कई बड़े देशों में तमाम तैयारियों के बावजूद वैक्सीनेशन की प्रक्रिया में दिक्कतें आ रही हैं. लॉजिस्टिक से लेकर, वैक्सीन में अविश्वास का मामला बड़ा कारण बनकर सामने आया है. अनुमान के उलट काफी धीमी गति से वैक्सीनेशन हो रहा है.
भारत 16 जनवरी से वैक्सीनेशन ड्राइव शुरू कर रहा है.
घोषणा के बाद 9 जनवरी को खबर आई कि पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) की कोरोना वैक्सीन कोविशील्ड (Covishield) को पुणे से एयरलिफ्ट किया जाना था लेकिन इस काम में देरी हुई. वैक्सीन का एयरलिफ्ट 48 घंटे के लिए टल गया.
वैक्सीन के ड्राई रन के दौरान भी अव्यवस्था की खबरें दिखीं थी. वाराणसी में कोरोना वैक्सीनेशन के लिए ड्राई रन की तैयारियों की पोल उस समय खुली जब कर्मचारी डमी वैक्सीन को साइकिल से लेकर अस्पताल पहुंचे.
वहीं, उत्तर प्रदेश में एक मृत नर्स का नाम उन हेल्थ वर्कर्स की लिस्ट में शामिल कर लिया गया, जिनको COVID-19 वैक्सीनेशन के पहले फेज में वैक्सीन लगाया जाना है. इस मामले में जांच का आदेश दिया गया है.
वैक्सीनेशन शुरू होने से पहले ही ऐसी खबरें चिंताजनक है और संकेत दे रही है कि भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में वैक्सीनेशन ड्राइव काफी चुनौती भरा होगा.
फिलहाल दुनियाभर में 45 से ज्यादा देशों में कोरोना वायरस के खिलाफ वैक्सीनेशन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. इनमें चीन, यूके, अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, इटली, रूस जैसे अग्रणी देश भी शामिल हैं. ये कोविड से सबसे ज्यादा प्रभावित देश भी रहे हैं.
हम कुछ बड़े देशों पर नजर डालते हैं कि उनके यहां वैक्सीनेशन का क्या हाल है?
फ्रांस के हालात
ABC की रिपोर्ट के मुताबिक फ्रांस जैसे कोरोना से सबसे प्रभावित देश ने सख्ती और सतर्कता दिखाई लेकिन ऊपर लगाए गए चार्ट में आप देेख सकते हैं कि कुछ हजार लोगों का ही वैक्सीनेशन हो सका है. हाल ही के एक सर्वे से पता चला है कि सिर्फ 54% फ्रांसीसी लोग सुरक्षित और प्रभावी COVID-19 वैक्सीन लेने के पक्ष में हैं.
वहां की सरकार ने वैक्सीन से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए हैं. इसके लिए सरकार वैक्सीनेशन कार्यक्रम की "देखरेख" के लिए एक काउंसिल बनाने के लिए आम जनता में से 35 सदस्यों की भर्ती कर रही है. इन अतिरिक्त कदमों ने फ्रांस में रोलआउट को और भी धीमा कर दिया है, जिससे ये अपने यूरोपीय समकक्षों से काफी पीछे है.
वहीं, इंग्लैंड के विनचेस्टर में, जहां पहले वैक्सीन सेंटर्स में से एक खोला गया, दिसंबर से अब तक सिर्फ 3,000 लोगों को वैक्सीन लग सका है. ये सेंटर्स हर 3 मिनट में एक व्यक्ति को वैक्सीन लगाने की क्षमता रखते हैं, लेकिन सेंटर्स तक पर्याप्त वैक्सीन पहुंचना एक बड़ी चुनौती साबित हो रहा है.
वहां प्रशासन के कर्मचारी वैक्सीनेशन के लिए कमजोर ग्रुप की बुकिंग की कोशिश में ओवरटाइम ड्यूटी कर रहे हैं.
जर्मनी में वैक्सीन शॉर्टेज
जर्मनी जैसा देश जिसे कोरोना वायरस आउटब्रेक की शुरुआत में संक्रमण को काबू करने को लेकर मिसाल के तौर पर पेश किया जा रहा था, वहां भी वैक्सीन शॉर्टेज और ट्रांसपोर्टेशन की समस्या देखी जा रही है.
बर्लिन समेत 3 जर्मन राज्यों को वैक्सीन शॉर्टेज की वजह से कम से कम एक सप्ताह तक अपने कोरोना वायरस वैक्सीनेशन ड्राइव रोकने के लिए मजबूर होना पड़ा. वैक्सीनेशन शुरू होने के 4 दिन बाद ही ऐसी समस्या दिखने लगीं.
जहां जनवरी के पहले सप्ताह तक 20 हजार डोज पहुंचने वाले थे वहां एक भी डोज नहीं पहुंचा. देरी की एक वजह फाइजर वैक्सीन को पर्याप्त रेफ्रिजेशन के साथ ट्रांसपोर्ट नहीं किया जाना भी है.
अमेरिका भी पस्त
कोरोना वायरस वैक्सीनेशन की धीमी गति से चिंतित अमेरिकी स्वास्थ्य एजेंसियों ने सप्लाई बढ़ाने, वैक्सीन लेने की पात्रता संबंधी दिशानिर्देशों को आसान करने और वैक्सीनेशन सेंटर्स की संख्या बढ़ाने जैसे कई बदलाव किए हैं.
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) ट्रैकर के मुताबिक, 11 जनवरी तक अमेरिकी सरकार ने करीब 2.77 करोड़ वैक्सीन डोज डिस्ट्रीब्यूट कर दिए थे, लेकिन सिर्फ 90 लाख लोगों ने ही अब तक वैक्सीनेशन कराया है.
कुछ इलाकों में लोगों की संख्या ज्यादा होने के कारण बुकिंग वाली वेबसाइट क्रैश हो गई और बुकिंग लाइन नहीं जोड़ी जा सकी है. कुछ क्षेत्रों में 'पहले आएं पहले पाएं' के नियम से वैक्सीन लगाया जा रहा है, इसलिए बुजुर्गों समेत सभी लोगों को पूरी रात लाइन में इंतजार करना पड़ता है.
हालांकि, रिपोर्ट्स की मानें तो इस मामले में चीन की स्थिति ठीक मालूम होती है. चीन का लक्ष्य मध्य फरवरी तक 50 मिलियन लोगों को वैक्सीन लगाना है.
चीन काफी तेजी से काम करता दिख रहा है लेकिन ये भी गौर करना चाहिए कि चीन की कोई भी वैक्सीन अप्रूव नहीं है. लेट स्टेज क्लीनिकल ट्रायल के डेटा जारी नहीं किए गए हैं. साइनोफार्म ने काफी कम जानकारियां जारी की हैं.
बात करें भारत की तो फिलहाल हम सिर्फ 2 वैक्सीन पर निर्भर हैं- ऑक्सफोर्ड की कोविशील्ड और भारत बायोटेक की स्वदेशी कोवैक्सीन. इन दोनों वैक्सीन को इमरजेंसी यूज ऑथराइजेशन के तहत मिली मंजूरी विवादों में रही. भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के फेज 3 ट्रायल के डेटा सामने नहीं आए हैं. भारत जिन वैक्सीन पर निर्भर है उनसे जुड़े अहम सवालों के जवाब पब्लिक के पास नहीं है. हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में हम अमेरिका जैसे देशों से काफी पीछे हैं और कोरोना के नए वेरिएंट को लेकर चिंताएं भी जुड़ चुकी हैं.
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