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चुनाव से पहले कश्मीर में घुसपैठ बढ़ने का मतलब क्या है?

कश्मीर में चुनाव से पहले सुरक्षा बल और सरकार की चुनौती दोनों बढ़ी

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जम्मू-कश्मीर में सीमापार से घुसपैठ के चिंताजनक संकेत मिल रहे हैं. राज्य की दक्षिणी सीमा पर घुसपैठ बढ़ गई है. बीते कुछ हफ्तों से पाकिस्तानी घुसपैठियों के इस इलाके में घुस आने के बारे में खुफिया रिपोर्ट मिल रही हैं. बताया जा रहा है कि घुसपैठ की कई घटनाएं पतझड़ के मौसम में हुई हैं और ऐसी घटनाएं अभी तक जारी हैं. सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सर्दियों के दौरान घुसपैठियों को दक्षिणी हिस्से में देखा गया है.

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हालांकि इस साल असाधारण सर्दी ने उत्तर कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के शमसबरी इलाके को पार करना घुसपैठियों के लिए बहुत मुश्किल बना दिया है. यहां से बीते समय में घुसपैठ की कई घटनाएं होती रही हैं. अधिकारी ने बताया है कि आशंका यह है कि तस्कर जिन रास्तों का इस्तेमाल करते हैं, उनसे घुसपैठिए जुड़ गए हैं.

एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की है कि घुसपैठ की कोशिशों पर उनका ध्यान है, लेकिन उन्होंने कहा है कि खुफिया रडार पर जो हाल की घटनाएं देखी गई हैं उनमें से बड़ी संख्या में घटनाएं कुछ महीने पहले की हैं. वास्तव में घुसपैठ पर ध्यान तब गया, जब घुसपैठिए स्थानीय आबादी में घुल मिल चुके थे.

बसंत की तैयारी

अभी यह साफ नहीं है कि इन विदेशी घुसपैठियों या फिर राज्य के दक्षिणी हिस्से से आए नए घुसपैठियों से निपटने के लिए इस क्षेत्र में क्या कदम उठाए जा रहे हैं. घुसपैठिए घाटी के रास्ते आगे का रुख कर सकते हैं ताकि वे पहले से नागरिकों के बीच घुसपैठ कर चुके अपने साथियों के साथ घुलमिल सकें.

इन घटनाओं की वजह से बसंत और गर्मी में गतिविधियां तेज रह सकती हैं. इस सर्दी में जबरदस्त बर्फबारी की वजह से बसंत की शुरुआत में देरी हो सकती है. रमजान का महीना इस साल मई के दूसरे हफ्ते में शुरू हो सकता है.

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चुनाव का मौसम

इसका मतलब यह भी है कि आतंकी गतिविधियां जून के मध्य में तेज हो सकती हैं. लोकसभा चुनाव तक समय उनके पास समय है. यह चुनाव अप्रैल-मई में होना है. राजनीतिक गतिविधियां पहले ही तेज हो चुकी हैं. यहां तक कि चुनावी सरगर्मी दक्षिण कश्मीर में भी है, जहां बीते कुछ सालों से उथल-पुथल ज्यादा रही है. यह साफ नहीं है कि पाकिस्तान से आए घुसपैठिए का इरादा इस चुनाव में खलल डालने का है या नहीं.

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चुनाव को लेकर स्थिति साफ नहीं

कश्मीर में चुनाव से पहले सुरक्षा बल और सरकार की चुनौती दोनों बढ़ी
लोकसभा चुनाव से पहले बढ़ती घुसपैठ चिंता का विषय
फोटो - द क्विंट

लोकसभा चुनाव के साथ जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव होंगे या नहीं इस पर अब भी सवालिया निशान लगा हुआ है. सरकार के भीतर मजूबत लॉबी इसके लिए दबाव डाल रही है ताकि मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक सिर्फ एक बार जाना पड़े. हालांकि स्थानीय निकायों के चुनाव अपेक्षाकृत बाधारहित तरीके से पूरे हो चुके हैं, मगर घुसपैठिए विधानसभा चुनाव के दौरान खतरा बन सकते हैं.

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घुसपैठ नए खतरे का संकेत

ऐसे समय में जब सुरक्षाबलों को दक्षिण कश्मीर में आतंकियों को मार गिराने और उनका सफाया करने में जबरदस्त सफलता मिल रही है, घुसपैठ की घटनाएं नए खतरे का संकेत हैं. जून के मध्य में रमजान सीजफायर के खत्म होने के सात महीने बाद से दक्षिण कश्मीर के ज्यादातर हाई प्रोफाइल आतंकी मारे गए हैं. रियाज नाइकू इकलौता ऐसा आतंकी है जो इस क्षेत्र में जीवित है.

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बीते चार सालों में सुरक्षाबलों का ध्यान मूल रूप से दक्षिण कश्मीर के जिलों पुलवामा, शोपियां और कुलगाम में रहा है. बहुत से आतंकी, जिनमें ज्यादातर कम उम्र के बच्चे हैं, इन्हीं इलाकों से भर्ती किए गए थे. कई चरणों में पुलिसकर्मियों, सीआरपीएफ कैंप और यहां तक कि सैनिकों के काफिले को नुकसान भी इन्हीं लोगों ने पहुंचाया था.
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आतंकियों की भर्ती में गिरावट

ऐसा लगता है कि मन्नान वानी, जो आतंक की राह पर चलने से पहले अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का छात्र था, की मौत का इस इलाके में सक्रिय आतंकियों पर बड़ा असर हुआ है.

अक्टूबर में उसकी मौत के बाद नियुक्तियां कम हो गई हैं. खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक 2018 के शुरुआती कुछ महीनों में बहुत कम नए लड़के ही जुड़ पाए. ये नियुक्तियां हर महीने 3-4 लोगों तक सीमित हो गईं.

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बड़ी संख्या में आतंकियों के उत्तर कश्मीर में ठिकाने

जब दक्षिण कश्मीर पर पूरा ध्यान रहा तो बड़ी संख्या में विदेशी आतंकियों ने उत्तर कश्मीर की घाटी में ठिकाना बना लिया. ये लोग यहां बीते कुछ सालों से जमा हुए हैं लेकिन बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं हैं. बीते पांच साल से हर रोज उनकी कोशिश शमसबरी पार करने की रही है. कई चरणों में हर रात 4 से 5 बार कोशिशें की जाती हैं. उत्तर पूर्व के बांदीपुरा के जंगलों और घाटी के उत्तर पश्चिम में लंगट और राफियाबाद इलाके के जंगलों के आसपास हाजिन इलाके में बड़ी संख्या में संदिग्धों के होने के संकेत मिले हैं.

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लेखक कश्मीर में रहने वाले पत्रकार हैं. उनसे @david_devadas. पर संपर्क किया जा सकता है. इस लेख में उनके अपने विचार हैं. द क्विंट न उनके इन विचारों का समर्थन करता है और न इनके लिए जिम्मेदार है.

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