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उन्नाव रेप केस में भारतीय न्याय व्यवस्था की साख भी ताक पर है...

उन्नाव रेप केस में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में तेजी और फैसलों के क्या है मायने?

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1 अगस्त की तारीख कई कारणों से अहम रही. उन्नाव केस में सुप्रीम कोर्ट ने कई आदेश जारी किए जो पीड़िता को न्याय दिलाने के नाम पर जरूर हैं लेकिन वास्तव में न्याय व्यवस्था अपनी साख बचाता दिख रहा है. बीजेपी ने भी आरोपी विधायक के निलंबन को निष्कासन में बदल डाला. वहीं, यूपी पुलिस ने भी उन तीन अंगरक्षकों को निलंबित कर दिया जिनका वो कथित दुर्घटना के बाद से ही बचाव कर रही थी.

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उन्नाव गैंग रेप केस में सुप्रीम कोर्ट ने तब संज्ञान लिया जब यह बात सामने आयी कि पीड़िता की ओर से 18 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट को भेजी गई चिट्ठी मुख्य न्यायाधीश तक नहीं पहुंची. अगले दिन चौथे नंबर पर सुनवाई के लिए तय इस केस को सबसे पहले सुना गया. सीबीआई से तुरंत जांच की स्टेटस रिपोर्ट देने से लेकर पीड़िता के स्वास्थ्य तक की स्थिति पर सर्वोच्च न्यायालय ने रिपोर्ट तलब की.

सुप्रीम कोर्ट ने जो आज फौरी आदेश दिए हैं उन पर गौर करने की जरूरत है और इस बात पर भी कि इसके मायने क्या हैं.

उन्नाव रेप केस में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में तेजी और फैसलों के क्या है मायने?
उन्नाव रेप केस में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में तेजी और फैसलों के क्या है मायने?

सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश एकतरफा जारी किया है. इससे पहले उसने दूसरे पक्ष को सुना तक नहीं है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में सफाई दी है कि ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि उसका मकसद जांच और सुनवाई में तेजी लाना है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कह दिया है कि 1 अगस्त को पारित आदेश में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा.

पीड़ित के साथ खड़ा रहने का सच

उत्तर प्रदेश सरकार और बीजेपी का दावा है कि वे हमेशा से रेप की शिकार लड़की और उसके परिवार के साथ रही है. आरोपी विधायक पर कार्रवाई और उसे जेल में पहुंचाने से लेकर सीबीआई जांच तक का श्रेय सरकार ले रही हैं. मगर, तथ्यों की रोशनी में यह दावा खोखला दिखता है.

पीड़िता अपनी फरियाद लेकर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के आवास पर 8 अप्रैल 2018 को पहुंची थी. आत्मदाह का प्रयास भी किया था. मगर, उसकी फरियाद नहीं सुनी गई. अगले दिन 9 अप्रैल 2018 को पुलिस हिरासत में उसके पिता की हत्या कर दी गई. 11 अप्रैल को इलाहाबाद हाईकोर्ट की पहल के बाद सीबीआई ने विधायक कुलदीप सेंगर को 13 अप्रैल को गिरफ्तार किया. गिरफ्तारी के बावजूद गवाह की हत्या (18 अगस्त 2018) से लेकर धमकी का लंबा दौर जारी रहा.

पीड़िता के परिवार ने 35 चिट्ठियां लिखी, जिसमें इन धमकियों का जिक्र है. केस लड़ने वाले चाचा को एक पुराने मामले में जेल भेज दिया गया. और, आखिरकार उन्हीं चाचा से जेल में मिलकर लौटते समय पीड़िता, उसके वकील, चाची, मौसी को कार समेत कुचल दिया गया. मुख्य न्यायाधीश तक पीड़िता की आवाज समय पर नहीं पहुंच पाई.

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विधायक कुलदीप सेंगर का निलंबन निष्कासन में बदला

बीजेपी ने कुलदीप सेंगर को पार्टी से निष्कासित करने की घोषणा की है. माना जा रहा है कि चूकि सीबीआई ने जेल में बंद विधायक समेत 30 लोगों पर हत्या और हत्या की साजिश का मामला दर्ज किया है, इसलिए बीजेपी ने विधायक के निलम्बन को निष्कासन में बदल दिया है. हालांकि किसी खास अनुशासन समिति में यह फैसला हुआ हो, ऐसी बात सामने नहीं आई है. यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने केंद्रीय नेतृत्व के हवाले से निष्कासन की घोषणा की है.

रेप पीड़िता के 3 बॉडीगार्ड पर भी गिरी गाज

पुलिस ने पीड़िता के उन तीन अंगरक्षकों को भी निलम्बित किया है जो दुर्घटना के वक्त पीड़िता के साथ नहीं थे. आश्चर्य की बात ये है कि डीजीपी ओपी सिंह ने घटना के अगले दिन जो कैमरे पर बयान दिया, उसमें उन्होंने इसे प्रथम दृष्टया दुर्घटना बताया था. उन्होंने अंगरक्षकों के साथ नहीं रहने को भी पीड़िता परिवार की मर्जी बताया. उन्होंने कहा कि पीड़िता परिवार ने अंगरक्षकों को गाड़ी में जगह नहीं होने और आगे एक अन्य आदमी को बिठाने की बात कहकर साथ ले जाने से मना कर दिया था.

पूर्व डीजीपी सुब्रत त्रिपाठी ने इन तर्कों को खारिज कर दिया. उनका कहना है, “जिन्हें सुरक्षा मिली है वे सुरक्षा लेने से इनकार नहीं कर सकते. इसके लिए उन्हें सुरक्षाकर्मियों को लौटाना होगा. यह सुरक्षाकर्मियों का काम था कि गाड़ी में जगह नहीं थी तो वे अपने सीनियर से कहकर इसकी व्यवस्था कराते.”

उन्नाव गैंगरेप केस में सबसे जरूरी है पीड़िता की जान. अगर यह जान बचाई नहीं जा सकी तो इंसाफ के लिए सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता भी बेमानी हो जाएगी. यह नजीर बनेगी कि रेप के लिए न्याय मांगती हुई एक नाबालिग फरियादी अपना पूरा परिवार तबाह कर बैठी और अपनी भी जान गंवा बैठी. भारतीय न्याय व्यवस्था की साख का सवाल बन चुका है उन्नाव रेप केस.

(प्रेम कुमार जर्नलिस्‍ट हैं. इस आर्टिकल में लेखक के अपने विचार हैं. इन विचारों से क्‍व‍िंट की सहमति जरूरी नहीं है.)

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