गोवा के एक रिसॉर्ट के मैनेजर ने मुझसे कहा अगर आपको जीएसटी समझना है, तो सबसे पहले इसे समझाने के नाम पर होने वाले सम्मेलन में आना बंद कर दीजिए. ये सज्जन जीएसटी पर तमाम कंफ्यूजन दूर करने के इरादे से दिल्ली के ताज मानसिंह होटल में सीआईआई के सम्मेलन में आए थे. लेकिन करीब दो घंटे तक जीएसटी पर अफसरों और जानकारों के ज्ञान को सुनने के बाद जब बाहर निकले तो और ज्यादा कंफ्यूज्ड हो गए.
इंडस्ट्री संगठन सीआईआई के इस सेशन में सभी तरह की इंडस्ट्री के लोग, कंपनियों के सीएफओ, और सीए मौजूद थे. सवालों का जवाब देने के लिए सामने थे, सीबीईसी के मेंबर्स और जीएसटी पर सीआईआई कोर ग्रुप के चेयरमैन हरिशंकर सुब्रमण्यम.
सवाल ज्यादा मुश्किल नहीं थे, लेकिन उनके जवाबों ने जीएसटी की पहेली को सुलझाने के बजाए और उलझा दिया.
कैसे-कैसे सवाल और कैसे जवाब
गोवा के एक होटल कारोबारी ने पूछा हमारे बिजनेस में सीजन के हिसाब से होटलों के रेट ऊपर नीचे होते रहते हैं. जैसे नवंबर -दिसंबर में डिमांड ज्यादा होने की वजह से होटल का जो कमरा 10 हजार रुपए में मिलता है, मई-जून में उसके दाम 3 से 4 हजार रह जाते हैं, ऐसे में जीएसटी कैसे कैलकुलेट होगा? क्या हर बार होटल को नई रेट लिस्ट निकालकर जीएसटी सॉफ्टवेयर में लोड करनी होगी?
इस कारोबारी के सवाल का सीधे जवाब देने के बजाए जवाब दिया गया कि आप लिखकर दीजिए. वैसे आप गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के पास भी जा सकते हैं वो बड़े अच्छे आदमी हैं.
एनसीसी और सिम्प्लेक्स इंफ्रा के प्रतिनिधि ने जब इंफ्रा सेक्टर में पुरानी मशीनरी की खरीद पर इनपुट क्रेडिट से जुड़े सवाल पूछे, तो उनसे कहा गया कि वो इसके लिए नोडल मंत्रालय यानी ट्रांसपोर्ट मंत्री नितिन गडकरी के पास जाएं वो बड़े उत्साही हैं आपकी दिक्कत दूर कर देंगे.
सीआईआई की इस कॉन्फ्रेंस में आए इंडस्ट्री के लोगों के सवाल आसान थे. पर ज्यादातर जवाब में उनसे नोडल मंत्रालय जाने या फिर मेल भेजने की सलाह वाला जवाब मिला. साफ नजर आ रहा था कि शिकायतें दूर करने की औपचारिकता की जा रही है. सत्र का संचालन कर रहे हरिशंकर सुब्रमण्यम की ऐसी सलाहों से सवाल लेकर आए लोगों की परेशानी और झुझलाहट साफ नजर आ रही थी.
इंडस्ट्री के आसान सवाल
इंडस्ट्री के लोगों का कहना है कि उनकी कई दिक्कतें सिर्फ प्रक्रिया को लेकर हैं, लेकिन उन्हें सही जवाब नहीं मिल रहे हैं.
इन तमाम सवालों के जवाब कुछ इस अंदाज में दिए गए, आप हमें मेल कर दीजिए, नोडल मिनिस्ट्री में मामला उठाइए, शोर (नॉइज) मचाइए. बैठक के बाद अलग-अलग इंडस्ट्री से आए लोगों ने कहा जीएसटी इतना जटिल नहीं है, पर कॉन्फ्रेंस में कई बार जानकार इसे मुश्किल बना देते हैं, क्योंकि कंफ्यूजन दूर करने का वादा करने वाले अक्सर शब्दों के जाल में खुद उलझ जाते हैं और उलझा देते हैं.
टेक्साइटल सेक्टर की नाराजगी का जवाब
टेक्साइल सेक्टर की जीएसटी से नाराजगी बड़ा मुद्दा है. सूरत में टेक्सटाइल कारोबारियों का कई दिनों से जारी आंदोलन अब ठंडा पड़ गया है. सरकार नहीं झुकी. राजस्व सचिव हसमुख अढिया के मुताबिक टेक्सटाइल पर पहले कोई टैक्स नहीं था, लेकिन 5 परसेंट का टैक्स वाजिब है इसे नहीं हटाया जाएगा.
टेक्सटाइल पर जीएसटी की एक ही दर है. 5 परसेंट. लेकिन रेडीमेड कपड़ों पर दो दरें हैं 5 परसेंट और 12 परसेंट. 1000 रुपए से कम के रेडीमेड कपड़ों पर 5 परसेंट और इससे ऊपर 12 परसेंट. इसमें टैक्स बचाने के लिए कई जगह दुकानदारों ने तरीका निकाल लिया है. मिसाल के तौर पर महिलाओं के सलवार सूट और दुपट्टे का सेट का बिल बनाने के बजाए दुकानदार तीनों आइटम के अलग-अलग तीन बिल काटकर टैक्स बचा रहे हैं, ताकि बिल 1000 रुपए से ऊपर का ना हो पाए.
छोटे शहरों के कारोबारियों की परेशानी
इस सेक्टर के कई रिटेल कारोबारी भी मानते हैं कि टैक्स को लेकर उतनी दिक्कत नहीं है जितनी परेशानी फाइलिंग को लेकर है. खासतौर पर छोटे शहरों में व्यापारियों के मुताबिक जीएसटी के बजाए उनकी परेशानी इसकी जटिल शब्दावली और परिभाषाओं को लेकर है.
मध्यप्रदेश के जबलपुर में महाकौशल चेंबर ऑफ कॉमर्स के अनुराग गढ़ावाल के मुताबिक कारोबार में प्रचलित नाम हटाकर अंग्रेजी के नए नाम जोड़ दिए गए हैं, जिससे व्यापारियों का वास्ता नहीं पड़ा, इसी वजह से जीएसटी जटिल लग रही है.
मिसाल के तौर पर टेक्सटाइल में शूटिंग, शर्टिंग, साड़ी जैसे प्रचलित नाम हटाकर फ्रैबिक शब्द जोड़ दिया गया है. साड़ी की जगह 100 ग्राम वजन, 100 ग्राम से ऊपर, फिलामेंट यार्न जैसे शब्दों ने कारोबारियों के मन में जीएसटी के लिए डर बना दिया है. अगर इसमें आसान और प्रचलित नामों को भी जोड़ा जाता तो शायद यह कारोबारियों को अलग नहीं लगती.
टेक्साइटल इंडस्ट्री में काफी वैल्यु एडीशन गैर संगठित सेक्टर करता है. साड़ियों और सलवार में तो 8 बार वैल्यु एडीशन होता है ऐसे में हर बार बिलिंग करना व्यवहारिक तौर पर काफी मुश्किल काम है. साथ ही बहुत से लोग पढ़े लिखे नहीं हैं, ऐसे में उन्हें नुकसान होने का खतरा है, क्योंकि उनसे काम छीनकर बड़ी कंपनियों को दिया जा सकता है.
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कुछ ऐसी ही दिक्कत जालंधर में पार्ट्स बनाने वाली एक छोड़ी इंडस्ट्री के संजय गुप्ता की है. वो कहते हैं कि कई मामलों में अभी भी परिभाषा स्पष्ट नहीं है. टैक्ट्रर ट्रॉली और दूसरे पार्ट्स बनाने वाले संजय कहते हैं कि ट्रॉली में लगने वाले पार्ट्स में जीएसटी रेट अलग होने से दिक्कत बढ़ गई है. जैसे कमानी के साथ लगने वाली स्प्रिंग हैंगर में जीएसटी रेट 28 परसेंट है, लेकिन इस हैंगर में लगने वाले वॉशर, स्प्रिंग पिन में जीएसटी रेट 18 परसेंट है, ऐसे में पूरे प्रोडक्ट की लागत तय करने में जटिलता होती है. उनके मुताबिक सीए भी कई दिक्कतों को हल नहीं कर पा रहे हैं.
कारोबारी और व्यापारियों की सबसे बड़ी शिकायत यही है कि उन्हें बड़े- बड़े सिद्धांत की घूंटी हर कोई पिलाना चाहता है, लेकिन प्रैक्टिकल दिक्कतों के बारे में पूछने पर दूसरे दरवाजे पर ठेल दिया जाता है.
कई छोटे मैन्युफैक्चरर की शिकायत है कि उन्हें बिजली के बिल में एक्साइज और ऑक्ट्राय देना पड़ रहा है. उनकी मांग है कि इसे भी इनपुट लागत माना जाना चाहिए.
वित्त मंत्रालय को चाहिए कि शुरुआती दिनों में कारोबारियों की फाइलिंग से जुड़े सवालों के जवाब देने के लिए प्रैक्टिकल ट्रेनिंग कराए ना कि ज्ञान चर्चा.
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