उत्तराखंड विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Election) नजदीक हैं. प्रदेश में 14 फरवरी को मतदान होना है और 10 मार्च को नतीजे आने हैं. और उस दिन फैसला हो जाएगा कि 2000 में राज्य के गठन के बाद देवभूमि की जनता ने पांचवी बार किसे चुना है. उत्तराखंड गठन के बाद से ही राज्य का राजनीतिक इतिहास उथल-पुथल भरा रहा है. यहां सरकार चाहें कांग्रेस की रही या बीजेपी की लेकिन मुख्यमंत्री दोनों ने बदले और जनता ने सरकारें बदलीं. इसीलिए आज तक कोई भी पार्टी राज्य में लगातार दो बार सरकार नहीं बना पाई है. इसके अलावा एक खास बात ये भी है कि एक मुख्यमंत्री को छोड़कर कोई भी मौजूदा मुख्यमंत्री अपनी सीट नहीं बचा पाया.
ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि मौजूदा मुख्यमंत्री अपनी सीट ही हार जाये, अगर ऐसा होता है तो ये बड़ा उलटफेर माना जाता है. लेकिन उत्तराखंड के लिए ये आम बात है.
अब पुष्कर सिंह धामी सूबे के सीएम हैं और उनके सामने अपनी सीट बचाने और मिथक तोड़ने की चुनौति है. पुष्कर सिंह धामी ऊधम सिंह नगर खटीमा विधानसभा से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां से वो लगातार दो बार चुनाव जीत चुके हैं.
पुष्कर सिंह धामी के सामने कितनी बड़ी चुनौति?
उत्तारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सामने खटीमा में मिथक तो है ही लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार भूवन चंद कापड़ी भी मजबूती के साथ खड़े हैं. क्योंकि उन्होंने 2017 का विधानसभा चुनाव मात्र 2709 वोटों से हारा था. इस बार कांग्रेस ने उन्हें फिर से उम्मीदवार बनाया है. इसके अलावा आम आदमी पार्टी ने भी एसएस कलेर को खटीमा से मैदान में उतारा है.
खटीमा विधानसभा पर 2017 के नतीजे
2017 में बीजेपी के पुष्कर सिंह धामी ने खटीमा से जीत दर्ज की, कांग्रेस के भूवन चंद कापड़ी दूसरे नंबर पर रहे. 2017 में पुष्कर सिंह धामी को 29,539 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस उम्मीदवार को 26,830 वोट मिले थे. इस सीट पर 2017 में बीएसपी उम्मीदवार को भी 17,804 वोट मिले थे.
खटीमा विधानसभा पर 2012 के नतीजे
2012 के विधानसभा चुनाव में खटीमा विधानसभा से बीजेपी के पुष्कर सिंह धामी ने जीत दर्ज की थी. कांग्रेस के देवेंद्र चंद दूसरे नंबर पर रहे थे. उस वक्त धामी के खाते में 20,586 वोट थे और हारने वाले कांग्रेस के देवेंद्र चंद को 15,192 वोट मिले थे. मतलब 2012 में हार-जीत का अंतर 5394 वोटों का था.
कड़ी टक्कर में फंसी धामी की सीट
खटीमा सीट पर लड़ाई तगड़ी है क्योंकि यहां 23 फीसदी मुस्लिम वोटर है और 1984 दंगो के वक्त पंजाब से भागकर आये सिख समुदाय की भी अच्छी खासी आबादी है. इसीलिए यहां इस बार किसान आंदोलन का भी असर है. ऊधम सिंह नगर जिले से किसान आंदोलन में शामिल होने के लिए अच्छे खासे किसान जाते थे. इसीलिए माना जा रहा है कि इस बार पुष्कर सिंह धामी के लिए राह आसान नहीं है और सीएम बनकर हारने का मिथक भी है.
यूं मुख्यमंत्रियों को हराती रही उत्तराखंड की जनता
2000 में उत्तराखंड गठन के बाद बीजेपी ने अंतरिम सरकार बनाई और उस सरकार में अंत में आकर सीएम बने भगत सिंह कोश्यारी जो 2002 में चुनाव जीत गए और उत्तराखंड में पहली और आखिरी बार हुआ. हालांकि वो पूर्ण रूप से सीएम नहीं थे क्योंकि वो अंतरिम सरकार थी.
2002 में बीजेपी चुनाव हार गई और कांग्रेस सत्ता में आई, एनडी तिवारी उत्तराखंड के सीएम बने लेकिन उन्होंने 2007 में चुनाव नहीं लड़ा.
2007 में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन बहुमत से एक सीट पीछे रह गई. लेकिन बीजेपी ने सरकार बनाई और बीसी खंडूरी सीएम बने, लेकिन 2 साल बाद 2009 में बीजेपी ने रमेश पोखरियाल निशंक को सीएम बना दिया. इसके बाद चुनाव से ठीक 6 महीने पहले बीजेपी ने फिर से बीसी खंडूरी को सीएम बनाया. 2012 में जब चुनाव हुए तो बीसी खंडूरी अपनी कोटद्वार सीट भी नहीं बचा सके और कांग्रेस ने सत्ता में वापसी कर ली.
2012 में निर्दलीयों के समर्थन से कांग्रेस ने सरकार बनाई और विजय बहुगुणा सीएम बने. लेकिन 2013 में उत्तराखंड में प्रलयकारी बाढ़ आई और आलोचना के बाद जनवरी 2014 में विजय बहुगुणा ने इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस ने उनकी जगह हरीश रावत को सीएम बनाया. और 2017 के जब चुनाव हुए तो हरीश रावत सूबे के मुख्यमंत्री थे. उन्होंने कुमाऊं रीजन की किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण दो सीटों से चुनाव लड़ा और दोनों जगह से हार गए. कांग्रेस को भी इस चुनाव में बुरी हार का सामना करना पड़ा और बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी.
शिक्षा मंत्री के साथ भी जुड़ा है मिथक
उत्तराखंड राजनीतिक रूप से बड़ा ही रोचक राज्य है. जैसा मुख्यमंत्री के साथ मिथक है वैसा ही यहां शिक्षा मंत्रियों के साथ भी मिथक जुड़ा रहा है. जो भी मौजूदा शिक्षा मंत्री चुनाव में गया वो हार गया. एनडी तिवारी की सरकार में नरेंद्र सिंह भंडारी शिक्षा मंत्री हुआ करते थे जो 2007 में चुनाव हार गए. बीसी खंडूरी की सरकार में गोविंद सिंह बिष्ट शिक्षा मंत्री थे लेकिन 2012 में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा.
इसके बाद हरीश रावत सरकार में मंत्री प्रसाद नैथानी शिक्षा मंत्री थे जिन्हें 2017 में हार का सामना करना पड़ा. अब धामी सरकार में अरविंद पांडेय शिक्षा मंत्री हैं जो गदरपुर से चुनाव लड़ रहे हैं वो यहां से लगातार दो बार चुनाव जीत चुके हैं.
गंगोत्री और चंपावत विधानसभा सीट
इन दो विधानसभा सीटों से भी एक मिथक जुड़ा है. दरअसल राज्य गठन के बाद से ऐसा होता रहा है कि इन दोनों सीटों पर जिस पार्टी का विधायक बना सरकार भी उसी पार्टी की बनी. 2002 और 2012 में यहां कांग्रेस ने जीत दर्ज की और सूबे में सरकार बनाई. 2007 और 2017 में इन गंगोत्री और चंपावत से बीजेपी के विधायक बनकर आये और राज्य में बीजेपी ने सरकार बनाई. इसीलिए इस बार भी इन दोनों सीटों पर लोगों की नजर है.
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