बिहार उन राज्यों में शामिल है, जहां आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर एनडीए काफी आशावान है. इसका कारण है कि राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू के साथ बीजेपी का गठबंधन, जो 2014 लोकसभा चुनाव और आगामी चुनाव के बीच बना. फिर भी, बिहार में गठबंधनों का बदलता स्वरूप चुनावी विशेषज्ञों के लिए भारी सिरदर्दी है.
बदलते सियासी रिश्ते
2014 चुनाव में बीजेपी ने राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. राष्ट्रीय जनता दल के खेमे में कांग्रेस और नेशनलिस्ट पार्टी थीं, जबकि जेडीयू का वामपंथी दलों के साथ गठबंधन था.
राज्य की 40 सीटों में से बीजेपी की अगुवाई वाले गठबंधन को 31 सीटें, आरजेडी के नेतृत्व वाले गठबंधन को 7 सीटें और जेडी (यू) को 2 सीटें मिली थीं.
2015 के विधानसभा चुनाव के लिए आरजेडी, जेडी (यू) और कांग्रेस ने हाथ मिलाकर महागठबंधन का निर्माण किया. महागठबंधन को विधानसभा चुनाव में भारी जीत मिली. विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने 2014 आम चुनाव के सहयोगियों, एलजेपी और आरएलएसपी के साथ हाथ आजमाया. बीजेपी को जेडी (यू) से टूटे हुए धड़े और पूर्व मुख्यमंत्री जितन राम मांझी की पार्टी, हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) का भी साथ मिला.
लेकिन 2017 में नितिश कुमार ने पाला बदल लिया और राज्य में राजनीतिक समीकरण भी बदल गए. नए समीकरण के मुताबिक अब मुकाबला दो गठबंधनों के बीच है:
एनडीए: बीजेपी, जेडी (यू) और एलजेपी
यूपीए: आरजेडी, कांग्रेस, आरएलएसपी, एचएएम (एस) और सीपीआई (माले). इस गठबंधन में मल्लाह नेता मुकेश साहनी की नई वीआईपी भी शामिल हुई है.
अगर हम 2014 लोकसभा चुनाव और 2015 के विधानसभा चुनाव के हिसाब से वर्तमान गठबंधनों के वोटों पर नजर दौड़ाते हैं, तो एनडीए को बढ़त मिली हुई है.
एनडीए को बढ़त
पोल आइज की मानें, तो बिहार में एनडीए को अब भी बढ़त मिली हुई है, लेकिन उसका असर कम हुआ है. वोट शेयर के मामले में एनडीए से यूपीए मात्र तीन फीसदी पीछे है.
लेकिन सीटों का आंकड़ा देखें, तो सर्वे के मुताबिक एनडीए को 28 सीटों पर बढ़त प्राप्त है, जबकि यूपीए को महज 12 सीटों पर बढ़त मिल रही है.
इसकी मुख्य वजह है, कि यूपीए को कम सीटों पर भारी बढ़त है, जबकि एनडीए को कई सीटों पर कम फासले से बढ़त मिली हुई है.
लेकिन कम बढ़त वाली सीटों पर मतदान में थोड़ा भी ऊंच-नीच हुआ, तो उसका सीधा असर एनडीए के लिए नतीजों पर पड़ सकता है.
सीटवार ब्योरा
सर्वे के मुताबिक एनडीए को सिर्फ तीन सीटों पर, जबकि यूपीए को छह सीटों पर भारी बढ़त मिल रही है.
बाकी 31 सीटों पर दोनों गठबंधनों के बीच कड़ा मुकाबला है. इनमें 13 सीटों पर एनडीए बीस पड़ रही है, जबकि यूपीए दो सीटों पर आगे है. बाकी 16 सीटों पर अंतराल इतना कम है कि पूर्वानुमान लगाना कठिन है.
क्षेत्रों के हिसाब से राज्य के उत्तर-पश्चिमी भाग में एनडीए की स्थिति मजबूत है, जैसे, पश्चिमी चम्पारण, पूर्वी चम्पारण, गोपालगंज और वाल्मीकि नगर. पारम्परिक रूप से बीजेपी इन सीटों पर मजबूत रही है.
सीमांचल क्षेत्र की सीटों, जैसे किशनगंज और कटिहार में यूपीए मजबूत है. इसके अलावा मधुबनी, समस्तीपुर, खगड़िया और बेगूसराय जैसे उत्तर-मध्य की सीटों पर भी यूपीए को मजबूती मिली हुई है, जबकि राज्य के पश्चिमी और दक्षिणी भागों में यूपीए खस्ताहाल है.
यूपीए मजबूत हो सकती है, लेकिन...
ये सर्वे एक महीने पहले किया गया था. संभावना है कि चुनाव आने तक बदलते समीकरण यूपीए का पलड़ा भारी कर दें. इसकी मुख्य वजह गठबंधन को अंतिम रूप देना और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का वादा है, जो सबसे गरीब परिवारों को एक सुनिश्चित रकम देने के लिए किया गया है. इसका असर वोट समीकरणों को बदल सकता है.
इसके अलावा मुकेश साहनी की वीआईपी जैसी नई पार्टी को सर्वे के दायरे में लाना मुश्किल है. अगर इस पार्टी की थोड़ी भी पकड़ है, तो वो यूपीए के पक्ष में है.
किशनगंज में यूपीए की आशाओं पर एआईएमआईएम उम्मीदवार अख्तरुल ईमान पानी फेर सकते हैं, जिनका इस क्षेत्र में और विशेषकर कोचादमन विधानसभा क्षेत्र में अच्छा-खासा प्रभाव है.
वहीं बेगूसराय में सीपीआई उम्मीदवार और जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार बीजेपी के भुमिहार वोटों और बीजेपी विरोधी आरजेडी के वोटों में सेंध लगा सकते हैं.
अंतिम नतीजे यूपीए गठजोड़ के आपसी समन्वय और प्रभावशाली तरह से अपने मतदाताओं का मन अपने उम्मीदवारों के साथ जोड़ने पर भी निर्भर करेंगे. जब तक ऐसा नहीं होता है, राज्य में एनडीए को बढ़त बनाए रखने की पूरी उम्मीद है.
(सर्वे की कार्यपद्धति: ये सर्वेक्षण 10 राज्यों के सभी विधानसभा क्षेत्रों में फरवरी में किया गया था. हर विधानसभा क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर अनियमित तरीके से चुनकर 50 व्यक्तियों का इंटरव्यू किया गया.)
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