असल मोहम्मद अली जिन्ना कौन थे? जिस शख्स ने अकेले अपने दम पर पाकिस्तान बनाया, वो असल जिन्ना थे या असली जिन्ना राष्ट्रवादी नेता और सरोजिनी नायडू के दोस्त थे, जिन्हें वो हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल मानती थीं?
जिन्ना के रहन-सहन और पहनावे से उनकी धार्मिक पहचान का पता नहीं चलता था, लेकिन उसी शख्स ने 1940 में मुसलमानों के लिए अलग आजाद मुल्क की मांग की. तो फिर आप इनमें से असल जिन्ना किसे कहेंगे?
हमेशा पहेली बने रहेंगे जिन्ना?
एक और कोशिश करिए... 1916-17 में भारत के सबसे बड़े नेता बनने के करीब पहुंचने वाले इंसान को आप असल जिन्ना मानेंगे या गुमनामी के अंधेरों में गुम होने के बाद 1920 में जो शख्स लंदन वकालत करने चला गया, वो असल जिन्ना थे?
संजीदा और भावुकता से दूर रहने वाले असल जिन्ना थे या पत्नी से पागलपन की हद तक मोहब्बत करने वाले को आप असल जिन्ना मानेंगे? जिन्ना ऐसी ऐतिहासिक शख्सियत हैं, जो हमेशा पहेली बने रहेंगे.
अभी जिन्ना को सुर्खियों में लाने की खास वजह
एक बार फिर भारत में गलत वजह से जिन्ना सुर्खियों में आए हैं. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में उनकी तस्वीर को लेकर विवाद खड़ा हुआ है. कथित राष्ट्रवादियों को यूनिवर्सिटी में जिन्ना की तस्वीर गवारा नहीं है.
2019 लोकसभा चुनाव में ध्रुवीकरण के जरिये हिंदुत्व ब्रिगेड को कुछ अधिक वोट दिलाने के लिए वे इस मामले को तूल दे रहे हैं. इस वजह से यूनिवर्सिटी कैंपस और आसपास के इलाकों में सांप्रदायिक तनाव को काबू में करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा.
जिन्ना से राष्ट्रवादियों को नफरत क्यों?
इसमें कोई शक नहीं है कि अति-राष्ट्रवादी जिन्ना से नफरत करते हैं. वो मानते हैं कि जिन्ना की वजह से‘दुष्ट देश’ पाकिस्तान का जन्म हुआ, जो भारत को बर्बाद करना चाहता है. हालांकि, अति-राष्ट्रवादी संगठनों के आम कार्यकर्ताओं में से बहुत कम को पता होगा कि जब 1914 में महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत पहुंचे थे, तब जिन्ना भारत की आजादी के आंदोलन के चमकते हुए सितारे थे.
जिन्ना, गांधी से सात साल छोटे थे. दोनों गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र के रहने वाले थे. उम्र भले ही कुछ कम हो, लेकिन जिन्ना का कद स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक, मोतीलाल नेहरू, फिरोज शाह मेहता, लाला लाजपत राय, गोपाल कृष्ण गोखले, सीआर दास, मदन मोहन मालवीय जैसे दिग्गज नेताओं के बराबर माना जाता था. इनमें गोखले सबसे बड़े नेता थे और वह गांधी और जिन्ना दोनों को ही पसंद करते थे.
गोखले अक्सर कहते थे,‘गांधी में वो गुण हैं, जिनकी देश को जरूरत है.’ जिन्ना के बारे में वह कहते थे, ‘उनके अंदर सच्चाई है. वह धर्म-वर्ग आधारित पूर्वग्रह से मुक्त हैं. जिन्ना हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल हैं.’
जब गांधी ने रॉलेट एक्ट के विरोध का आह्वान किया, तब जिन्ना ने उनका समर्थन करते हुए पार्लियामेंट से इस्तीफा दे दिया. वह अंग्रेजों के लिए बड़ा झटका था. उस समय सर जॉर्ज लॉयड बॉम्बे के गवर्नर थे. उन्होंने उस घटना के बाद कहा था, ‘जिन्ना सबसे खतरनाक भारतीय नेता हैं और उनके राजनीतिक प्रभाव को कम किया जाना चाहिए.’
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जिन्ना और गांधी के बीच विवाद
गांधी के देश लौटने से पहले कांग्रेस कमोबेश प्रेशर ग्रुप की तरह काम कर रही थी. हालांकि, उस वक्त भी गोखले जैसे नेता जन-आंदोलन के बारे में सोच रहे थे, लेकिन गांधी देश के लोगों को साथ लेकर यह काम करने में सफल रहे. उन्होंने आजादी के आंदोलन को जन-आंदोलन में बदला. रॉलेट एक्ट का विरोध इस दिशा में पहला प्रयोग था.
जिन्ना के मन में खिलाफत आंदोलन को लेकर हिचक थी, लेकिन गांधी को इसमें मुसलमानों को आजादी के आंदोलन से जोड़ने का शानदार मौका दिखा.
1920 तक गांधी को संत का दर्जा मिल चुका था. कोलकाता में कांग्रेस पार्टी के विशेष अधिवेशन में जिन्ना ने गांधी के असहयोग आंदोलन के प्रस्ताव का विरोध किया, जिस पर उन्हें कांग्रेस कार्यकर्ताओं की नाराजगी का सामना करना पड़ा.
नौबत कार्यकर्ताओं के हाथों उनके पिटने तक की आ गई थी, लेकिन जिन्ना भी जिद्दी थे. नागपुर अधिवेशन में भी वह जनता का मन भांप नहीं पाए और इससे 23 साल पुराने उनके राजनीतिक करियर खत्म होने पर आ गया. वह हार चुके थे और गांधी आजादी के आंदोलन के निर्विवाद नेता बन चुके थे.
इंग्लैंड से लौटने के बाद जिन्ना बदल गए
इस हार से जिन्ना को बहुत तकलीफ हुई. उनका देश का सबसे बड़ा नेता बनने का सपना टूट गया था. आखिरकार उन्होंने इंग्लैंड जाने का फैसला किया. जिन्ना ने राजनीति छोड़ दी. जब वह इंग्लैंड से 1934 में भारत लौटे तो वह बदल चुके थे. पत्नी की कम उम्र में मौत के बाद वह आत्म केंद्रित हो गए थे.
मुस्लिम दोस्तों के बुलाने पर वह यहां‘कौम’ की रक्षा के लिए आए थे. वो मुस्लिम लीग के परमानेंट प्रेसिडेंट के तौर पर भारत लौटे. उनके लिए कांग्रेस अब हिंदू पार्टी थी. 1937 में मुस्लिम लीग के लखनऊ सेशन में जिन्ना पहली बार लंबे कोट और ढीले पायजामे में सामने आए. उन्होंने पहले वाली यूरोपीय पोशाक छोड़ दी थी.
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गांधी के पहनावे से जिस जिन्ना को नफरत थी, वह अब मुस्लिम नेता बन चुके थे. कभी हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल रहे जिन्ना ने 1937 में कहा,‘कांग्रेस हिंदू नीतियों पर चल रही है और देश की बहुसंख्यक जनता यह साबित कर चुकी है कि वह हिंदुओं के लिए अलग हिंदुस्तान चाहती है.’
जिन्ना से गांधी को तकलीफ!
जिन्ना के लखनऊ के भाषण से गांधी को बहुत तकलीफ हुई थी. उनके लिए यह‘युद्ध की घोषणा’ थी. उन्होंने इस बारे में जिन्ना को लिखा था. इसका जवाब देते हुए जिन्ना ने लिखा था कि ‘आत्मरक्षा’ के लिए उन्होंने यह रवैया अपनाया है.
इसके बाद गांधी ने उन्हें पिछली बातें याद दिलाते हुए पूछा,‘आपके भाषण में मुझे पुराने राष्ट्रवादी जिन्ना नहीं दिखे....क्या आप अब भी वही जिन्ना हैं?’ इस पर जिन्ना ने बड़ी तल्खी के साथ लिखा,‘मैं आपको यह नहीं बताना चाहता कि 1915 में आपके बारे में लोग क्या कहते थे और आज वे आपके बारे में क्या कहते और सोचते हैं.’ इससे पता चलता है कि 1920 के कोलकाता और उसके बाद नागपुर अधिवेशन की हार को जिन्ना भूले नहीं थे और वह बदला लेना चाहते थे. गांधी के साथ उनकी लड़ाई निजी थी ना कि राजनीतिक. इसके बाद मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग एक औपचारिकता रह गई थी.
1940 में मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में एक प्रस्ताव पास करके कहा गया कि हिंदू, मुसलमान देश में साथ-साथ नहीं रह सकते. गांधी ने इसे मानने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि हिंदू और मुसलमान एक ही सभ्यता के हिस्से हैं, लेकिन जिन्ना इस मामले में काफी आगे बढ़ चुके थे, जहां से उनका लौटना संभव नहीं था.
जिस इंसान ने कभी आम मुसलमानों की जबान में बात नहीं की, जो अपनी सभाओं में हमेशा अंग्रेजी में भाषण देता रहा, जिसने कभी नमाज नहीं पढ़ी और जिसे हैम-सैंडविच पसंद थे, उसने इस्लाम के नाम पर अलग मुल्क बनाया.
देश के बंटवारे के साथ पाकिस्तान का जन्म हुआ और दोनों तरफ से लाखों लोगों की हत्या हुई. बंटवारे की वजह से दुनिया ने 1947 में सबसे बड़ा विस्थापन देखा. इसके 70 साल बाद भी हम जिन्ना के नाम पर लड़ रहे हैं, जो अच्छा संकेत नहीं है.
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