ADVERTISEMENT

भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले क्यों रिकॉर्ड नीचे चला गया है?

Rupee Falling: रुपया शॉर्ट टर्म में वॉलेटाइल रह सकता है लेकिन अगले 6 महीने बाद इसे स्थिर रहना चाहिए.

Published
भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले क्यों रिकॉर्ड नीचे चला गया है?
i

रोज का डोज

निडर, सच्ची, और असरदार खबरों के लिए

By subscribing you agree to our Privacy Policy

करेंसी टूटने से महंगाई (Inflation) बढ़ती है. ये सीधे व्यक्तियों की खरीदने की क्षमता कम करता है. यह अधिक महंगी विदेशी छुट्टियों, बच्चों की विदेशी शिक्षा के लिए ज्यादा पैसे, इंपोर्टेड आइटम महंगा होना, भोजन, दवाएं, वाइन, कार, मोबाइल, लैपटॉप आदि सभी कुछ को महंगा कर देता है.

ADVERTISEMENT
हालांकि, एक देश के लिए कई बार ये कई अलग-अलग टार्गेट और लक्ष्यों को पूरा कर सकता है. हल्की फुल्की महंगाई और करेंसी में कैलिब्रेटेड डेप्रिसिएशन होना कई बार देश में घरेलू महंगाई और अंतररराष्ट्रीय इकनॉमी में कंपीटीटिव बने रहने के लिए जरूरी है. हालांकि करेंसी अगर बेकाबू तरीके से कमजोर होने लगे तो ये कहर ला देता है और इसका अंजाम बुरा होता है.

क्योंकि करेंसी का अस्थिर होना इंटरनेशनल इन्वेस्टर्स को पसंद नहीं है. फिलहाल एक डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए का वैल्यू 78.29 है जो कि अब तक का सबसे निचला स्तर है लेकिन कुल मिलाकर देखें तो भारतीय करेंसी यानि रुपया स्थिर करेंसी है.

रुपया छोटी अवधि में तो वॉलेटाइल रह सकता है, लेकिन अगले 6 महीने में इसके स्थिर रहने की उम्मीद है. मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस पर ध्यान केंद्रित करने वाली इकनॉमी जानबूझकर अपनी करेंसी कमजोर रखती है. कैपिटल फ्लो डॉलर में होने की वजह से डॉलर मजबूत बना हुआ है. डॉलर के रिजर्व करेंसी होने और ज्यादातर ग्लोबल ट्रेड का अमेरिकी डॉलर में होने की वजह से डॉलर की पॉजिशन मजबूत बनी हुई है।

पिछले कुछ वर्षों में, कई देश अलग-अलग कारणों से अपने विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर एसेट के जोखिम को कम कर रहे हैं.

ADVERTISEMENT

क्या भारतीय रुपया स्थिर करेंसी है ?

डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 78.29 पर है जो कि इसका ऑल टाइम लो है, लेकिन कुल मिलाकर यह एक स्थिर करेंसी है. जो कि परंपरागत तौर पर प्रोग्रेसिवली कमजोर होती रही है ज्यादा महंगाई के कारण .

अभी जो रुपया कमजोर हो रहा है वो FII का भारत से जाना और करेंट अकाउंट डेफिसिट बढ़ जाने से है. एक्सपोर्ट से कमाई और इंपोर्ट पर खर्च का अंतर यानि CAD जब बढ़ने लगे तो चिंताएं बढ़ जाती है.

गोल्ड, पेट्रोलियम और दूसरे गुड्स के इंपोर्ट बिल बढ़ने से भारत का CAD वित्त वर्ष 2022 में जीडीपी के 3% तक जाने की आशंका है. हालांकि, विदेशी मुद्रा रिजर्व की स्थिति बढ़िया रहने (600 बिलियन अमरीकी डालर कुछ नीचे) के साथ, और इस तूफान से निकलने को लेकर RBI गवर्नर के आत्मविश्वास से हालात ज्यादा खराब होने का डर नहीं है.
ADVERTISEMENT

आईटी सर्विस और दूसरे रेमिटेंस की हालत अपेक्षाकृत मजबूत हैं, जिससे सीएडी को कम करने में काफी मदद मिली है. भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और एफआईआई और एफडीआई निवेश के लिए दुनिया में पसंदीदा स्थलों में से एक है.

रुपया शॉर्ट टर्म में वॉलेटाइल रह सकता है, लेकिन अगले 6 महीने बाद काफी स्थिर रहेगा..एक बार अंतरराष्ट्रीय मार्केट में जो उठापटक है उसकी हालत स्थिर हो जाए और जैसा कि दुनिया भर के सेंट्रल बैंक स्थिति सुधारने में लगे हैं तो फिर सब दुरुस्त हो जाएगा.

महंगाई, कर्ज और करेंसी में वॉलेटिलिटी एक खतरनाक कॉकटेल जैसा है. इसे अगर ठीक से समझना हो तो कुछ दक्षिण एशियाई देश जैसे पाकिस्तान, श्रीलंका और कुछ यूरोपीय और लैटिन अमेरिकी वेनेजुएला देशों से पूछिए ..वो किन मुश्किल चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. सेंट्रल बैंक का सबसे जरूरी काम ब्याज दरों, महंगाई, जीडीपी ग्रोथ, रोजगार, लिक्विडिटी और मनी एक्सचेंज दरों को ठीक करना है.

ADVERTISEMENT

जापान और चीन की करेंसी का उदाहरण

जो हंस के लिए अच्छा हो सकता है वो जरूरी नहीं कि हंसिनी के लिए भी अच्छा ही हो. जापान की करेंसी येन अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 24 साल के सबसे निचले स्तर पर चला गया है. जापान अपनी ब्याज दरें कम रखना चाहता है लेकिन अमेरिका ब्याज दरें बढ़ाने के लिए मजबूर है. अमेरिका, और UK जैसे देश कैपिटल इन्फ्लो पर चलते है और इसलिए वो अपनी करेंसी को मजबूत बनाए रखते हैं.

इसके विपरीत, मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस वाली इकनॉमी अपने निर्यात को बढ़ाने के लिए जानबूझकर अपनी मुद्राओं को कमजोर रखती हैं. वास्तव में, चीन को पिछले दशक में रेनमिनबी को एप्रीसिएट करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

इस वक्त दुनिया लगातार एक करेंट के सिचुएशन से गुजर रही है. लगातार कमोडिटी और एनर्जी की कीमतें बढ़ रही हैं जिससे कई देशों में वित्तीय और आर्थिक संकट पैदा हो गया है. भारी कर्ज, कम विदेशी मुद्रा भंडार, और बढ़ते राजकोषीय और व्यापार घाटे (सीएडी) कुछ देशों को वित्तीय दिवालियापन और करेंसी में भयानक टूट की ओर ले जा रहा है.

कई देशों में तो CAD जीडीपी के 7% तक पहुंच गया है जो कि बहुत चिंताजनक है. इमर्जिंग इकनॉमी से पैसे का निकलना भी करेंसी क्राइसिस को बढ़ा रहा है. लंबे समय तक गिरावट से महंगाई का संकट 1997 जैसे हालात ला सकते हैं.
ADVERTISEMENT

अमेरिकी डॉलर में अंतर्विरोध

अधिकांश ग्लोबल करेंसी अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रही हैं क्योंकि इस मुश्किल वक्त में वो एक सेफ एसेट है. ये बताने के बाद भी पिछले कुछ वर्षों में, देश कई कारणों से अपने विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर एसेट के रिस्क को घटा रहे हैं.

रूस के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंध- "अमेरिकी डॉलर का हथियार की तरह इस्तेमाल किए जाने से " - कई देशों को परेशानी हो रही है. जैसे-जैसे आर्थिक और जियोपॉलिटिकल वॉर आपस में जुड़ते जा रहे हैं, डी-डॉलराइजेशन भी तेजी से बढ़ रहा है. लेकिन, क्या अमेरिकी डॉलर की वास्तव में सराहना होनी चाहिए? स्पष्ट रूप से, इंटरनेशनल फिशर इफेक्ट काम नहीं कर रहा है! आईएफई सिद्धांत कहता है कि "दो मुद्राओं की विनिमय दर के बीच अपेक्षित असमानता उनके देशों की नाममात्र ब्याज दरों के बीच के अंतर के बराबर है"

40 साल की उच्चतम महंगाई और अवास्तविक रूप से कम ब्याज दरों के साथ, वास्तविक और नाममात्र ब्याज दर अंतर के लिए अमेरिकी डॉलर को कमजोर होना होगा. हालांकि, अंततः यह मांग है जो कीमत निर्धारित करती है. कैपिटल फ्लो बने रहने से डॉलर भी मजबूत है. रिजर्व करेंसी होने और, ज्यादातर ग्लोबल ट्रेड भी अमेरिकी डॉलर में होता है इसलिए भी डॉलर की पॉजिशन मजबूत रहती है. .

ADVERTISEMENT

अमेरिकी डॉलर भी सुरक्षित नहीं

डॉलर के लिए वास्तविक खतरा द्विपक्षीय व्यापार व्यवस्था और डी-डॉलराइजेशन के रूप में उभर रहा है. चीन, रूस, सऊदी अरब और कई एशियाई देश इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. जैसे-जैसे दुनिया एकध्रुवीय शासन से बहुध्रुवीय होती जा रही है, करेंसी वॉर तेज होते जा रहे हैं. आर्थिक और जियोपॉलिटकल टार्गेट के लिए करेंसी एक महत्वपूर्ण उपकरण बन गई हैं.

तो डॉलर को किसके खिलाफ अपना मूल्य गिराना चाहिए, क्योंकि यह रिजर्व करेंसी है? गोल्ड के खिलाफ. गोल्ड माइनिंग कंपनी और उनके निवेशकों को संदेह है कि कुछ लोगों ने निहित स्वार्थों की वजह से कीमतों को कृत्रिम रूप से कम रखा है. किसी देश की वित्तीय ताकत और आर्थिक आवश्यकताओं के अनुरूप ही वहां की करेंसी स्थिर होनी चाहिए क्योंकि अगर करेंसी ज्यादा वैल्युएशन वाली हो गई तो इसके नतीजे विनाशकारी हो सकते हैं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×