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C-Section Delivery: सिजेरियन या नॉर्मल डिलीवरी किसे चुनें? जानें इससे जुड़े हर जवाब

C-Section Delivery: सिजेरियन सेक्शन जब जरूरी हो, तो यह जीवन बचाने वाली प्रक्रिया होती है.

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Cesarean Section Delivery Vs Normal Delivery: प्रेगनेंसी के दौरान अक्सर बच्चे की डिलीवरी किस तरीके से होगी, ये पूरे परिवार के लिए सवाल बन जाता है. ऐसे में दो विकल्प सामने होते हैं सिजेरियन या नॉर्मल डिलीवरी.

WHO ने सिफारिश की है कि किसी भी देश में सिजेरियन डिलीवरी का प्रतिशत 10 से 15 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए.

इस फैसले को लेने में प्रेग्नेंट महिला जिस डॉक्टर की देख-रेख में इलाज करा रही है, उनकी सलाह बेहद महत्वपूर्ण होती है. लेकिन इस स्थिति में महिला को फैसला लेने का पूरा अधिकार है.

भारत में सिजेरियन सेक्शन डिलीवरी के मामले क्यों बढ़े रहे हैं? बच्चे की डिलीवरी से जुड़े मां के अधिकार क्या हैं? क्या हैं सी-सेक्शन (Cesarean Section) डिलीवरी के फायदे और नुकसान? क्या सिजेरियन डिलीवरी से जुड़े मिथक अब भी समाज में फैले हैं? फिट हिंदी ने एक्सपर्ट्स से बात की और इन सवालों के जवाब को समझा.

C-Section Delivery: सिजेरियन या नॉर्मल डिलीवरी किसे चुनें? जानें इससे जुड़े हर जवाब

  1. 1. भारत में सिजेरियन सेक्शन डिलीवरी के मामले बढ़े रहे हैं

    फिट हिंदी से बात करते हुए डॉ. नूपुर गुप्ता बताती हैं कि भारत में सिजेरियन सेक्शन के मामले कई कारणों से लगातार बढ़ रहे हैं. यहां एक्सपर्ट के बताए कुछ सामान्य कारण:

    • मां और शिशु की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मेडकिल कॉम्प्लिकेशंस की वजहों से सिजेरियन सेक्शन किया जाता है. ऐसे में प्लेसेंटा प्रीविया (इस स्थिति में सर्विक्स को ऊपर से प्लेसेंटा ढंक लेता है), ब्रीच या ट्रांसवर्स लाइ (जिसमें शिशु के पैर पहले होते हैं या गर्भ में वह ट्रांसवर्स स्थिति में होता है), भ्रूण के लिए संकट पैदा होने पर, या मां को हाइपरटेंशन और शिशु का साइज बड़ा होने की वजह से भी कई बार नार्मल डिलीवरी मुश्किल हो जाती है. 

    • मां की अधिक उम्र होने से. कई कारणों की वजह से अब महिलाएं अधिक उम्र में डिलीवरी का विकल्प चुन रही हैं, जिसके कारण कई बार मेडिकल जटिलताएं बढ़ जाती हैं और इसके कारण सी-सेक्शन के मामले अधिक हो रहे हैं.

    "हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या हार्ट डिजीज जैसी पहले से मौजूद मेडिकल कंडीशंस की वजह से अधिक प्रसव पीड़ा के कारण भी सी-सेक्शन की संभावना बढ़ जाती है."
    डॉ. नूपुर गुप्ता, डायरेक्टर, ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम
    • मां के ओवरवेट होने पर लेबर धीमे होता है. डायबिटीज और हाइपरटेंशन का जोखिम भी बढ़ सकता है, जिसके चलते सर्जिकल डिलीवरी का विकल्प जरूरी हो जाता है.  

    • फर्टिलिटी ट्रीटमेंट्स की वजह से ट्विन (twin) डिलीवरी की संभावना बढ़ जाती है, जिसके कारण सिजेरियन डिलीवरी के मामले बढ़ते हैं.  

    • पिछले सीजेरियन की वजह से भी अगली प्रेगनेंसी में सिजेरियन की आशंका बढ़ जाती है. ऐसा अक्सर यूटराइन रप्चर या डिक्लाइनिंग वजाइनल बर्थ आफ्टर सिजेरियन (VBAC) के अधिक जोखिम की वजह से हो सकता है.

    • कई बार महिलाएं बिना किसी वजह से भी सिजेरियन सेक्शन चुनती हैं, जो कि प्रसव पीड़ा से बचने, सुविधा या जन्मतिथि और समय के मुहूर्त को चुनने की वजह से हो सकता है.  

    • डिक्लाइनिंग वजाइनल बर्थ आफ्टर सीजेरियन (VBAC) दरें  

    • टेक्नोलॉजी में प्रगति और सुविधा, सुरक्षित एनेस्थीसिया और पोस्ट ऑपरेटिव पेन मैनेजमेंट की वजह से भी इसके मामले बढ़े हैं.

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  2. 2. मां के अनुरोध पर भी होता है सिजेरियन सेक्शन

    ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया की जेंडर लीड, सीमा भास्करन ने फिट हिंदी से बातचीत की, जिसमें उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने कहा है कि सिजेरियन सेक्शन (C-Section) जब जरूरी होता है, तो यह जीवन बचाने वाली प्रक्रिया होती है, लेकिन यदि सही संकेतों के बिना किया जाता है, तो इससे मां और शिशु दोनों को जोखिम हो सकता है.

    "अनावश्यक सिजेरियन सेक्शन पहले से ही ओवरलोडेड हेल्थ सिस्टम से दूसरे हेल्थ सेविसेस से जुड़े रिर्सोसेस भी खींच लेता है."
    सीमा भास्करन, जेंडर लीड- ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया

    विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा सिफारिश की गई है कि किसी भी देश में सिजेरियन डिलीवरी का प्रतिशत 10 से 15 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए, स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (HMIS) ने 2019-20 में 20.5% सिजेरियन डिलीवरी की रिपोर्ट की है, जो 2020-21 में 21.3% बढ़ गई और फिर 2021-22 में 23.29% तक पहुंची.

    "लेकिन यह स्पष्ट है कि हर महिला को अपने बॉडी और लाइफ पर कंट्रोल, परिवार नियोजन के बारे में निर्णय लेने का और इमरजेंसी में सेवाओं का चयन करने का अधिकार है और हेल्थ सिस्टम को ऐसी सेवाओं को सक्रिय करने के लिए उनका समर्थन करना चाहिए."
    सीमा भास्करन, जेंडर लीड- ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया

    इलेक्टिव सिजेरियन के बारे में बताते हुए डॉ. गुप्ता कहती हैं,  

    "हम अपने मरीजों को वजाइनल डिलीवरी की तुलना में सिजेरियन डिलीवरी से जुड़े फायदों और जोखिमों के बारे में पूरी जानकारी देते हैं. इनमें इंफेक्शन या ब्लड क्लॉट्स का जोखिम, अगली प्रेगनेंसी पर पड़ने वाले लॉन्ग टर्म इफेक्ट जैसी बातें शामिल होती है."

    "मेडिकल कंडीशन नहीं होने पर भी मां के पास सिजेरियन डिलीवरी का विकल्प चुनने का अधिकार होता है, इसे आमतौर पर ‘मां के अनुरोध पर सिजेरियन सेक्शन’ कहा जाता है."
    डॉ. नूपुर गुप्ता, डायरेक्टर, ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

    लेकिन यह फैसला कई दूसरे फैक्टर्स पर निर्भर करता है, जैसे ऑब्सटेट्रिशियन का क्लिनिकल जजमेंट, मांओं द्वारा सिजेरियन विकल्प के मामले में अस्पताल की पॉलिसी या रीजनल और नेशनल गाइडलाइंस.  

    "हालांकि, मरीज की प्राथमिकता महत्वपूर्ण होती है पर, हम मां और शिशु दोनों के जोखिमों और फायदों की तुलना करते हैं."
    डॉ. नूपुर गुप्ता, डायरेक्टर, ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

    एक्सपर्ट ये भी कहती हैं कि महिलाएं आमतौर पर प्रसव पीड़ा के डर, वजाइनल डिलीवरी होने पर पेल्विक फ्लोर को होने वाले नुकसान, सुविधा या पिछले प्रसव के अनुभवों के ट्रॉमा की वजह से सिजेरियन का विकल्प चुनती हैं.

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  3. 3. सी-सेक्शन डिलीवरी के फायदे और नुकसान

    सिजेरियन सेक्शन में पेट और गर्भाशय पर चीरे लगाकर डिलीवरी कराई जाती है. इस प्रक्रिया के अपने फायदे और नुकसान होते हैं. ऐसे में, होने वाली मांओं की काउंसलिंग काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ताकि वे डिलीवरी से जुड़े फैसले सही तरीके से ले सकें.  

    सिजेरियन सेक्शन के फायदे

    1. ⁠सिजेरियन सेक्शन की प्लानिंग पहले से की जाती है, जिससे मैटरनिटी लीव और फैमिली सपोर्ट की व्यवस्था करने में आसानी होती है.  

    2. सिजेरियन डिलीवरी में प्रसव पीड़ा से गुजरना नहीं पड़ता है.

    3. सिजेरियन डिलीवरी में ⁠⁠वजाइनल डिलीवरी (normal delivery) की तुलना में एसफिक्सिया का रिस्क कम होता है.

    4. स्ट्रेस इनकॉन्टीनेंस और यूटेरो वेजाइनल प्रोलैप्स का लॉन्ग टर्म रिस्क कम होता है  

    5. प्लेसेंटा प्रीविया, अंबिलिकल कॉर्ड प्रोलैप्स, सीबीटी या एक्टिव जेनाइटल हर्पीज इंफेक्शन की कंडीशन में भी सेफ डिलीवरी होती है.

    सिजेरियन सेक्शन के नुकसान  

    1. वेजाइनल बर्थ की तुलना में रिकवरी में अधिक समय लगता है.

    2. सिजेरियन डिलीवरी में सर्जरी के कारण इंफेक्शन, ब्लड लॉस, ब्लड क्लॉट्स और एनेस्थीसिया का रिस्क बढ़ता है. इसके कारण फ्यूचर में होने वाली प्रेगनेंसी में सिजेरियन की संभावना बढ़ती है, साथ ही, यूटराइन रप्चर और प्लेसेंटा एक्रेटा का रिस्क भी बढ़ता है.

    3. पोस्ट ऑपरेटिव पेन की वजह से ब्रेस्टफीडिंग की शुरुआत और मां-शिशु के बीच स्किन से स्किन के संपर्क में देरी हो सकती है.

    4. वजाइनल बर्थ की उम्मीद करने वाली कुछ मांओं को इमोशनल ट्रॉमा भी हो सकता है.

    5. नवजात को ट्रांजिएंट टैचीपनिया की समस्या हो सकती है, जो कि अस्थायी ब्रीदिंग प्रॉब्लम है.

    6. नार्मल डिलीवरी की तुलना में सिजेरियन डिलीवरी में अधिक खर्च होता है और अस्पताल में भी अधिक दिनों तक रुकना पड़ता है. 

    बेशक, वेजाइनल बर्थ और सी-सेक्शन के बीच चुनाव करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन यहां एक्सपर्ट के बताए गए पॉइंट्स को ध्यान में रख कर फैसला लेने में मदद मिल सकती है.

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  4. 4. सिजेरियन डिलीवरी से जुड़े मिथक समाज में फैले हैं

    समय के साथ, यह देखा गया है कि निजी अस्पतालों में सिजेरियन डिलीवरी का प्रतिशत सार्वजनिक संस्थानों की तुलना में अधिक रहा है. 2019-20 में, निजी संस्थानों में 34.2% सिजेरियन हुई, जो 2020-21 में 35.95% बढ़ गई और फिर 2021-22 में 37.95 तक पहुंची. तुलनात्मक रूप से, उसी समय पर, सार्वजनिक संस्थानों में 14.1%, 13.96%, और 15.48% की सिजेरियन होती रही.

    इस डेटा से अपनी बात समझाते हुए सीमा भास्करन गरीबी और समाज में सिजेरियन डिलीवरी से जुड़े हुए मिथकों की ओर इशारा करती हैं. वो कहती हैं, "डेटा इस तथ्य को हाइलाइट करता है कि पैसे की कमी के कारण गरीब परिवारों की महिलाएं जीवन के जोखिम के बावजूद सिजेरियन सुविधा तक आसानी से पहुंच नहीं पा रही हैं".

    "महिलाओं को केवल प्रसव के दर्द के माध्यम से प्राकृतिक रूप से डिलीवर करना होना चाहिए इस धारणा के आसपास सोच है और यह महिलाओं को आपातकाल में भी सिजेरियन की ओर जाने से रोकती है."
    सीमा भास्करन, जेंडर लीड- ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया

    मेडिकल इंटरनेट रिसर्च जर्नल द्वारा किए गए रिसर्च में सिजेरियन की बढ़ती संख्या को भुगतान की इच्छा (willingness to pay), खासकर धनवान परिवारों की महिलाओं में और दूसरे कारकों जैसे कि प्राइवेट सेक्टर में डॉक्टर का चयन किए जाने की सुविधा के कारण होता है.

    पहले से ही साबित हो चुका है कि सिजेरियन डिलीवरी और इलेक्टिव सिजेरियन चुनने की संभावना उन लोगों में अधिक होती है, जो पैसे से संपन्न हों.

    "गरीब परिवारों का फोकस अभी भी पब्लिक हेल्थ सिस्टम में इंस्टिट्यूशनल डिलीवरी सुनिश्चित करने और मातृ मृत्यु से महिलाओं की सुरक्षा पर होता है."
    सीमा भास्करन, जेंडर लीड- ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया

    (हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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भारत में सिजेरियन सेक्शन डिलीवरी के मामले बढ़े रहे हैं

फिट हिंदी से बात करते हुए डॉ. नूपुर गुप्ता बताती हैं कि भारत में सिजेरियन सेक्शन के मामले कई कारणों से लगातार बढ़ रहे हैं. यहां एक्सपर्ट के बताए कुछ सामान्य कारण:

  • मां और शिशु की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मेडकिल कॉम्प्लिकेशंस की वजहों से सिजेरियन सेक्शन किया जाता है. ऐसे में प्लेसेंटा प्रीविया (इस स्थिति में सर्विक्स को ऊपर से प्लेसेंटा ढंक लेता है), ब्रीच या ट्रांसवर्स लाइ (जिसमें शिशु के पैर पहले होते हैं या गर्भ में वह ट्रांसवर्स स्थिति में होता है), भ्रूण के लिए संकट पैदा होने पर, या मां को हाइपरटेंशन और शिशु का साइज बड़ा होने की वजह से भी कई बार नार्मल डिलीवरी मुश्किल हो जाती है. 

  • मां की अधिक उम्र होने से. कई कारणों की वजह से अब महिलाएं अधिक उम्र में डिलीवरी का विकल्प चुन रही हैं, जिसके कारण कई बार मेडिकल जटिलताएं बढ़ जाती हैं और इसके कारण सी-सेक्शन के मामले अधिक हो रहे हैं.

"हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या हार्ट डिजीज जैसी पहले से मौजूद मेडिकल कंडीशंस की वजह से अधिक प्रसव पीड़ा के कारण भी सी-सेक्शन की संभावना बढ़ जाती है."
डॉ. नूपुर गुप्ता, डायरेक्टर, ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम
  • मां के ओवरवेट होने पर लेबर धीमे होता है. डायबिटीज और हाइपरटेंशन का जोखिम भी बढ़ सकता है, जिसके चलते सर्जिकल डिलीवरी का विकल्प जरूरी हो जाता है.  

  • फर्टिलिटी ट्रीटमेंट्स की वजह से ट्विन (twin) डिलीवरी की संभावना बढ़ जाती है, जिसके कारण सिजेरियन डिलीवरी के मामले बढ़ते हैं.  

  • पिछले सीजेरियन की वजह से भी अगली प्रेगनेंसी में सिजेरियन की आशंका बढ़ जाती है. ऐसा अक्सर यूटराइन रप्चर या डिक्लाइनिंग वजाइनल बर्थ आफ्टर सिजेरियन (VBAC) के अधिक जोखिम की वजह से हो सकता है.

  • कई बार महिलाएं बिना किसी वजह से भी सिजेरियन सेक्शन चुनती हैं, जो कि प्रसव पीड़ा से बचने, सुविधा या जन्मतिथि और समय के मुहूर्त को चुनने की वजह से हो सकता है.  

  • डिक्लाइनिंग वजाइनल बर्थ आफ्टर सीजेरियन (VBAC) दरें  

  • टेक्नोलॉजी में प्रगति और सुविधा, सुरक्षित एनेस्थीसिया और पोस्ट ऑपरेटिव पेन मैनेजमेंट की वजह से भी इसके मामले बढ़े हैं.

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मां के अनुरोध पर भी होता है सिजेरियन सेक्शन

ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया की जेंडर लीड, सीमा भास्करन ने फिट हिंदी से बातचीत की, जिसमें उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने कहा है कि सिजेरियन सेक्शन (C-Section) जब जरूरी होता है, तो यह जीवन बचाने वाली प्रक्रिया होती है, लेकिन यदि सही संकेतों के बिना किया जाता है, तो इससे मां और शिशु दोनों को जोखिम हो सकता है.

"अनावश्यक सिजेरियन सेक्शन पहले से ही ओवरलोडेड हेल्थ सिस्टम से दूसरे हेल्थ सेविसेस से जुड़े रिर्सोसेस भी खींच लेता है."
सीमा भास्करन, जेंडर लीड- ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा सिफारिश की गई है कि किसी भी देश में सिजेरियन डिलीवरी का प्रतिशत 10 से 15 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए, स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (HMIS) ने 2019-20 में 20.5% सिजेरियन डिलीवरी की रिपोर्ट की है, जो 2020-21 में 21.3% बढ़ गई और फिर 2021-22 में 23.29% तक पहुंची.

"लेकिन यह स्पष्ट है कि हर महिला को अपने बॉडी और लाइफ पर कंट्रोल, परिवार नियोजन के बारे में निर्णय लेने का और इमरजेंसी में सेवाओं का चयन करने का अधिकार है और हेल्थ सिस्टम को ऐसी सेवाओं को सक्रिय करने के लिए उनका समर्थन करना चाहिए."
सीमा भास्करन, जेंडर लीड- ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया

इलेक्टिव सिजेरियन के बारे में बताते हुए डॉ. गुप्ता कहती हैं,  

"हम अपने मरीजों को वजाइनल डिलीवरी की तुलना में सिजेरियन डिलीवरी से जुड़े फायदों और जोखिमों के बारे में पूरी जानकारी देते हैं. इनमें इंफेक्शन या ब्लड क्लॉट्स का जोखिम, अगली प्रेगनेंसी पर पड़ने वाले लॉन्ग टर्म इफेक्ट जैसी बातें शामिल होती है."

"मेडिकल कंडीशन नहीं होने पर भी मां के पास सिजेरियन डिलीवरी का विकल्प चुनने का अधिकार होता है, इसे आमतौर पर ‘मां के अनुरोध पर सिजेरियन सेक्शन’ कहा जाता है."
डॉ. नूपुर गुप्ता, डायरेक्टर, ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

लेकिन यह फैसला कई दूसरे फैक्टर्स पर निर्भर करता है, जैसे ऑब्सटेट्रिशियन का क्लिनिकल जजमेंट, मांओं द्वारा सिजेरियन विकल्प के मामले में अस्पताल की पॉलिसी या रीजनल और नेशनल गाइडलाइंस.  

"हालांकि, मरीज की प्राथमिकता महत्वपूर्ण होती है पर, हम मां और शिशु दोनों के जोखिमों और फायदों की तुलना करते हैं."
डॉ. नूपुर गुप्ता, डायरेक्टर, ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

एक्सपर्ट ये भी कहती हैं कि महिलाएं आमतौर पर प्रसव पीड़ा के डर, वजाइनल डिलीवरी होने पर पेल्विक फ्लोर को होने वाले नुकसान, सुविधा या पिछले प्रसव के अनुभवों के ट्रॉमा की वजह से सिजेरियन का विकल्प चुनती हैं.

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सी-सेक्शन डिलीवरी के फायदे और नुकसान

सिजेरियन सेक्शन में पेट और गर्भाशय पर चीरे लगाकर डिलीवरी कराई जाती है. इस प्रक्रिया के अपने फायदे और नुकसान होते हैं. ऐसे में, होने वाली मांओं की काउंसलिंग काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ताकि वे डिलीवरी से जुड़े फैसले सही तरीके से ले सकें.  

सिजेरियन सेक्शन के फायदे

  1. ⁠सिजेरियन सेक्शन की प्लानिंग पहले से की जाती है, जिससे मैटरनिटी लीव और फैमिली सपोर्ट की व्यवस्था करने में आसानी होती है.  

  2. सिजेरियन डिलीवरी में प्रसव पीड़ा से गुजरना नहीं पड़ता है.

  3. सिजेरियन डिलीवरी में ⁠⁠वजाइनल डिलीवरी (normal delivery) की तुलना में एसफिक्सिया का रिस्क कम होता है.

  4. स्ट्रेस इनकॉन्टीनेंस और यूटेरो वेजाइनल प्रोलैप्स का लॉन्ग टर्म रिस्क कम होता है  

  5. प्लेसेंटा प्रीविया, अंबिलिकल कॉर्ड प्रोलैप्स, सीबीटी या एक्टिव जेनाइटल हर्पीज इंफेक्शन की कंडीशन में भी सेफ डिलीवरी होती है.

सिजेरियन सेक्शन के नुकसान  

  1. वेजाइनल बर्थ की तुलना में रिकवरी में अधिक समय लगता है.

  2. सिजेरियन डिलीवरी में सर्जरी के कारण इंफेक्शन, ब्लड लॉस, ब्लड क्लॉट्स और एनेस्थीसिया का रिस्क बढ़ता है. इसके कारण फ्यूचर में होने वाली प्रेगनेंसी में सिजेरियन की संभावना बढ़ती है, साथ ही, यूटराइन रप्चर और प्लेसेंटा एक्रेटा का रिस्क भी बढ़ता है.

  3. पोस्ट ऑपरेटिव पेन की वजह से ब्रेस्टफीडिंग की शुरुआत और मां-शिशु के बीच स्किन से स्किन के संपर्क में देरी हो सकती है.

  4. वजाइनल बर्थ की उम्मीद करने वाली कुछ मांओं को इमोशनल ट्रॉमा भी हो सकता है.

  5. नवजात को ट्रांजिएंट टैचीपनिया की समस्या हो सकती है, जो कि अस्थायी ब्रीदिंग प्रॉब्लम है.

  6. नार्मल डिलीवरी की तुलना में सिजेरियन डिलीवरी में अधिक खर्च होता है और अस्पताल में भी अधिक दिनों तक रुकना पड़ता है. 

बेशक, वेजाइनल बर्थ और सी-सेक्शन के बीच चुनाव करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन यहां एक्सपर्ट के बताए गए पॉइंट्स को ध्यान में रख कर फैसला लेने में मदद मिल सकती है.

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सिजेरियन डिलीवरी से जुड़े मिथक समाज में फैले हैं

समय के साथ, यह देखा गया है कि निजी अस्पतालों में सिजेरियन डिलीवरी का प्रतिशत सार्वजनिक संस्थानों की तुलना में अधिक रहा है. 2019-20 में, निजी संस्थानों में 34.2% सिजेरियन हुई, जो 2020-21 में 35.95% बढ़ गई और फिर 2021-22 में 37.95 तक पहुंची. तुलनात्मक रूप से, उसी समय पर, सार्वजनिक संस्थानों में 14.1%, 13.96%, और 15.48% की सिजेरियन होती रही.

इस डेटा से अपनी बात समझाते हुए सीमा भास्करन गरीबी और समाज में सिजेरियन डिलीवरी से जुड़े हुए मिथकों की ओर इशारा करती हैं. वो कहती हैं, "डेटा इस तथ्य को हाइलाइट करता है कि पैसे की कमी के कारण गरीब परिवारों की महिलाएं जीवन के जोखिम के बावजूद सिजेरियन सुविधा तक आसानी से पहुंच नहीं पा रही हैं".

"महिलाओं को केवल प्रसव के दर्द के माध्यम से प्राकृतिक रूप से डिलीवर करना होना चाहिए इस धारणा के आसपास सोच है और यह महिलाओं को आपातकाल में भी सिजेरियन की ओर जाने से रोकती है."
सीमा भास्करन, जेंडर लीड- ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया

मेडिकल इंटरनेट रिसर्च जर्नल द्वारा किए गए रिसर्च में सिजेरियन की बढ़ती संख्या को भुगतान की इच्छा (willingness to pay), खासकर धनवान परिवारों की महिलाओं में और दूसरे कारकों जैसे कि प्राइवेट सेक्टर में डॉक्टर का चयन किए जाने की सुविधा के कारण होता है.

पहले से ही साबित हो चुका है कि सिजेरियन डिलीवरी और इलेक्टिव सिजेरियन चुनने की संभावना उन लोगों में अधिक होती है, जो पैसे से संपन्न हों.

"गरीब परिवारों का फोकस अभी भी पब्लिक हेल्थ सिस्टम में इंस्टिट्यूशनल डिलीवरी सुनिश्चित करने और मातृ मृत्यु से महिलाओं की सुरक्षा पर होता है."
सीमा भास्करन, जेंडर लीड- ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया

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