे सबके लिए खुले हैं.

मोदी मुलायम की केमिस्ट्री

योगी के शपथग्रहण में मुलायम सिंह ने मोदी के कान में पहले कुछ फुसफुसाया और फिर अखिलेश से हाथ मिलवाया
(फोटो: PTI)

ये तीन घटनाएं साफ इशारा करती हैं कि मोदी अपना मैनेजमेंट ‘सिक्स सिग्मा’ पुख्ता रखना चाहते हैं. वो मोदी जो योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री शपथग्रहण समारोह शामिल होने आए थे और तब मुलायम सिंह ने मोदी के कान में पहले कुछ फुसफुसाया और फिर अखिलेश से हाथ मिलवाया. वो मोदी जो मुलायम के भतीजे तेज प्रताप यादव (तेजू) की शादी में हर हाल में पहुंचे और देर तक रुके. वो मोदी जिन को खुद मुलायम सिंह ने संसद के आखिरी दिन दोबारा प्रधानमंत्री बनने की दुआ दी या यूं कहें कि आशीर्वाद दिया.

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इन सब से एक आंकड़ा तो साफ है कि नरेंद्र मोदी चाहते ही नहीं कि कोई कसर रह जाए. क्या तैयारी सिर्फ समर्थन लेने की ही होती है या इस ब्लूप्रिंट में विपक्षी पार्टियों का बाहर से समर्थन, सदन से वॉक आउट और संसद का बायकॉट करना भी शामिल है.

सच तो ये है कि कांग्रेस पर हमेशा तेजाब उगलने वाली मायावती और मुलायम सिंह ने हमेशा ही उसे बाहर से समर्थन दिया. इस चुनाव में भी गठबंधन में चाहे अखिलेश हों या मायावती सभी ने कांग्रेस के खिलाफ ही जहर उगला है. मतलब साफ है. एग्जिट पोल जरा भी गड़बड़ाए तो गठबंधन की गांठ खोलने और बाहर से अपने साथ जोड़ने की तैयारी पूरी हो चुकी है.

कांग्रेस और एसपी का अंदरूनी बैर

मुलायम, अखिलेश के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला 2005 में दर्ज हुआ और 2013 में बंद कर दिया गया था. लेकिन इसके बीच में क्या हुआ ये भी जानना जरूरी है. इसमें तीन बार क्लोजर रिपोर्ट दाखिल हो चुकी है. इसके बावजूद पांच बार इसे खोला और बंद किया गया. न्यूक्लियर डील, 2013 का कट मोशन, 2009 में टेलीकॉम घोटाले की ज्वॉइंट पार्लियामेंटरी कमेटी के गठन, और प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति चुनते वक्त भी ये केस खुला और बंद हुआ. ये सबकुछ ज्यादातर यूपीए की सरकारों में ही हुआ.

यही वजह है कि अखिलेश यादव हमेशा कहते रहे कि कांग्रेस का काम हमेशा धोखा देना है. लेकिन ये भी बता दूं कि अखिलेश के खिलाफ अरबों के खनन घोटाले की भी सीबीआई जांच अभी भी जारी है. तो क्या सीबीआई की ये फौरी राहत इशारा भर है जो आगे बढ़ या घट सकती है.

क्या इशारा समझने पर खनन घोटाला भी राहत का पैगाम ला सकता है. क्या सिर्फ इस हलफनामे से आठ बार खुल कर बंद हो चुका आय से अधिक संपत्ति का ये केस सौ तालों में बंद कर दिया जाएगा. या ये ताले एनडीए की सीटों में कमतरी के किवाड़ को खोलने की सियासी चाबी है. फिलहाल 23 मई तक इंतजार. फिर देखते हैं कि किस ओर बहती है सियासत की बयार. क्योंकि सिर्फ मोहब्बत और जंग में ही नहीं बल्कि सियासत में भी सबकुछ जायज है.

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