बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के तौर पर मनाए जाने वाला रंगों का त्योहार होली कल देश और दुनियाभर में मनाया जाएगा. परंपरा के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा की रात होलिका दहन किया जाता है, और उसके अगले दिन अबीर-गुलाल और फूलों से होली खेली जाती है. सनातन संस्कृति में होली का त्योहार बहुत मायने रखता है. इस पर्व में आपसी बैर और द्वेष को भुलाते हुए एक-दूसरे को रंग लगाकर भाईचारे का संदेश दिया जाता है.
हिंदू पंचांग के हिसाब से इस साल होलिका दहन (छोटी होली) बुधवार, 20 मार्च और बड़ी होली 21 मार्च को मनाई जाएगी. वहीं इससे 8 दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाते हैं. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करने चाहिये. होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक भी खत्म हो जाता है.
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
हर साल होलिका दहन का अलग-अलग शुभ मुहूर्त होता है. ऐसी मान्यता है कि इस शुभ मुहूर्त में होलिका दहन करने और उसके साथ विधिवत पूजा-अर्चना करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं. इसलिए यह जानना जरूरी है कि होलिका दहन का शुभ मुहूर्त कब है. इस बार होलिका दहन का शुभ मुहुर्त 20 मार्च को रात 9 बजे से शुरू हो जाएगा.
होलिका दहन की पूजन सामग्री
होली की पूजा के लिए रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबुत हल्दी, बताशे, पांच या सात प्रकार के अनाज जैसे नए गेहूं और अन्य फसलों की बालियां, एक लोटा जल, मिठाइयां और फल आदि की जरूरत होती है.
होलिका दहन की पूजन विधि
एक थाली में सभी पूजन सामग्री रख लें. सबसे पहले होलिका पूजन के लिए पूर्व या उत्तर दिशा की ओर अपना मुंह करके बैठें. अब अपने आस-पास पानी की बूंदे छिड़कें. नरसिंह भगवान का स्मरण करते हुए होलिका पर अनाज की बालियां, रोली, चावल, बताशे और फूल अर्पित करें. होलिका जलाने से पहले अपना नाम, पिता का नाम और गोत्र का नाम लेते हुए चावल उठाएं और भगवान गणेश का स्मरण करते हुए होलिका पर अर्पण करें. इसके बाद प्रह्लाद का नाम लें और फल-फूल और हल्दी चढ़ाएं. कच्चा सूत हाथ में लेकर होलिका पर लपेटते हुए परिक्रमा करें. आखिर में लोटे से जल चढ़ाएं.
पौराणिक कथा
होलिका दहन मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है. सबसे प्रचलित कथा के अनुसार अत्याचारी राजा हिरणकश्यप ने तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान पा लिया था. वरदान में उसने मांगा था कि कोई जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य, रात-दिन, पृथ्वी, आकाश, पाताल, घर या बाहर उसे मार न सके.
इस वरदान से घमंड में आकर वह चाहता था कि हर कोई उसकी ही पूजा करे. लेकिन उसका बेटा प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. उसने प्रह्लाद को आदेश दिया कि वह किसी और की आराधना ना करे, लेकिन प्रह्लाद नहीं माना.
प्रह्लाद के ना मानने पर हिरण्यकश्यप ने उसे जान से मारने का फैसला लिया. प्रह्लाद को मारने के लिए उसने अनेक उपाय किए लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से वह हमेशा बचता रहा. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान प्राप्त था. हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को अपनी बहन होलिका की मदद से आग में जलाकर मारने की योजना बनाई. होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर आग में जा बैठी. लेकिन होलिका ही आग में जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद बच गया. तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा.
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