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UP पंचायत चुनाव: खूब मनी AAP की 'बच्चा पार्टी', गढ़ में हारी BJP

क्या पंचायत चुनाव ने केजरीवाल को यूपी में लॉन्च पैड दे दिया है?

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आम आदमी पार्टी उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव में 'बड़ी जीत' दर्ज करने का जश्न ट्विटर पर मना रही है.

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24 घंटे पहले उत्तर प्रदेश से पार्टी के प्रमुख चेहरे और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने जयकारा लगाया कि 'आप' समर्थित 70 उम्मीदवारों ने अपने अपने जिला पंचायत वार्डो में जीत दर्ज की है. अगर पार्टी द्वारा जीत के दावों वाले इस संख्या को 'फेसवैल्यू' पर स्वीकार कर भी लिया जाए तो 3051 सीटों वाले इस चुनाव में वह बहुत छोटा हिस्सा होगा. यह रिपोर्ट खत्म करते समय उत्तर प्रदेश के 'आप' अध्यक्ष से पूछने पर उन्होंने इस संख्या को 100 के आसपास बताया.

लेकिन क्या इस छोटे, यद्यपि अखिल-UP, शुरुआत को अरविंद केजरीवाल की पार्टी 'अभूतपूर्व जीत' बता बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रही है?

उत्तर प्रदेश में दबाव की राजनीति

अपने पाठकों की सहूलियत के लिए छोटे से प्रमाण के साथ इस चुनाव के संदर्भ को समझाने की कोशिश करते हैं, जिसे मार्च 2022 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है.

52 वर्षीय फहीम खान एक दशक पहले पहली बार जिला पंचायत चुनाव लड़े और हारे, जब उन्हें समाजवादी पार्टी का समर्थन नहीं मिला था. इस बार 'आप' द्वारा समर्थित फहीम आखिरकार जीत गए और साथ ही लखीमपुर खीरी के विभिन्न वार्डों से चार अन्य उम्मीदवार भी. .'आप' को शुक्रिया कहते हुए उन्होंने कहा कि "मैं यह तो बाद में ही बता सकूंगा की 'आप' का समर्थन गेमचेंजर साबित हुआ या नहीं, लेकिन इतना कह सकता हूं कि 'आप' ने मुझे इस चुनाव को लड़ने में मदद की"

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अब जीत के बाद क्या फहीम की वफादारी दृढ़ता के साथ 'आप' के साथ रहेगी? फहीद ने कहा वह हमें बताएंगे "कुछ दिनों में"

फहीद का यह गैर- प्रतिबद्धता भरा जवाब इस बात को प्रकट करता है कि स्थानीय चुनाव में विजेता किस तरह की स्वतंत्रता भोगता है. उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में तो और, जहां एक बार जीत के बाद उम्मीदवार तुरंत ही हर तरह के दबाव और बहलावे-फुसलावे के बीच में आ जाता है .

यह फर्क नहीं पड़ता कि किस पार्टी ने उनको जीतने में मदद की है. उनका वोट किसी भी मजबूत उम्मीदवार (चाहे विरोधी पार्टी का हो) के द्वारा मांगा जा सकता है, जिसे जिला पंचायत अध्यक्ष बनने के लिए उसके वोटों की सख्त जरूरत हो. जिला पंचायत अध्यक्ष जिला स्तरीय शक्तिशाली पद है ,जिसके हाथ में सरकारी फ्लैगशिप योजनाओं पर व्यय करने का अधिकार होता है.
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वाराणसी और गोरखपुर में 'आप' का प्रदर्शन

आप द्वारा समर्थित सुनीता देवी अब लखीमपुर खीरी के कोरिया चामुरू गांव की ग्राम प्रधान चुनी गई हैं. उनके पति मलखान सिंह अब 'प्रधान पति' हैं- उत्तर प्रदेश में आरक्षित सीटों पर चुनी महिला प्रधानों के पति के लिए प्रयुक्त होने वाला टर्म. वह 6 महीने पहले आम आदमी पार्टी से जुड़े हैं और इसका उन्हें फल भी मिल गया है. 35 वर्षीय मलखान सिंह ने कहा "हमें 'आप' के समर्थन का पूरा फायदा मिला है. अब बस इंतजार करिए और देखिए कि हमारी पार्टी और उसके नेता किस तरह यूपी में और लोकप्रिय होते हैं".आप द्वारा समर्थित सुनीता देवी अब लखीमपुर खीरी के कोरिया चामुरू गांव की ग्राम प्रधान चुनी गई हैं. (फोटो-वलीम खान ,आप जिला अध्यक्ष)

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ऐसा ही 'आप' समर्थित जीत का शानदार दावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी से आया है .'आप' के वाराणसी अध्यक्ष कैलाश पटेल ने कहा कि वाराणसी के वार्ड नंबर 1 से राधिका यादव जीती है. यह एक महिला आरक्षित सीट है ,और जैसे ही राधिका विजेता घोषित हुई पटेल ने कहा कि "उनका फोन स्विच ऑफ आ रहा है' और 'आप' कार्यकर्ताओं का भी उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है .

इसी तरह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर में 'आप' गोरखपुर अध्यक्ष हरेंद्र यादव ने कहा कि उनके चार विजेता उम्मीदवारों में से दो के जीत की आधिकारिक घोषणा जिला प्रशासन द्वारा होना बाकी है.

जब मैंने उनसे विजेताओं से संपर्क करवाने को कहा तो उन्होंने जवाब दिया कि"मैं कोशिश करूंगा.अभी वह अपना सर्टिफिकेट लेने में व्यस्त होंगे"

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'आप' के बड़े दावे

'ऐतिहासिक जीत' और उत्तर प्रदेश की राजनीति में 'आप' के प्रवेश का यह दावा बढ़ा चढ़ाकर बताया हुआ लगता है .पंचायत चुनाव की प्रक्रिया- अपने निहित संरचना दोष के कारण- 'आप' के इस प्रदर्शन के परीक्षण को मुश्किल बना देती है ,जिसे 'आप' अपना वैधानिक राजनैतिक लॉन्चपैड बता रही है.

बेशक पंचायत चुनाव के लिए उम्मीदवारों की घोषणा और परिणाम आने के बाद उन्हें साथ बनाए रखना एक चुनौती है ,जिसका हर पार्टी सामना करती है. उम्मीदवारों के चयन की अस्पष्ट प्रकृति और पार्टी चिन्ह की अनुपस्थिति के कारण अंतिम परिणामों को अपने पक्ष में बताने की पर्याप्त सहूलियत पार्टियों को होती है. यह भी एक कारण हो सकता है कि 'आप' ने इस चुनाव फॉर्मेट में दांव खेला है .

इसी बीच 'आप' के यूपी ट्विटर अकाउंट पर उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में से अधिकतर से जीतते उम्मीदवारों की घोषणा हो रही है. अब की जब जीत का जश्न मनाना बैन है ,सोशल मीडिया ही अकेला बैरोमीटर है जहां 'आप' के कार्यकर्ता और नेता जीत को उत्साहित होकर पेश कर सकेंगे.

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यूपी में बीजेपी की हार

'आप' के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष अमरजीत सिंह ,जो कि यहां सोशल मीडिया जश्न को भी नेतृत्व दे रहे हैं, ने कहा कि "ये विजेता उम्मीदवार हमारे पास समर्थन मांगने आए थे. उन्होंने सदस्यता ली ,इसी कारण हमने उनके नामों की लिस्ट जारी की और उन्हें 'आप' का विजेता मान रहे हैं.हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि उन्हें पाला बदलने के लिए मनाया नहीं जा सकता. उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दबाव सामान्य बात है. आप सही हैं कि इन उम्मीदवारों की वफादारी सुनिश्चित नहीं की जा सकती लेकिन राजनीति में इसको गारंटी के रूप में भी नहीं लिया जा सकता. हम आशावादी हैं कि जो हमसे विचारधारा की वजह से जुड़े हैं वह आगे भी हमारे साथ रहेंगे"

अगर आप पंचायत चुनाव में नए हो तो हर पार्टी के शानदार जीत का दावा आपको उलझन में डाल सकता है .लिडिंग लोकल न्यूज़ नेटवर्क 'पार्टीवाइज टैली' के लिए जिला पंचायत सदस्यों की संख्या की गणना करते हैं.
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दिलचस्प रूप से समाजवादी पार्टी ने जीत प्राप्त समर्थित उम्मीदवारों की लिस्ट जारी नहीं की है ,जिनका 3050 वार्ड में एक तिहाई से ज्यादा सीट पर जीतने का अनुमान है .

दूसरे नंबर पर 900 सीट के साथ बीजेपी रही, 300 वार्ड में जीत के साथ बसपा तीसरे नंबर पर जबकि कांग्रेस तथा 'आप' ने लगभग 70-70 वार्डो में जीत दर्ज की.

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इस परिणाम के विश्लेषण से लगता है कि बीजेपी 2000 से ज्यादा सीटों पर हारी है और अयोध्या ,वाराणसी ,मथुरा में सपा द्वारा पराजित हुई जोकि सामान्यतः बीजेपी के हिंदुत्व विचारधारा के गढ़ माने जाते हैं .

लेकिन अभी चुनाव खत्म नहीं हुआ है. दूसरे चरण में जिला पंचायत अध्यक्षों का चुनाव होगा और अब बीजेपी उन सैकड़ों स्वतंत्र विजेताओं को अपने पाले में लाने की बेजोड़ कोशिश करेगी जिनकी मदद से बीजेपी समर्थित जिला पंचायत अध्यक्षों को जीताया जा सके.

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यूपी में 'बच्चा पार्टी' को बड़ा होने में कितना वक्त लगेगा

फिर से 'आप' पर आते हैं जो इस चुनाव में नवजात शिशु की तरह थी. इससे पहले 4 मार्च 2021 को इसके एक वरिष्ठ नेता ने स्वीकारा था कि 'आप' यह जानती है कि वह उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी 'बच्चा पार्टी' है और इस चुनाव में वह सिर्फ कैडर बनाने का लक्ष्य लेकर चल रही है.

और जो लोग उत्तर प्रदेश की राजनीति को करीब से देखते हैं वह आपको बताएंगे कि इस पार्टी को इस निर्मम राजनैतिक जमीन पर गंभीर विकल्प बनने में वर्षों, शायद दशकों लग सकते हैं ,जहां की राजनीति अभी 'आप' के मॉडल को स्वीकार करने से बहुत दूर है.

अभी के लिए 'आप' ने एक सुविधाजनक बेसलाइन चुना है. इसलिए जो भी परिणाम आए वह विजेता और 2022 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए तैयार दिख रही है.

( अनंत जनाने उत्तर प्रदेश बेस्ड पत्रकार हैं, जो एनडीटीवी के साथ एक दशक से ज्यादा समय तक जुड़े रहे. उनका ट्विटर हैंडल है @anantzanane . यह एक रिपोर्ट- एनालिसिस है. यहां लिखे विचार लेखक के अपने हैं.द क्विंट का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है)

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