कर्नाटक विधानसभा में फ्लोर टेस्ट से पहले भले ही बीएस येदियुरप्पा ने इस्तीफा देकर ज्यादा किरकिरी होने से खुद को बचा लिया, लेकिन इस पूरे एपिसोड में बीजेपी ने काफी-कुछ खोया है. इतना ज्यादा खोया, जिसकी भरपाई आने वाले तीन विधानसभा चुनावों और 2019 चुनाव तक भी शायद ही हो सके.
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जोड़-तोड़ की कोशिश करने का संगीन आरोप
कर्नाटक विधानसभा में बहुमत के आंकड़े से पीछे रह जाने के बावजूद बीजेपी ने सरकार बनाने की जिद की. इससे निश्चित तौर पर बीजेपी की इमेज को बड़ा नुकसान पहुंचा. पब्लिक के बीच ये मैसेज गया कि अब किसी भी तरह जोड़-तोड़ कर सत्ता हासिल करना ही बीजेपी का मकसद रहा गया है.
ये एकदम साफ था कि बीजेपी भले ही विधानसभा में 104 सीटें हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी हो, लेकिन बिना अनैतिक जोड़-तोड़ किए, बिना खरीद-फरोख्त में हाथ डाले, बहुमत का आंकड़ा हासिल करना मुमकिन नहीं है. इसके बावजूद अगर बीजेपी ने बहुमत हासिल करने का दम भरा, तो इसके पीछे उसकी मंशा जाहिर हो गई.
वक्त-वक्त पर पर्दे के पीछे से कई खबरें आती रहीं. अंत-अंत तक ऐसा लगता रहा था कि कांग्रेस और जेडीएस की 'कमजोर कड़ी' खोजने की कोशिश की जा रही है.
गनीमत बस इतनी रही कि बीजेपी ने अंत समय में येदियुरप्पा से इस्तीफा दिलवाकर अपनी हार कबूल कर ली. अपने पास आंकड़े न होने और दूसरे खेमे के पास बहुमत होने के बावजूद अगर बीजेपी ने बहुमत साबित करने का दावा किया, तो इसका पूरा आधार अनैतिक था. जाहिर है, फ्लोर टेस्ट से पहले येदियुरप्पा के इस्तीफा का आधार भी नैतिक नहीं था, ये उनकी विवशता थी.
आखिरकार क्वार्टर फाइनल हार गई बीजेपी
कर्नाटक चुनाव से पहले ये कहा जा रहा था कि इस राज्य का चुनाव 2019 के चुनाव का क्वार्टर फाइनल साबित होने जा रहा है. अगर ऐसा है, तो इस क्वार्टर फाइनल में बीजेपी की हार पर अब मुहर लग चुकी है.
बीजेपी इस बात से थोड़ी खुश हो सकती है कि वह चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें (104) हासिल करने में कामयाब रही. इसके बावजूद उसे इस बात का मलाल जरूर रहेगा कि वह आखिरी ओवर में जीत की दहलीज तक पहुंचकर भी मैच हार गई. ये हार उसका मनोबल तोड़ेगी.
विधानसभा चुनावों और 2019 के चुनाव पर असर
कर्नाटक की हार बीजेपी के लिए दक्षिण भारत के एक प्रदेश की हार भर नहीं है, जहां पहले कांग्रेस की ही सरकार थी. कर्नाटक के 'नाटक' का असर अपने वाले दिनों में होने वाले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव पर भी पड़ने के आसार हैं.
अगर बीजेपी अपने दम पर कर्नाटक में बहुमत के लिए जरूरी आंकड़ा लाने में कामयाब होती, तो इससे उसके विरोधियों के मनोबल पर विपरीत असर पड़ता. लेकिन अब हालात बीजेपी के लिए उलट और उसकी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के लिए अनुकूल मालूम पड़ रहे हैं.
ये आशंका पहले ही जताई जा रही है कि मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार को किसान आंदोलन के खामियाजे के साथ-साथ एंटी इनकम्बेंसी का सामना करना पड़ सकता है. राजस्थान में भी कुछ छोटे-बड़े आंदोलनों (पद्मावती विवाद याद कीजिए) की वजह से भी हालात वसुंधरा सरकार के लिए अनुकूल नहीं हैं.
कर्नाटक का 'नाटक' और टर्निंग पॉइंट
कुल मिलाकर देखें, तो अलग चाल, चरित्र और चेहरा होने की बात करने वाली बीजेपी कर्नाटक कांड की वजह से बैकफुट पर है. अब कांग्रेस सीधे-सीधे पीएम नरेंद्र मोदी पर संवैधानिक संस्थाओं के अपमान और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का आरोप लगा रही है. बीजेपी के लिए इस आरोप का जवाब देना आसान नहीं होगा.
बहुत मुमकिन है कि कर्नाटक की हार देश की राजनीति के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हो. पब्लिक के लिए तसल्ली की बात ये है कि कर्नाटक के 'नाटक' का अंत लोकतंत्र के लिए बुरा नहीं रहा. मतलब लोकतंत्र से उम्मीदें अभी भी जिंदा हैं.
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