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PCOS vs PCOD: क्‍या पीसीओडी और पीसीओएस एक ही समस्या है? बता रहीं एक्सपर्ट्स

PCOS Awareness Month: ये दोनों ही समस्‍याएं 12 से 52 वर्ष की महिलाओं को अधिक प्रभावित करती हैं.

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PCOS Awareness Month: क्या आप भी अक्सर पीसीओएस और पीसीओडी में कंफ्यूज हो जाते हैं? एक जैसा साउंड करने वाली ये दोनों समस्याएं अक्सर लोगों को सोच में डाल देते हैं. कॉलेज के दिनों में जब मैंने पहली बार ये दोनों शब्द सुने तो लगा दोनों एक ही है क्योंकि दोनों के लक्षणों में बहुत सी समानताएं हैं पर, इसके बारे में और अधिक पढ़ने से पता चला कि दोनों एक से होते हुए भी एक दूसरे से अलग भी हैं.

क्‍या पीसीओडी और पीसीओएस एक ही समस्या है? दोनों में क्या अंतर और समानताएं हैं? पीसीओडी और पीसीओएस में लाइफस्टाइल का क्या रोल है? क्‍या पीसीओडी और पीसीओएस का इलाज किया जा सकता है? पीसीओएस और पीसीओडी से जुड़े कन्फ्यूजन को दूर करने के लिए फिट हिंदी ने एक्सपर्ट्स से बात की और जानें इन सारे सवालों के जवाब.

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क्‍या पीसीओडी और पीसीओएस एक ही समस्या है?

"ज्यादातर महिलाएं पीसीओडी (PCOD) और पीसीओएस (PCOS) के बीच कंफ्यूज हो जाती हैं, खास कर जब हम PCOD और PCOS के बीच के संबंध को पहचानने की कोशिश करते हैं."
डॉ. अरुणा कालरा, सीनियर गायनेकोलॉजिस्ट और ऑब्स्टट्रिशन -सी के बिरला हॉस्पिटल, गुरुग्राम

डॉ. मंजुषा गोयल कहती हैं, "पीसीओडी (पोलीसिस्टिक ओवरी डिसॉर्डर) और पीसीओएस (पोलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) दोनों एक-दूसरे से जुड़े तो हैं, लेकिन एक समान नहीं होते. पीसीओडी (पोलीसिस्टिक ओवरी डिसॉर्डर) की प्रकृति हल्‍की होती है और यह मुख्‍य रूप से ओवरीज को प्रभावित करता है. इसमें अनियमित पीरियड्स, ओवेरियन सिस्‍ट, हिरुटिजम और एक्‍ने (acne) की समस्या होती है."

दूसरी ओर, पीसीओएस अधिक गंभीर किस्म की हार्मोनल कंडीशन होती है, जो ओवरी के अलावा दूसरी कई हेल्थ समस्‍याओं को भी जन्म देता है. इसमें पीसीओडी के लक्षण शामिल होते हैं लेकिन साथ ही, इसकी वजह से इंसुलिन प्रतिरोध, डायबिटीज, हाई बीपी, मोटापा और हृदय रोग जैसी समस्‍याएं भी पैदा हो सकती हैं.

"पीसीओडी मुख्‍य रूप से ओवरी की अनियमितताओं पर केंद्रित होता है, जबकि पीसीओएस शरीर के दूसरे सिस्टम्स को भी प्रभावित करता है, जो परिस्थितियों को अधिक मुश्किल और कंडीशन को अधिक गंभीर बनाता है."
डॉ. मंजुषा गोयल, लीड कंसलटेंट, डिपार्टमेंट ऑफ ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजी, सीके बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्‍ली

वहीं नोएडा, फोर्टिस हॉस्पिटल की कंसल्‍टेंट– ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजी, डॉ. नेहा गुप्‍ता ने फिट हिंदी को बताया कि हाल के समय में, इस डिसऑर्डर को रोग न कहकर सिंड्रोम कहा जाने लगा है. रोग आमतौर पर उस हेल्थ कंडीशन को कहते हैं जब उसके पीछे कोई स्पष्ट कारण हो. लेकिन सिंड्रोम (यह ग्रीक शब्‍द है जिसका मतलब होता है ‘साथ दौड़ना’) बिना किसी स्पष्ट कारण के कई बार कई तरह के लक्षणों को प्रकट कर सकता है.

सिंड्रोम ज्यादातर कई तरह के लक्षणों के समूह को कहते हैं जबकि रोग कोई स्पष्ट और निर्धारित कंडीशन होती है.

दोनों में क्‍या समानताएं हैं?

"ये दोनों ही समस्‍याएं 12 से 52 वर्ष की महिलाओं को प्रभावित करती हैं."
डॉ. मंजुषा गोयल, लीड कंसलटेंट, डिपार्टमेंट ऑफ ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजी, सीके बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्‍ली

पीसीओएस (पोलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) और पीसीओडी (पोलीसिस्टिक ओवरी डिसॉर्डर) में कई समानताएं हैं, जो कि रिप्रोडक्टिव ऐज ग्रुप की महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन और ओवरी की अनियमितताओं से जुड़ी हैं.

दोनों के समान लक्षणों में शामिल हैं:

  • इनफर्टिलिटी

  • वजन बढ़ना

  • एक्ने

  • अनियमित पीरियड्स

"पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) सबसे सामान्य प्रकार की एंडॉक्रिनोपैथी को कहते हैं, जो दुनियाभर में प्रजनन आयु वर्ग की 10-13% महिलाओं को प्रभावित करती है."
डॉ. नेहा गुप्‍ता, कंसल्‍टेंट– ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा

क्या अंतर है दोनों में?

एक्सपर्ट्स के अनुसार, पीसीओडी, एक सामान्‍य समस्‍या है, जो करीब 10% महिलाओं को प्रभावित करती है और इसमें ओवरी में कई छोटे-छोटे आकार के इमेच्योर ओवम (immature ovum) बनते हैं. इस कारण कई हेल्थ प्रॉब्लम्स पैदा हो सकती हैं, जैसे मोटापा, तनाव और हार्मोनल असंतुलन.

दूसरी ओर, पीसीओएस उतना आम विकार नहीं है (करीब 0.5% से 2.5% महिलाओं को प्रभावित करता है), लेकिन यह अधिक गंभीर किस्म का मेटाबॉलिक डिसॉर्डर है, जिसमें ऑव्यूलेशन की प्रक्रिया डिस्टर्ब होती है.

पीसीओएस से ग्रस्त महिलाओं में इनफर्टिलिटी की ज्‍यादा आशंका होती है, जो कि ओवम के नहीं बनाने की वजह से होता है और साथ ही, गर्भपात और प्रीमैच्‍योर डिलीवरी की आशंका भी बढ़ती है.

डॉ. अरुणा कालरा ने इन अंतरों के बारे में बताया:

  • बीमारी बनाम विकार

यह देखा गया है कि PCOD आमतौर पर अस्वस्थ जीवनशैली से होता है. PCOD एक व्यापक स्थिति है, जो सभी आयु की महिलाओं को प्रभावित करती है. वहीं PCOS बहुत आम नहीं होता है.

  • डैमेज कंट्रोल

हालांकि हर एक स्थिति के लिए एक सटीक उपचार अब तक नहीं मिला है, PCOD एक हेल्दी लाइफस्टाइल और नियमित व्यायाम के साथ-साथ पूरी तरह से ठीक हो सकता है. दूसरी ओर, PCOS के उपचार के लिए कुछ स्थितियों में सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है. PCOS के इलाज में PCOD के तुलना में काफी अधिक जटिलता होती है.

  • अधिक गंभीर

पीसीओडी से अधिक गंभीर होता है पीसीओएस. भले ही दोनों बीमारियों में समान लक्षण होते हैं. पीसीओएस के गंभीर दुष्प्रभाव में टाइप 2 डायबिटीज, हृदय रोग, हाई बीपी और यूटराइन कैंसर शामिल हैं.

  • इनफर्टिलिटी और ऑव्यूलेशन

PCOS से ग्रस्त महिलाएं गंभीर प्रजनन समस्याओं का सामना करती हैं. पीसीओएस समस्या से ग्रस्त महिलाएं नियमित रूप से ऑव्यूलेशन नहीं कर पाती हैं, जिससे गर्भावस्था में कठिनाइयां आती हैं. कई बार जब वे गर्भवती होती हैं, तो गर्भपात, प्रीमैच्‍योर डिलीवरी या गर्भावस्था में कठिनाइयों की आशंका होती है. दूसरी ओर, PCOD से ग्रस्त महिलाओं को गर्भवती होने में थोड़ी बहुत कठिनाइयां आ सकती हैं, लेकिन कोई बड़ी समस्या नहीं होती है.

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क्‍या पीसीओडी और पीसीओएस का इलाज किया जा सकता है?

डॉ. मंजुषा गोयल कहती हैं कि

"पीसीओडी और पीसीओएस का पूरी तरह से उपचार नहीं हो सकता. ये दोनों ही समस्‍याएं आजीवन रहती हैं. लेकिन सही तरीके से मेडिकल इलाज करने और लाइफस्‍टाइल संबंधी बदलाव लाकर, इन्हें कंट्रोल किया जा सकता है."

वहीं दूसरे एक्सपर्ट्स कहते हैं कि पीसीओडी आमतौर पर हेल्दी लाइफस्टाइल और नियमित व्यायाम के साथ-साथ पूरी तरह से ठीक हो सकता है, जबकि पीसीओएस का उपचार अधिक जटिल हो सकता है.

डॉक्टर की सलाह पर दवाएं खाना, एक्सरसाइज करना, सही आहार खाना और स्ट्रेस को कम करने के उपाय अधिकतर मामलों में मददगार हो सकते हैं. हेल्दी लाइफस्टाइल बनाए रखने से लक्षण कम हो सकते हैं.

पीसीओडी और पीसीओएस में लाइफस्टाइल का क्या रोल है?

पीसीओडी और पीसीओएस में लाइफस्‍टाइल की अहम भूमिका है. हेल्दी लाइफस्‍टाइल इन कंडीशंस को कई तरीके से प्रभावित करता है.

हेल्दी लाइफस्टाइल इंसुलिन सेंसटिविटी में सुधार लाता है, इंसुलिन प्रतिरोध घटाता है और हार्मोनल असंतुलन को भी कंट्रोल करता है, जो कि अक्‍सर पीसीओडी और पीसीओएस का कारण बनता है.

लाइफस्टाइल पीसीओडी और पीसीओएस के मैनेजमेंट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. हेल्दी लाइफस्टाइल, पौष्टिक आहार, रेगुलर एक्सरसाइज और स्ट्रेस को कम करने से फायदा होता है:

  • आहार: सही आहार खाना बहुत महत्वपूर्ण है. पौष्टिक खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए, जैसे कि फल, सब्जियां, सबूत अनाज और प्रोटीन युक्त आहार.

  • एक्सरसाइज: रेगुलर एक्सरसाइज करना महत्वपूर्ण है. यह वजन को कंट्रोल करने में मदद करता है और हार्मोनों को संतुलित रखने में मदद कर सकता है.

  • स्ट्रेस मैनेजमेंट: स्ट्रेस को कम करने के लिए योग और मेडिटेशन की प्रैक्टिस करें.

पीसीओएस से पूरी तरह से बचाव संभव नहीं होता, लेकिन इसके असर को कम करने और इसके कारण पैदा होने वाले लक्षणों को घटाने के लिए कुछ उपायों का पालन किया जा सकता है.
डॉ. नेहा गुप्‍ता, कंसल्‍टेंट– ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा
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पीसीओएस और पीसीओडी के मामले क्‍यों बढ़ रहे हैं?

हाल के वर्षों में कई कारणों के चलते, पीसीओएस और पीसीओडी के मामलों में तेजी आयी है. सबसे पहले तो लाइफस्‍टाइल में होने वाले बदलाव इसका कारण है, लोगों का जीवन सेडेन्‍ट्री अधिक हुआ है, इसी तरह लोग अधिक कैलोरी और कम पोषण वाली खुराक अधिक ले रहे हैं. इन कारणों से मोटापा बढ़ा है, जो कि इन दोनों कंडीशंस से जुड़ा है.

"साथ ही, पर्यावरण में बढ़ता प्रदूषण भी एक कारण है. वातावरण में एंडोक्राइन को प्रभावित करने वाले कैमिकल्स का बढ़ना, जो कि प्‍लास्टिक और पर्सनल केयर प्रोडक्‍ट्स के चलते बढ़ी है, भी हार्मोनल असंतुलन का कारण है.
डॉ. मंजुषा गोयल, लीड कंसलटेंट, डिपार्टमेंट ऑफ ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजी, सीके बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्‍ली

इसके अलावा, डायग्‍नॉस्टिक सुविधाएं बेहतर होने और जागरूकता बढ़ने के कारण अधिक मामले सामने आने लगे हैं. कुल-मिलाकर, लाइफस्‍टाइल, वातावरण और जेनेटिक्‍स के बीच म्यूच्यूअल संबंध का असर पीसीओएस और पीसीओडी के मामलों को प्रभावित करता है.

"मॉडर्न लाइफस्टाइल में तनाव अधिक होने से भी हार्मोनल असंतुलन हो सकता है, जिससे PCOS और PCOD के खतरे में वृद्धि होती है."
डॉ. अरुणा कालरा, सीनियर गायनेकोलॉजिस्ट और ऑब्स्टट्रिशन -सी के बिरला हॉस्पिटल, गुरुग्राम

डॉ. अरुणा कालरा आगे कहती हैं कि ही बढ़ता ओबेसिटी रेट भी PCOS और PCOD के मामलों को बढ़ावा देती है, क्योंकि अधिक वजन भी हार्मोनों को प्रभावित कर सकता है.

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