किसी व्यक्ति के बारे में बात करते हुए शिकारी और संरक्षक जैसे शब्द हर रोज इस्तेमाल में नहीं आते हैं, लेकिन एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट ऐसे ही व्यक्ति थे, जिन्होंने अपनी हंटिंग स्किल का इस्तेमाल जानवरों और मानव जाति की भलाई के लिए किया.
ब्रिटिश राज के दौरान 25 जुलाई 1875 को नैनीताल में जन्मे, जिम कॉर्बेट जंगलों से नजदीकियों के साथ पले बढ़े और जंगलों में भ्रमण किया, जिसके चलते उन्हें जंगल के पशु-पक्षियों के साथ तालमेल बिठाने में मदद मिली. वन्यजीवों के साथ इस करीबी रिश्ते के कारण वह एक अच्छे हंटर और ट्रैकर बन गए.
शिकारी
कॉर्बेट को अक्सर संयुक्त प्रांत, जिसमें अब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं, की सरकार आदमखोर बाघों और तेंदुओं को मारने के लिए कहा करती थी. उन्होंने 1907 से लेकर 1938 के बीच 19 बाघों और 14 तेंदुओं को मिलाकर 33 आदमखोरों का शिकार किया, जिसमें कुख्यात चंपावत टाइगर भी शामिल था. उनके नाम पर 436 शिकार दर्ज हैं. 400 लोगों का शिकार करने वाले पनार तेंदुए का शिकार भी उन्होंने ही किया था.
संरक्षक
एक शिकारी के रूप में अपने कौशल को विकसित करने के बावजूद, प्रकृति के साथ उनके लगाव की वजह से वह वन्य जीवों के लिए गहरा सम्मान रखते थे, खासतौर पर टाइगर और बिग कैट्स के लिए. जिम कॉर्बेट की किताब ‘मैन-ईटर्स ऑफ कुमायूं’ की प्रस्तावना में मार्कस ऑफ लिनलिथगो इस सम्मान और प्रशंसा के साक्षी बनते हैं.
इन कहानियों को पढ़ने पर प्रकृति के लिए लेखक के प्रेम के कई सबूत सामने आएंगे. अपनी छुट्टियों का कुछ समय मेजर कॉर्बेट के साथ बिताने के बाद मैं पूरे यकीन के साथ उनके बारे में लिख सकता हूं कि किसी भी महाद्वीप में मैंने उनके जैसे शिकारी के साथ शिकार नहीं किया. वह जंगल के संकेतों को बेहतर ढंग से समझते थे.मार्कस ऑफ लिनलिथगो, गवर्नर जनरल एंड वाइसराय ऑफ इंडिया (1887-1952)
वह आगे कहते हैं कि जिम कॉर्बेट अक्सर उन्हें बताते थे कि “वन्य जीवन को समझने में उन्हें गहरी प्रसन्नता मिली है”.
कॉर्बेट गढ़वाल और कुमायूं जैसे गांवों के लोगों को आदमखोरों से निजात दिलवाकर उनकी मदद करने के लिए जाने जाते थे, लेकिन साथ ही वह पर्यावरण के लिए काफी सचेत भी थे. ‘मैन-ईटर्स ऑफ कुमायूं’ में ऑथर्स नोट में कॉर्बेट इस बात का जिक्र करते हैं कि दरअसल आदमखोर एक विसंगति है न कि एक स्वाभाविक घटना.
एक आदमखोर बाघ वह होता है, जिसे एक अजीब आहार लेने के लिए इसके नियंत्रण के परे परिस्थितियों के तनाव के जरिये मजबूर किया गया हो. दस में से नौ मामलों में परिस्थितियों का यह तनाव चोटें होती हैं और दसवां मामला उम्र का होता है.‘मैन-ईटर्स ऑफ कुमायूं’ में जिम कॉर्बेट
द लीजेंड
कॉर्बेट ने आदमखोरों के बनने में इंसानों के भूमिका पर भी रोशनी डालने का भरसक प्रयास किया है.
किसी बाघ को आदमखोर बनाने वाला घाव लापरवाही से चलाई गई गोली, फॉलो अप और जख्मी जानवर को ठीक करने में असफलता का परिणाम हो सकता है, या इस बात का भी नतीजा हो सकता है कि किसी साही का शिकार करते समय बाघ ने अपना आपा खो दिया हो.‘मैन-ईटर्स ऑफ कुमायूं’ में जिम कॉर्बेट
प्रकृति के लिए यह उनका प्यार ही था जिसके चलते उत्तराखंड के प्रसिद्द टाइगर रिजर्व जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का नाम उनके नाम पर रखा गया.
(ये आर्टिकल पहली बार 25 जुलाई 2019 को जिम कॉर्बेट के जन्मदिन पर पब्लिश हुई थी, आज उनकी पुण्यतिथि पर इसे दोबारा प्रकाशित किया जा रहा है.)
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