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अतिथि तुम कब जाओगे: ट्रंप वो तूफान हैं जो बस शांति से गुजर जाए

अमेरिका से इस यात्रा को लेकर डोनाल्ड ट्रंप ने ऐसे-ऐसे बयान दिए कि मेजबान के होश उड़ गए.

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ऐसा पिछली बार कब हुआ कि विश्व के सबसे ताकतवर देश का राष्ट्रपति किसी देश के दौरे पर हों, और मेहमान तो काफी जोश में हों, लेकिन मेजबान के होश उड़े हों? और कई संकेत तो ऐसे लग रहे हैं कि मेजबान सिर्फ इस बात का इंतजार कर रहा है कि ये समय बस ठीक-ठाक कट जाए और मेहमान घर लौट जाए.

और ये माहौल ऐसे ही नहीं बना. सच तो ये है कि जो उम्मीद थी उस पर दौरे से पहले खुद ट्रंप ने ही पानी फेर दिया. सारा मामला वहीं से बिगड़ता चला गया.

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दो राष्ट्रों के शीर्ष नेताओं की मुलाकात ऐसे ही नहीं होती. सब कुछ तभी तय होता है जब फायदा दोनों देश का हो. जैसे कि व्यापार का हिसाब-किताब अगर थोड़ा-बहुत इधर-उधर हो रहा हो, तो भविष्य से बड़ी उम्मीद हो या दुनिया के सामने देश का कद बढ़ रहा हो. ट्रंप के दौरे से पहले विदेश मामलों के जानकार भारत और अमेरिका के संबंधों को लेकर ये सब कयास लगा रहे थे. लेकिन यहां तो ये ही नहीं मालूम की ऊंट किस करवट बैठेगा.

अमेरिका से इस यात्रा को लेकर डोनाल्ड ट्रंप ने ऐसे-ऐसे बयान दिए कि मेजबान के होश उड़ गए. मीडिया तो महज स्वागत में आने वाले 60 लाख और 1 करोड़ लोगों के आंकड़ों में फंस कर रह गई. सरकार के हाथ-पैर इसलिए फूलने लगे, क्योंकि ऐसे मेहमान से डील करने का कोई अनुभव नहीं था.

ट्रंप के बयानों पर अगर गौर करे तो वो किसी राष्ट्राध्यक्ष की तरह बात ही नहीं करते तो किसी सरकार को अनुभव हो भी तो कैसे? अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति एक बिजनेसमैन की भाषा बोलते हैं. वो कूटनीति नहीं कारोबार के दाव-पेंच में यकीन रखते हैं. उनकी बातें उत्तेजना पैदा करती हैं, उकसाती हैं, उनके लहजों में धमकी होता है. पिछले तीन साल में उन्होंने पूरी दुनिया से ऐसे ही डील किया है. अब वही पैंतरे भारत पर आजमा रहे हैं.

लेकिन हिंदुस्तान की जनता का मिजाज अलग है. यहां मेहमान भगवान होता है तो मेहमान से कुछ सलीकों की उम्मीद होती है. ये बात डोनाल्ड ट्रंप या अमेरिका की जनता को नहीं पता. लेकिन मोदी सरकार को पता है इसलिए सरकार की चिंता बढ़ गई है. सरकार चाहती है कि सीन इतना भी ना बिगड़े कि डैमेज कंट्रोल मुश्किल हो जाए. यही वजह है कि बीच का रास्ता निकालने की कोशिश हो रही है.

दो देशों के बीच अच्छे संबंधों का सबसे बड़ा मानक है कारोबार. इसलिए अमेरिका और भारत के अधिकारियों के बीच लगातार लास्ट-मिनट डील पर बात चल रही है. ताकि कोई बड़ी डील नहीं तो कम-से-कम मिनी डील हो जाए.

प्रधानमंत्री मोदी के लिए ट्रंप का ये दौरा बहुत मायने रखता है. वो इस मौके को गंवाना नहीं चाहते. अमेरिका से अच्छी डील हो गई तो घरेलू मोर्चे पर पीएम मोदी की ताकत चार गुनी हो जाएगी. अर्थव्यवस्था मजूबत करना सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. बेरोजगारी और इनवेस्टमेंट के मसलों पर विपक्ष लामबंद होता जा रहा है. देश भर में सीएए और एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन से माहौल नकारात्मक है. डील बन गई तो विपक्ष के खिलाफ ढाल मिल जाएगा.

अमेरिका को मनाने की कोशिश

यही वजह अमेरिका को मनाने की हर कोशिश जारी है. मोदी कैबिनेट ने भारतीय नेवी के लिए रोमियो हेलीकॉप्टर खरीदने की मंजूरी दे दी. सरकार आंशिक तौर पर मुर्गी पालन और डेयरी का बाजार भी अमेरिका के लिए खोलने के लिए तैयार हो गई. मेडिकल उपकरण के दामों में ढील देने का प्रस्ताव रखा तो हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिल की टैरिफ को भी 50% फीसदी कम करने का संकेत दिया. लेकिन अमेरिका बड़ी डील की बात कर रहा है. चाहे इसके लिए नवंबर के चुनाव का भी इंतजार करना पड़े.

अमेरिका भारत से कम से कम और 5-6 बिलियन डॉलर की डील चाहता है. चीन को पछाड़ते हुए अब भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर अमेरिका है. 2018 में दोनों देशों के बीच 142.6 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया. लेकिन 2019 में अमेरिका को 23.2 बिलियन डॉलर का कारोबारी घाटा झेलना पड़ा. पुराने नुकसान की भरपाई के लिए ट्रंप बड़ी डील करना चाहते हैं.

क्या है भारत की मांग?

भारत की मांग है अमेरिका से मिलने वाली पुरानी सुविधा को बहाल कर दिया जाए.

पिछले साल जून तक भारत को जेनराइल्ज्ड सिस्टम्स ऑफ प्रेफरेंसेज (GSP) के तहत अमेरिका से कारोबार में छूट मिलती थी. 3000 से ज्यादा ऐसे प्रोडक्ट्स थे जिसे भारत से अमेरिका निर्यात करने पर ड्यूटी नहीं देनी होती थी. H-1B वीजा में कटौती के बाद ट्रंप सरकार का ये दूसरा बड़ा फैसला है जिसका भारत पर सीधा नकारात्मक असर पड़ा. 

जहां वीजा मामले पर सरकार ने संकेत दिए हैं कि ट्रंप से बातचीत में इस पर चर्चा होगी, GSP पर किसी बड़े फैसले की उम्मीद नहीं है. क्योंकि इसके लिए ट्रंप सरकार ने भारत के सामने 5-6 बिलियन डॉलर के अतिरिक्त कारोबार की शर्त रख दी है.

अहमदाबाद आने से पहले डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर दबाव बनाने के लिए सारे हथकंडे अपना लिए. पहली बार अमेरिका के किसी राष्ट्रपति ने सीधा आरोप जड़ दिया कि भारत ने उसके साथ नाइंसाफी की है. वो भी ऐसे वक्त में जब दोनों देशों के बीच सकारात्मक माहौल हो और बड़े समझौतों की उम्मीदें लगी हों. आरोप जड़ने के बाद ही ट्रंप ने ये भी साफ कर दिया कि डील या तो बड़ी होगी या नहीं होगी.

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मतलब भारत के पास करने को क्या रह गया? मेहमान ने तो घर पधारने से पहले ही मेजबान का मूड खराब कर दिया था. इसका अंदाजा तो तभी मिल गया था जब केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइटहाइजर के बीच डील को लेकर लगातार फोन पर चल रही बातचीत नाकाम रही. आखिरकार ट्रंप के करीबी लाइटहाइजर ने अपना दौरा ही रद्द कर दिया. ये यात्रा से पहले भारत पर दबाव बनाने की पहली कोशिश थी.

डोनाल्ड ट्रंप बार-बार ‘अमेरिका फर्स्ट’ की बात करते हैं. भारत के साथ ट्रेड डील पर भी ट्रंप ने कहा कि उनके लिए अमेरिका का हित सबसे ऊपर है. अमेरिका में चुनाव होने वाले हैं और ये ट्रंप का चुनावी नारा रहा है. जाहिर है अमेरिकी राष्ट्रपति ने ऐसा पासा फेंका है, जिसमें उन्हें दोनों हालातों में फायदा नजर आ रहा है. अगर भारत के साथ समझौता हो जाता है तो ट्रंप अमेरिका में वाहवाही लूटने की कोशिश करेंगे. और डील नहीं हुई तो चुनाव तक इसे टालने का बहाना काम आ जाएगा. ‘अमेरिका फर्स्ट’ को दोहराते हुए वो अपनी जनता से कहेंगे कि देश के हित में उन्होंने भारत की शर्तों पर राजी होने से मना कर दिया.

डोनाल्ड ट्रंप का दावा, 1 करोड़ लोग अहमदाबाद में करेंगे स्वागत

ये सच है कि डोनाल्ड ट्रंप को भीड़ पसंद है. यही वजह है वो बार-बार अहमदाबाद में उनके स्वागत के लिए आने वाले लोगों की संख्या से खेलते रहे. जहां मीडिया उनके नंबर गेम में उलझी रही, वो मोदी सरकार को अपने इरादों से वाकिफ कराते रहे. ये भी एक हकीकत है कि चुनावी साल में ट्रंप की नजर अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों पर है, जिनका वोट उन्हें दोबारा राष्ट्रपति बनाने में मददगार साबित हो सकता है.

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लेकिन भारत-अमेरिकी डील पर बड़ा फैसला लेने से पहले ये फैक्टर ट्रंप के दिमाग पर कितना हावी होगा इसे जरा आंकड़ों से समझ लेते हैं.

अमेरिका में राष्ट्रपति के पिछले चुनाव (2016) में 55.7% लोगों ने वोट दिया था, जबकि वोट देने वाले लोगों की कुल संख्या थी करीब 25 करोड़ और उस साल करीब 12 लाख भारतीय अमेरिकी वोट देने के लिए रजिस्टर्ड थे जो कि मतदाताओं की पूरी संख्या का महज 0.47% है. अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सिर्फ भारतीय अमेरिकी वोटर्स को खुश करने के लिए ट्रंप किस हद तक जा सकते हैं.

हां, ये जरूर है जैसे अमेरिका के ‘हाउडी मोदी’ इवेंट में जुटी भीड़ से चुनाव में नरेंद्र मोदी की इमेज बनी, ‘नमस्ते ट्रंप’ मेगा शो की भीड़ को अपनी लोकप्रियता के सबूत के तौर पर ट्रंप राष्ट्रपति चुनाव में भुनाने की कोशिश कर सकते हैं.

ट्रंप का दौरा, पीएम मोदी की चुनौती

ट्रंप के दौरे में मोदी सरकार के लिए चुनौती बहुत बड़ी है. इंडिया फर्स्ट की बात करने वाले मोदी जनता को क्या जवाब देंगे? अमेरिका से कोई ट्रेड डील नहीं हुई तो डोनाल्ड ट्रंप के स्वागत में करोड़ों के खर्च पर क्या जवाब देंगे? अहमदाबाद के मेगा शो से क्या हासिल हुआ इस पर क्या कहेंगे? ट्रंप का क्या भरोसा है. आज जो बयान देते हैं उससे कल पलट जाते हैं. कश्मीर के मुद्दे पर बार-बार अपना स्टैंड बदल चुके हैं. आज डील को नवंबर तक टाला है, आगे और आगे टाल देंगे.

अब तो बस यही उम्मीद है कि अहमदाबाद और दिल्ली में मोदी और ट्रंप की मुलाकात में कुछ बात बन जाए और सरकार को राहत मिले. कारोबार ना सही कूटनीतिक स्तर पर दोनों देशों के बीच बात आगे बढ़े. आतंकवाद पर अमेरिका का रुख साफ है. अब हिंदुस्तान के लोगों की नजर रहेगी कि आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले पाकिस्तान जैसे देशों के लिए डोनाल्ड ट्रंप दिल्ली की धरती से क्या संदेश देते हैं.

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