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ऑफिस स्ट्रेस यानी कि कामकाज के तनाव से लोगों में मानसिक और शारीरिक समस्याएं बढ़ रही हैं. एक्स्पर्ट्स की मानें तो युवाओं में बढ़ते हार्ट अटैक का प्रमुख कारण स्ट्रेस है.
हर दिन बढ़ता हुआ काम, नंबर की चिक-चिक, आसमान छूती महंगाई, शहरों में रहन-सहन का खर्चीला तरीका, बॉस की डिमांड कई बार इतने तनाव दे देती है कि हाइपरटेंशन और ब्लड प्रेशर जैसी गंभीर बीमारियां हमें घेर ही लेती है.
मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए फिट हिंदी ने पहले भी कई लेख लिखें हैं. जिसमें एक्स्पर्ट्स ने कई आसान और सरल उपाय सुझाए हैं. जिसमें योग, मेडिटेशन, हेल्दी लाइफस्टाइल, अच्छा खानपान, एक्सरसाइज का जिक्र है.
इस बार हम आप को उस ओर नहीं ले जा रहे हैं बल्कि ऑफिस या कंपनियों को अपने कर्मचारियों का ध्यान कैसे रखना चाहिए इस पर बात होगी.
ऑफिस के स्ट्रेस को कैसे कम किया जाए? ऑफिस में काम करने वालों के हित के लिए क्या सही है? वर्क इन्वायरॉन्मेंट (work environment) को बेहतर बनाने के लिए क्या किया जा सकता है? ऑफिस मैनेजमेंट को वहां काम करने वालों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का ख्याल कैसे रखना चाहिए?
फिट हिंदी ने इन सवालों के जवाब डॉ शगुन सबरवाल, डायरेक्टर- साउथ एशिया रीजन एंड ग्लोबल मॉनिटरिंग, इवैल्यूएशन एंड लर्निंग, वीमेनलिफ्ट हेल्थ और मीमांसा सिंह तनवर, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एंड हेड, फोर्टिस स्कूल मेंटल हेल्थकेयर प्रोग्राम, फोर्टिस हेल्थकेयर से जानने की कोशिश की.
डॉ शगुन सबरवाल आगे कहती हैं, "इसके अलावा, अधिक काम का प्रेशर लोगों को अनहेल्दी आदतों और इम्यूनिटी की कमी की तरफ ले जाता है, जिससे व्यक्ति फ्लू या सर्दी जैसी बीमारियों की चपेट में आ जाता है. जाहिर है, इन सब कारणों की वजह से लोगों की प्रॉडक्टिविटी कम हो जाती है और उनके निजी जीवन पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है."
वहीं मीमांसा सिंह तनवर कहती हैं, "पहले हमारे काम और पारिवारिक जीवन के बीच एक अंतर होता था, काम और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन रहता था, आधुनिक समय में आ रहे बदलावों के साथ-साथ काम करने के तरीके में आए बदलावों के कारण काफी कुछ बदल रहा है".
मीमांसा सिंह तनवर आगे कहती हैं, "प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है, काम का दबाव बहुत ज्यादा है और अगर वित्तीय स्थिति, नौकरी की सुरक्षा को लेकर कोई परेशानी आती है, तो एक कर्मचारी को व्यक्तिगत स्तर पर काम को लेकर और आपसी संबंधों पर भी इस दबाव का सामना करना पड़ता है. साथ ही, हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर भी इस तनाव का असर पड़ता है".
मीमांसा के अनुसार दुनिया भर में कम से कम 75% लोग अपनी मानसिक परेशानियों के लिए कोई उपचार नहीं कराते हैं और अगर हम लंबे समय के तनाव और खास कर काम के तनाव की वजह से उनमें बदलाव आने लगते हैं. कुछ बदलाव ऐसे होते है:
व्यवहार या सामाजिक बदलावों के लिहाज से अकेले रहना
ज्यादातर लड़ाई या विवाद में ऑफिस में सहकर्मियों के साथ और घर में लोगों के साथ फंस जाना
कहीं न कहीं गुस्सा और चिड़चिड़ापन आना
जो चीजें पहले आपको अच्छी लगती थीं, उसमें दिलचस्पी न रह जाना
मन न लगना
छोटे-छोटे काम भारी लगना
आत्मविश्वास की कमी होने लगना
आलोचनाओं पर ध्यान ज्यादा जाना जिससे मन उदास रहना
थकान महसूस होना
आपकी भूख में बदलाव आना
सिरदर्द होना
बार-बार आसानी से बीमार पड़ जाना
नींद के पैटर्न में बदलाव
कैसे दिख रहे हैं, खुद का खयाल कैसे रख रहे हैं उसमें भी बदलाव होने लगना
ग्लोबल जेंडर गैप की रिपोर्ट से ये पता चला है कि भारत में कामकाजी महिलाओं की कमी बनी हुई है. लैंगिक समानता में भारत 146 देशों में 135वीं रैंकिंग पर है. घर-परिवार और ऑफिस का काम संभालते हुए महिलाएं कई तरह की समस्याओं से जूझ रही होती हैं.
डॉ शगुन सबरवाल ने फिट हिंदी को इस सवाल के जवाब में उदाहरण देते हुए कहा, "महिलाओं को सुरक्षा को लेकर अधिक चिंताओं का सामना करना पड़ता है, चाहे वह काम से आने-जाने के दौरान हो या कार्यस्थल में सेक्सुअल हरासमेंट का मामला हो. घर का ध्यान रखना अभी भी अधिकतर महिलाओं पर ही छोड़ दिया जाता है, जिसके कारण अक्सर उन्हें काम में कटौती करनी पड़ती है, भूमिका या नौकरी बदलनी पड़ती है या पूरी तरह से काम छोड़ना पड़ता है. मौजूदा जेंडर स्टीरियोटाइप के साथ साथ यह भी महिलाओं के विकास और प्रमोशन के अवसरों को बाधित करता है. कभी-कभी यह बायस सूक्ष्म तरीकों से सामने आता है, जैसे कि महिलाओं के दिखावे पर टिप्पणी करना, उन्हें पेट्रनाइज़िंग तरीके से संबोधित करना, मीटिंग में उनके ऊपर से बात करना, या उनकी चिंताओं को भावनात्मक मान कर खारिज करना".
"हमें वर्क फोर्स में महिलाओं की भागीदारी, रिटेन्शन और वृद्धि को सुनिश्चित करने के लिए निश्चित कदम उठाने होंगे. फ्लेक्सिबिलिटी पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए फायदेमंद है - यहां तक कि हाल ही में राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी फ्लेक्सिबल वर्कप्लेस, वर्क-फ्रॉम-होम इकोसिस्टम और फ्लेक्सिबल वर्क-आवर्ज की आवश्यकता को हाइलाइट किया था" ये कहना है डॉ शगुन सबरवाल का.
कंपनियों को एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करने प्रिवेंशन ऑफ सेक्शुअल हैरेसमेंट या POSH ऐक्ट के साथ स्ट्रिक्ट कम्प्लायन्स रखने और परिवहन सुविधाएं देने पर भी अमल करना चाहिए.
हमारे एक्स्पर्ट के अनुसार कंपनियों को सभी कर्मचारियों के लिए विश्वास, देखभाल और कल्याण का कल्चर बनाने को प्राथमिकता देनी होगी. सुपरवाइजर को नियमित रूप से अपनी टीम के सदस्यों पर नजर रखनी होगी ताकि उन्हें प्रोफेशनल हेल्प प्रदान कर सकें. यह सुनिश्चित कर सकें कि एम्प्लॉई पर बहुत अधिक बोझ न हो.
कर्मचारियों को सेल्फ-केयर का अभ्यास करने और समय पर मुद्दों को उठाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. कई कंपनियां पहले से ही मेडिकल इन्शुरन्स और नियमित चिकित्सा जांच प्रदान करते थे. साथ ही उन्हें मानसिक स्वास्थ्य प्रोवाइडरों के साथ टाई-अप करना चाहिए ताकि कर्मचारी ऐसी सेवाओं का लाभ अधिक आसानी से और बिना किसी स्टिग्मा के उठा सकें.
डॉ शगुन सबरवाल बताती हैं कि उनके वर्क प्लेस पर ऑफिस टाइम के बाद या वीकेंड पर काम करने की सख्त मनाही है. डॉक्टर अपॉइंटमेंट या परिवार के बीमार सदस्यों की देखभाल जैसी व्यक्तिगत कमिटमेंट के लिए समय प्रदान करने और समर्थन प्रदान करने का प्रयास किया जाता है. उन्होंने ये भी कहा कि हर किसी को अपने अलग-अलग विचारों और दृष्टिकोणों को लाने की आजादी है, और प्रत्येक के योगदान को महत्व और सेलिब्रेट किया जाता है.
कर्मचारियों का सम्मान करना और उन्हें सेन्स-ऑफ-बिलॉन्गिंग (sense of belonging) देना एम्प्लॉई वेलबीइंग (employee wellbeing) के लिए बहुत आवश्यक है.
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