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ऑफिस के तनाव से लोग पड़ रहे बीमार, कैसे पाए स्ट्रेस से छुटकारा? एक्सपर्ट की राय

हम आपका ध्यान ऑफिस या कंपनियों को अपने कर्मचारियों का ख्याल कैसे रखना चाहिए विषय की और ले जाना चाहते हैं.

अश्लेषा ठाकुर
फिट
Published:
<div class="paragraphs"><p>ऑफिस के तनाव से लोग पड़ रहे बीमार</p></div>
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ऑफिस के तनाव से लोग पड़ रहे बीमार

(फोटो: दीक्षा मल्होत्रा/फिट हिंदी)

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ऑफिस स्ट्रेस यानी कि कामकाज के तनाव से लोगों में मानसिक और शारीरिक समस्याएं बढ़ रही हैं. एक्स्पर्ट्स की मानें तो युवाओं में बढ़ते हार्ट अटैक का प्रमुख कारण स्ट्रेस है.

हर दिन बढ़ता हुआ काम, नंबर की चिक-चिक, आसमान छूती महंगाई, शहरों में रहन-सहन का खर्चीला तरीका, बॉस की डिमांड कई बार इतने तनाव दे देती है कि हाइपरटेंशन और ब्लड प्रेशर जैसी गंभीर बीमारियां हमें घेर ही लेती है.

ईएमआई से लेकर मेडिक्लेम तक 

ऐसे समय में जब बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी ईएमआई (EMI) से लेकर पूरे परिवार का मेडिक्लेम (Mediclaim) तक हमारी सैलरी पर निर्भर रहता है, तब फिट रहना और काम करते रहना बेहद जरूरी हो जाता है.

मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए फिट हिंदी ने पहले भी कई लेख लिखें हैं. जिसमें एक्स्पर्ट्स ने कई आसान और सरल उपाय सुझाए हैं. जिसमें योग, मेडिटेशन, हेल्दी लाइफस्टाइल, अच्छा खानपान, एक्सरसाइज का जिक्र है.

इस बार हम आप को उस ओर नहीं ले जा रहे हैं बल्कि ऑफिस या कंपनियों को अपने कर्मचारियों का ध्यान कैसे रखना चाहिए इस पर बात होगी.

ऑफिस के स्ट्रेस को कैसे कम किया जाए? ऑफिस में काम करने वालों के हित के लिए क्या सही है? वर्क इन्वायरॉन्मेंट (work environment) को बेहतर बनाने के लिए क्या किया जा सकता है? ऑफिस मैनेजमेंट को वहां काम करने वालों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का ख्याल कैसे रखना चाहिए?

फिट हिंदी ने इन सवालों के जवाब डॉ शगुन सबरवाल, डायरेक्टर- साउथ एशिया रीजन एंड ग्लोबल मॉनिटरिंग, इवैल्यूएशन एंड लर्निंग, वीमेनलिफ्ट हेल्थ और मीमांसा सिंह तनवर, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एंड हेड, फोर्टिस स्कूल मेंटल हेल्थकेयर प्रोग्राम, फोर्टिस हेल्थकेयर से जानने की कोशिश की.

ऑफिस स्ट्रेस का बुरा प्रभाव

"लगातार काम का तनाव शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को प्रभावित करता है. कर्मचारी (employee) रुचि या प्रेरणा खो निराश महसूस करने लगते हैं. WHO ने भी बर्नआउट को एक ‘ऑक्युपेशनल फेनोमेनन’ के रूप में मान्यता दी है, जिसमें एनर्जी की कमी, थकावट और नौकरी के प्रति नकारात्मक भावनाएं देखी जाती हैं."
डॉ शगुन सबरवाल, डायरेक्टर- साउथ एशिया रीजन एंड ग्लोबल मॉनिटरिंग, इवैल्यूएशन एंड लर्निंग, वीमेनलिफ्ट हेल्थ

डॉ शगुन सबरवाल आगे कहती हैं, "इसके अलावा, अधिक काम का प्रेशर लोगों को अनहेल्दी आदतों और इम्यूनिटी की कमी की तरफ ले जाता है, जिससे व्यक्ति फ्लू या सर्दी जैसी बीमारियों की चपेट में आ जाता है. जाहिर है, इन सब कारणों की वजह से लोगों की प्रॉडक्टिविटी कम हो जाती है और उनके निजी जीवन पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है."

वहीं मीमांसा सिंह तनवर कहती हैं, "पहले हमारे काम और पारिवारिक जीवन के बीच एक अंतर होता था, काम और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन रहता था, आधुनिक समय में आ रहे बदलावों के साथ-साथ काम करने के तरीके में आए बदलावों के कारण काफी कुछ बदल रहा है".

"ज्यादातर मौकों पर हम देखते हैं कि हमारा काम घर तक पहुंच चुका है, वर्क फ्रॉम होम का दौर जारी है, ऐसे में काम और व्यक्तिगत जीवन के बीच के संतुलन की बात खत्म हो चुकी है. इसके अलावा और भी कई बदलाव देखने को मिलते हैं".
मीमांसा सिंह तनवर, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एंड हेड, फोर्टिस स्कूल मेंटल हेल्थकेयर प्रोग्राम, फोर्टिस हेल्थकेयर

मीमांसा सिंह तनवर आगे कहती हैं, "प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है, काम का दबाव बहुत ज्यादा है और अगर वित्तीय स्थिति, नौकरी की सुरक्षा को लेकर कोई परेशानी आती है, तो एक कर्मचारी को व्यक्तिगत स्तर पर काम को लेकर और आपसी संबंधों पर भी इस दबाव का सामना करना पड़ता है. साथ ही, हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर भी इस तनाव का असर पड़ता है".

कंपनियों को सकारात्मक माहौल तैयार करना चाहिए, जिसमें लोग अपने मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दे सकें.

काम के प्रेशर से व्यक्ति में आते हैं ये बदलाव 

मीमांसा के अनुसार दुनिया भर में कम से कम 75% लोग अपनी मानसिक परेशानियों के लिए कोई उपचार नहीं कराते हैं और अगर हम लंबे समय के तनाव और खास कर काम के तनाव की वजह से उनमें बदलाव आने लगते हैं. कुछ बदलाव ऐसे होते है:

  • व्यवहार या सामाजिक बदलावों के लिहाज से अकेले रहना

  • ज्यादातर लड़ाई या विवाद में ऑफिस में सहकर्मियों के साथ और घर में लोगों के साथ फंस जाना

  • कहीं न कहीं गुस्सा और चिड़चिड़ापन आना

  • जो चीजें पहले आपको अच्छी लगती थीं, उसमें दिलचस्पी न रह जाना

  • मन न लगना

  • छोटे-छोटे काम भारी लगना

  • आत्मविश्वास की कमी होने लगना

  • आलोचनाओं पर ध्यान ज्यादा जाना जिससे मन उदास रहना

  • थकान महसूस होना

  • आपकी भूख में बदलाव आना

  • सिरदर्द होना

  • बार-बार आसानी से बीमार पड़ जाना

  • नींद के पैटर्न में बदलाव

  • कैसे दिख रहे हैं, खुद का खयाल कैसे रख रहे हैं उसमें भी बदलाव होने लगना

"कभी-कभी गलत तरीके से हम इन चीजों का सामना करने की कोशिश करते हैं और परिणामस्वरूप हम ज्यादा मात्रा में सब्सटेंसेज (substances) को लेना शुरू करते हैं. यानी ज्यादा कैफीन लेना शुरू कर देते हैं, ज्यादा धूम्रपान करने लगते हैं या ज्यादा एल्कोहॉल पीने लगते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि इस तरह से हम अपने तनाव को कम कर सकते हैं. जबकि ऐसा नहीं है, ये गैर सेहतमंद जीवनशैली है."
मीमांसा सिंह तनवर, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एंड हेड, फोर्टिस स्कूल मेंटल हेल्थकेयर प्रोग्राम, फोर्टिस हेल्थकेयर
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ऑफिस में सैलरी के अलावा होते हैं दूसरे भेदभाव भी

ग्लोबल जेंडर गैप की रिपोर्ट से ये पता चला है कि भारत में कामकाजी महिलाओं की कमी बनी हुई है. लैंगिक समानता में भारत 146 देशों में 135वीं रैंकिंग पर है. घर-परिवार और ऑफिस का काम संभालते हुए महिलाएं कई तरह की समस्याओं से जूझ रही होती हैं.

"जेंडर पे गैप निश्चित रूप से एक बड़ी समस्या है, लेकिन ऐसी अन्य परिस्थितियां भी हैं, जो पुरुषों और महिलाओं को अलग-अलग तरह से प्रभावित करती हैं, क्योंकि वे अलग-अलग बाधाओं का सामना करते हैं."
डॉ शगुन सबरवाल, डायरेक्टर- साउथ एशिया रीजन एंड ग्लोबल मॉनिटरिंग, इवैल्यूएशन एंड लर्निंग, वीमेनलिफ्ट हेल्थ

डॉ शगुन सबरवाल ने फिट हिंदी को इस सवाल के जवाब में उदाहरण देते हुए कहा, "महिलाओं को सुरक्षा को लेकर अधिक चिंताओं का सामना करना पड़ता है, चाहे वह काम से आने-जाने के दौरान हो या कार्यस्थल में सेक्सुअल हरासमेंट का मामला हो. घर का ध्यान रखना अभी भी अधिकतर महिलाओं पर ही छोड़ दिया जाता है, जिसके कारण अक्सर उन्हें काम में कटौती करनी पड़ती है, भूमिका या नौकरी बदलनी पड़ती है या पूरी तरह से काम छोड़ना पड़ता है. मौजूदा जेंडर स्टीरियोटाइप के साथ साथ यह भी महिलाओं के विकास और प्रमोशन के अवसरों को बाधित करता है. कभी-कभी यह बायस सूक्ष्म तरीकों से सामने आता है, जैसे कि महिलाओं के दिखावे पर टिप्पणी करना, उन्हें पेट्रनाइज़िंग तरीके से संबोधित करना, मीटिंग में उनके ऊपर से बात करना, या उनकी चिंताओं को भावनात्मक मान कर खारिज करना".

कई बार ऐसा होता है कि हम अपने तनाव को नकार देते हैं और वह बुरा रूप धारण करने लगता है. इसका सीधा असर हमारे मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ जीवन के हर हिस्से पर पड़ने लगता है.

वर्क इन्वायरॉन्मेंट (work environment) को बेहतर बनाने के लिए क्या किया जा सकता है?

"हमें वर्क फोर्स में महिलाओं की भागीदारी, रिटेन्शन और वृद्धि को सुनिश्चित करने के लिए निश्चित कदम उठाने होंगे. फ्लेक्सिबिलिटी पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए फायदेमंद है - यहां तक ​​​​कि हाल ही में राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी फ्लेक्सिबल वर्कप्लेस, वर्क-फ्रॉम-होम इकोसिस्टम और फ्लेक्सिबल वर्क-आवर्ज की आवश्यकता को हाइलाइट किया था" ये कहना है डॉ शगुन सबरवाल का.

कंपनियों को एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करने प्रिवेंशन ऑफ सेक्शुअल हैरेसमेंट या POSH ऐक्ट के साथ स्ट्रिक्ट कम्प्लायन्स रखने और परिवहन सुविधाएं देने पर भी अमल करना चाहिए.

"सामाजिक और सांस्कृतिक नॉर्म भी अक्सर महिलाओं को इम्पॉस्टर सिंड्रोम और बेहतर वेतन और अधिक जिम्मेदारी मांगने से हिचकिचाने के प्रति वल्नरेबल बनाते हैं. जबकि उन्हें अधिक अवसर प्रदान करने की आवश्यकता है ताकि वे बोल सकें, विकास और नेतृत्व कर सकें. साथ ही उन्हें प्रभावी ट्रेनिंग, टूल और मेंटरशिप देने की आवश्यकता है ताकि वे लीडरशिप रोल में आगे बढ़ सकें."
डॉ शगुन सबरवाल

हमारे एक्स्पर्ट के अनुसार कंपनियों को सभी कर्मचारियों के लिए विश्वास, देखभाल और कल्याण का कल्चर बनाने को प्राथमिकता देनी होगी. सुपरवाइजर को नियमित रूप से अपनी टीम के सदस्यों पर नजर रखनी होगी ताकि उन्हें प्रोफेशनल हेल्प प्रदान कर सकें. यह सुनिश्चित कर सकें कि एम्प्लॉई पर बहुत अधिक बोझ न हो.

भारत में भी कुछ कंपनियों ने महिलाओं को पीरियड लीव देना शुरू कर दिया है. ये एक अच्छी पहल है और उम्मीद है जल्द ही इस पहल पर सभी कंपनियां अमल करना शुरू कर देंगी.

मुनाफा-नुकसान के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य और देखभाल को भी महत्व

"अधिकतर कंपनियों में परिणामों, मुनाफा-नुकसान, एबिटा जैसे विषयों की बात की जाती है. वहीं उसके साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य और देखभाल को भी महत्व देना बहुत जरूरी है. जहां हम परिणामों का विश्लेषण करने की बात करते हैं, वहीं अगर हम मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े परिणामों को न देखें और कर्मचारियों को होने वाले नुकसान को जानने की कोशिश न करें, तो ऐसा करके हम एक बहुत बड़ी समस्या को नकार रहे हैं.
मीमांसा सिंह तनवर, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एंड हेड, फोर्टिस स्कूल मेंटल हेल्थकेयर प्रोग्राम, फोर्टिस हेल्थकेयर

कर्मचारियों को सेल्फ-केयर का अभ्यास करने और समय पर मुद्दों को उठाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. कई कंपनियां पहले से ही मेडिकल इन्शुरन्स और नियमित चिकित्सा जांच प्रदान करते थे. साथ ही उन्हें मानसिक स्वास्थ्य प्रोवाइडरों के साथ टाई-अप करना चाहिए ताकि कर्मचारी ऐसी सेवाओं का लाभ अधिक आसानी से और बिना किसी स्टिग्मा के उठा सकें.

"एक सुरक्षित वातावरण बनाने के लिए एक सचेत प्रयास किया जाना चाहिए जो इंक्लूसिव और ईक्वल हो. यह आगे चल कर एक लाभकारी निवेश साबित होगा, क्योंकि ऐसे संगठन जो विविधता को महत्व देते हैं और अपने एम्प्लॉई पर ध्यान रखते हैं, वे न केवल बेहतर टैलेंट को आकर्षित करने और बनाए रखने में सक्षम होते हैं, बल्कि परफॉर्मन्स और रिजल्ट में भी सुधार देखते हैं."
डॉ शगुन सबरवाल

ऑफिस में अच्छे दिन आ रहे हैं!

डॉ शगुन सबरवाल बताती हैं कि उनके वर्क प्लेस पर ऑफिस टाइम के बाद या वीकेंड पर काम करने की सख्त मनाही है. डॉक्टर अपॉइंटमेंट या परिवार के बीमार सदस्यों की देखभाल जैसी व्यक्तिगत कमिटमेंट के लिए समय प्रदान करने और समर्थन प्रदान करने का प्रयास किया जाता है. उन्होंने ये भी कहा कि हर किसी को अपने अलग-अलग विचारों और दृष्टिकोणों को लाने की आजादी है, और प्रत्येक के योगदान को महत्व और सेलिब्रेट किया जाता है.

कर्मचारियों का सम्मान करना और उन्हें सेन्स-ऑफ-बिलॉन्गिंग (sense of belonging) देना एम्प्लॉई वेलबीइंग (employee wellbeing) के लिए बहुत आवश्यक है.

"कंपनियां आज कल कर्मचारियों की भलाई को अधिक महत्व दे रही हैं. COVID-19 महामारी ने इसे लोगों के ध्यान में और भी ज्यादा ला दिया है, और अब बर्नआउट और तनाव जैसे मुद्दों पर खुल कर बात हो रही है. ऑफिस में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बातचीत करने को ले कर भी कर्मचारी अधिक खुले और सहज होते जा रहे है."
डॉ शगुन सबरवाल, डायरेक्टर- साउथ एशिया रीजन एंड ग्लोबल मॉनिटरिंग, इवैल्यूएशन एंड लर्निंग, वीमेनलिफ्ट हेल्थ

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