‘हाउ इज द जोश, लो सर...’ ये सर्जिकल स्ट्राइक पर बनी फिल्म उरी का डायलॉग नहीं बल्कि देश की सबसे स्मार्ट कही जाने वाली दिल्ली पुलिस का है. दिल्ली पुलिस के जवानों का जोश इस वक्त हाई नहीं बल्कि काफी लो दिख रहा है. तीस हजारी कोर्ट में वकीलों के साथ हुई झड़प के बाद खाकी वर्दी खुद इंसाफ मांग रही है. वकीलों के साथ इस टकराव ने उस बारूद को भी चिंगारी दे दी, जिसे पुलिस महकमा कई सालों से दबाता आया था.
कई दशकों बाद पुलिस प्रदर्शन करने सड़कों पर उतर आई, किसी भी कार्रवाई की फिक्र किए बिना ही अपने ही मुख्यालय को घेर लिया और नारेबाजी करने लगे. देश ने कई सालों बाद खाकी वर्दी में पुलिस को अपना हक मांगते देखा. लेकिन ऐसा क्या था, जिसने पुलिस के जवानों को इतनी हिम्मत दे दी कि वो अधिकारियों के प्रति अनुशासन वाला रवैया छोड़कर बगावत पर उतर आए?
क्विंट ने इन सभी सवालों और पुलिस दिल्ली पुलिस के इन बगावती तेवरों के पीछे की वजह जानने के लिए कुछ ऐसे पत्रकारों से बातचीत की, जिन्होंने कई सालों तक पुलिस और वकीलों के बीच रहकर पत्रकारिता की है.
कई सालों तक क्राइम रिपोर्टिंग कर चुके वरिष्ठ पत्रकार ललित वत्स ने पुलिस के इस प्रदर्शन को अंदर की नाराजगी बताया. उन्होंने बताया कि पुलिस के अंदर सिर्फ जवानों ही नहीं बल्कि अफसरों तक में नाराजगी है. लेकिन वो इसे कभी खुलकर नहीं कह पाते हैं. उन्होंने कहा,
“पुलिस के इस प्रदर्शन का कहीं न कहीं जवानों को नुकसान झेलना पड़ेगा. क्योंकि कोर्ट के अंदर की लॉबी भी उनके पक्ष में नहीं रहती है. मनोवैज्ञानिक तौर पर इसका कोई बड़ा फायदा नहीं होगा. इससे ये भी आरोप लगाए जा रहे हैं कि किसी ने उन्हें भड़काया है. महिला डीसीपी के साथ हाथापाई हुई, वरिष्ठ अधिकारियों ने इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया. इससे पुलिस का मोराल डाउन हुआ है. पुलिस में भर्ती होने की तैयारी कर रही लड़कियों के लिए भी डर होगा कि यही हाल रहा तो कैसे काम होगा?”ललित वत्स, वरिष्ठ पत्रकार
पुलिस मामलों के जानकार वत्स ने वकीलों और पुलिस के बीच हुए इस संघर्ष का जिक्र करते हुए कहा कि वकीलों के मन में खुद को ज्यादा पावरफुल दिखाने की होड़ रहती है. वकीलों के खिलाफ किरण बेदी के एक्शन के बाद से ही पुलिस और वकीलों के बीच मनोवैज्ञानिक टकराव होता है. पुलिस और वकीलों में आपस का तनाव ठीक नहीं है. दोनों पक्षों को आपस में बैठकर इसका हल निकालना होगा.
पुलिस और वकीलों के बीच पावर गेम
क्राइम रिपोर्टर और कई सालों से पुलिस और कोर्ट के मामलों को देख रहे विशेष संवाददाता अवनीश चौधरी ने इस मामले को पॉवर गेम बताया. उन्होंने बताया कि पुलिस और वकील पॉवर के लिए हमेशा ही टकराव की स्थिति में रहते हैं. पहले भी कई बार ऐसा छोटा-मोटा टकराव देखा गया है. उन्होंने कहा,
“दिल्ली पुलिस का ये प्रदर्शन बगावत नहीं बल्कि हताशा है. ये लोग सिर्फ उनकी बात सुनने की गुहार लगा रहे थे. पुलिसकर्मी चाहते थे कि आला अधिकारी उनका पक्ष ले. ये पूरा प्रदर्शन बिना किसी संगठन और लीडरशिप के हुआ. पुलिस वालों ने खुद ही वॉट्सऐप के जरिए मुहिम छेड़ दी. मैसेज भेजे गए कि हमारी बात नहीं सुनी जा रही है और आईटीओ पर जमा होना है.”अवनीश चौधरी, पत्रकार
हाईकोर्ट के फैसले से निराशा
पत्रकार चौधरी ने बताया कि पुलिस को हाईकोर्ट से काफी उम्मीदें थीं, लेकिन जब कोर्ट का फैसला आया तो उन्हें लगा कि ये सीधे उनके खिलाफ है. मामले के लिए बनाई गई एसआईटी को निर्देश दिए गए कि जब तक जांच पूरी नहीं होती तब तक किसी वकील को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा. वहीं आरोपी पुलिसकर्मियों को जांच से पहले ही सस्पेंड करने के निर्देश दे दिए गए.
पुलिसवालों को लगा कि हमारे लिए बिना चांज के निलंबन और वकीलों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है. उन्हें लगा कि हमारी बात कौन रखेगा. पुलिसकर्मी सीधे तौर पर अपने अधिकारियों से सवाल नहीं कर सकते थे. इसके बाद सभी ने संगठन के तौर पर प्रदर्शन करने का फैसला किया.
वकीलों और पुलिस में क्या है अंतर?
पुलिस वालों को हमेशा से यही लगता है कि वकील उन्हें दबाते आए हैं. इसीलिए टकराव के कई मामले पहले भी सामने आ चुके हैं. लेकिन सीनियर अधिकारियों का ये तर्क है कि वकील स्वतंत्र व्यक्ति हैं, लेकिन पुलिसकर्मी जिस अनुशासनात्मक प्रोफेशन से जुड़े हैं वो अलग है.
“कई बार ऐसा हो चुका है कि वकील ने मारपीट की तो सेटलमेंट से मामला दबा दिया गया. ये चीजें पुलिस के मन में भर रही थी, पुलिस को लगा कि वो अब कमजोर पड़ रही है. इसीलिए चिंगारी मिलते ही इस मुद्दे ने प्रदर्शन का रूप ले लिया. इसीलिए इसे मूछों की लड़ाई भी कहा जा सकता है.”
यूनियन की मांग कितनी जायज ?
तीस हजारी कोर्ट में बवाल के बाद पुलिस ने प्रदर्शन में कई मांगें उठाईं. जिनमें एक बड़ी मांग अपनी यूनियन बनाने की भी थी. पुलिसकर्मी मांग कर रहे थे कि दिल्ली में उनकी भी एक यूनियन हो, जिसके जरिए वो अपनी मांगे या फिर खुद के लिए इंसाफ की मांग कर सकें. लेकिन उनकी इस मांग को पूरा नहीं किया गया. ज्वाइंट सीपी ने उन्हें बताया कि उनके क्या अधिकार हैं. उन्होंने बताया कि पहले से ही पुलिस की वेलफेयर सोसाइटी है. जिसमें हर रैंक का प्रतिनिधित्व है.
बता दें कि पुलिस के आईपीएस रैंक के अधिकारियों का एसोसिएशन बनाया गया है. जब भी किसी अधिकारी के खिलाफ कोई बुरा बर्ताव या फिर कार्रवाई होती है तो ये एसोसिएशन खुलकर सामने आता है. जवान भी कुछ इसी तरह के एसोसिएशन की मांग कर रहे थे.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)