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J&K: धमकियों के बावजूद भारी संख्या में वोटिंग क्या कहती है?

इस वोटर टर्न आउट का स्वागत किया जाना चाहिए

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पाल्हालन एक विशाल हैमलेट है, जो राजमार्ग के उत्तर-पूर्वी भाग से लेकर उत्तरी कश्मीर तक फैला हुआ है. पिछले दशक में ये इलाका सबसे संवेदनशील और कश्मीर के अलग-थलग हिस्से के रूप में जाना जाता रहा है. यहां पत्थरबाजी की घटनाएं अपने चरम पर थीं और लोगों में असंतोष भरपूर था.

शायद यही कारण था कि 2014 के चुनावों में यहां सिर्फ सात वोट पड़े थे, लेकिन गुरुवार को हुई वोटिंग में 11.7% आबादी, यानी पाल्हालन के हजार से अधिक लोगों ने वोट डाले. हलांकि इनमें कुछेक को विरोधियों के पत्थर भी खाने पड़े और वो जख्मी भी हुए.

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इस वोटर टर्न आउट का स्वागत किया जाना चाहिए. पिछले दिनों हुए प्रचारों का असर उलट गया है. पिछले कुछ सालों से पाल्हालन में पत्थरबाजी की घटनाओं में भी कमी आई है. ये टर्न आउट साफ तौर पर एक नई सोच की उपज है.

परिवर्तन की इस उम्मीद पर सकारात्मक प्रतिक्रिया होनी चाहिए. सत्ता तथा ताकत के गलियारों में स्थापित व्यक्तियों को पाल्हालन की जनता को ये महसूस नहीं होने देना चाहिए कि उन्हें ठगा गया हो.

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उल्लेखनीय टर्न आउट

जहां तक टर्न आउट का सवाल है तो पाल्हालन उत्तरी कश्मीर के ज्यादातर इलाकों के लिए स्पष्ट परिवर्तन दिखाने की मिसाल है. इसकी झलक पिछले कुछ हफ्तों से जोर-शोर से चल रहे चुनाव प्रचार के दौरान ही दिख गई थी.

आतंकवादियों के खतरों, बहिष्कार का ऐलान और स्थानीय निकायों में कम मतदान की चुनौतियों के बीच इतनी संख्या में वोटरों का टर्न आउट उल्लेखनीय है. हालांकि कश्मीर में लोकसभा चुनावों को लेकर तब तक उदासीनता रहती है, जब तक कोई बड़ा नेता चुनाव न लड़ रहा हो.

इस बार घाटी में ऊंची प्रोफाइल वाले नेता श्रीनगर (मध्य कश्मीर) और अनंतनाग (दक्षिणी कश्मीर) सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस अध्यक्ष फारुक अब्दुल्ला श्रीनगर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती तथा कांग्रेस के राज्य अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर अनंतनाग सीट से अपनी-अपनी चुनावी किस्मत आजमा रहे हैं.

उत्तर कश्मीर में चुनाव के प्रति रुझान की एक वजह, यहां आतंकवादियों का डर कम होना भी था. जबकि दक्षिणी कश्मीर के कुछ जिलों में ये खतरा ज्यादा है. राज्य के दो ऊंची प्रोफाइल वाले आतंकवादियों में एक है, रियाज नाइकू, जिसने चुनाव की पूर्व संध्या पर उत्तरी कश्मीर के नागरिकों को संबोधित करते हुए एक ऑडियो जारी किया, जिसमें भावुक अंदाज में चुनाव बहिष्कार की अपील की गई थी.

दूसरी ओर उत्तर कश्मीर में मजबूत टक्कर थी. हालांकि श्रीनगर के चुनावी मैदान में कोई हलचल नहीं थी और कई पर्यवेक्षकों का कहना था कि यहां सिर्फ फारुक अब्दुल्ला का बोलबाला था.

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तेज परिवर्तन

उत्तरी कश्मीर के संघर्ष का रूप बहुरंगी kaleidoscope की तरह बदलता रहा है. शाह फैजल ने आईएएस की नौकरी से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ने का मन बनाया. वो घाटी के उत्तरी छोर स्थित लोलाब के रहने वाले हैं.

हालांकि फैजल लोकसभा चुनाव से पीछे हट गए, लेकिन सज्जाद गनी लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (PC) पार्टी ने राजा ऐजाज अली को अपना उम्मीदवार बनाया है, जो पहाड़ी समुदाय से और एक रिटायर्ड पुलिस महानिरीक्षक हैं. इस बार वो PDP छोड़कर PC की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.

उनके गृह निवास उरी और सुदूर उत्तर में स्थित करना तहसील में हमेशा से भारी संख्या में मतदान होता रहा है. गुरुवार को भी इन क्षेत्रों में भारी संख्या में, यानी लगभग 50% मतदान हुआ. उरी की तुलना में करना की ज्यादातर आबादी पहाड़ी समुदाय की है, लेकिन उरी की तुलना में यहां पहाड़ी समुदाय के मतदाताओं की संख्या कम है.

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शिया फैक्टर

PC के पारंपरिक वोट बैंक क्षेत्रों के अलावा अन्य जगहों पर मतदान कम होता है, तो भी राजा ऐजाज की स्थिति मजबूत हो सकती है. PC का पारंपरिक वोट बैंक कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा और कुपवाड़ा तहसील और PC के महासचिव इमरान अंसारी का शिया वोट बैंक है, जो मुख्य रूप से पाटन में स्थित है.

घाटी के अल्पसंख्यक शिया समुदाय में अंसारी परिवार का अच्छा प्रभाव है. पिछली गर्मियों में जब बीजेपी ने PDP से समर्थन वापस ले लिया, तब अंसारी PDP छोड़कर PC में शामिल हो गए थे.

कुछ हफ्ते पहले दौरे से एक बात स्पष्ट महसूस हुई, कि पाटन अब अंसारी का एक मजबूत वोट बैंक नहीं रहा. जोर-शोर से चल रहे चुनाव प्रचार के दौरान PDP के एक बड़े नेता का अंसारी परिवार के एक सदस्य से मुलाकात करना भी वोटरों के रुझान पर असर डाल सकता है.

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जुझारु इंजीनियर राशिद

अभी चुनाव प्रचार अपने आधे रास्ते ही था कि PC के चुनावी समीकरण में गड़बड़ी हो गई. मुखर और जुझारु व्यक्तित्व के मालिक ‘इंजीनियर’ राशिद भी चुनावी दौड़ में शामिल हो गए. राशिद का लांगटे में मजबूत आधार है, जहां से वो दो बार विधानसभा सदस्य रह चुके हैं.

अगर राशिद उम्मीदवार नहीं बनते तो PC को लांगटे क्षेत्र में भारी समर्थन मिल सकता था. ये क्षेत्र न सिर्फ राशिद का घर है, बल्कि पिछले कुछ दिनों में उनके चुनाव प्रचार में भी तेजी आई है. राशिद का मुख्य चुनावी मुद्दा है, कि वो लोकसभा पटल पर आत्मनिर्णय के अधिकार की मांग रखेंगे. पिछले कुछ दिनों से उन्हें प्रभावशाली शाह फैजल का भी समर्थन प्राप्त हुआ है, जिन्होंने राशिद को वोट देने की घोषणा की थी.

ग्रेपवाइन के मुताबिक उत्तरी कश्मीर के विभिन्न क्षेत्रों में अपना प्रभुत्व रखने वाले कई अन्य राजनीतिज्ञों ने भी अपने समर्थकों से राशिद को समर्थन देने के लिए कहा है. लिहाज वोटिंग का दिन आते-आते राशिद की उम्मीदवारी काफी मजबूत हो गई थी.

नेशनल कांग्रेस का उम्मीदवार पहले ही मजबूत था.

PDP के विरुद्ध एंटी इनकंबेंसी भावनाओं के अलावा कामकाज को लेकर भी लोगों में बीजेपी से नाराजगी थी. दूसरी ओर ये भी माना जाता है कि PC या PDP के केंद्र सरकार के साथ गुप्त संबंध हैं.

नेशनल कॉन्फ्रेंस को उस नजरिए से नहीं देखा जाता, जबकि PC नेताओं ने बार-बार याद दिलाया कि पार्टी उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार में मंत्री रह चुके हैं, लेकिन ये दलील काम नहीं आई, क्योंकि मोटा-मोटी कश्मीरी जनता के दिल में वाजपेयी के लिए सम्मान है, जिनके शासनकाल में उमर मंत्री थे, और अब श्री मोदी के सख्त खिलाफ हैं.

(लेखक ने The Story of Kashmir’ औरThe Generation of Rage in Kashmir’ पुस्तकें लिखी हैं. उनसे ट्विटर पर @david_devadas पर संपर्क किया जा सकता है. आलेख में दिए गए विचार उनके निजी विचार हैं और क्विंट का उससे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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