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10 लाख से ज्यादा कोरोना केस, रोज नया रिकॉर्ड, अब आगे क्या?  

कोरोना के मामलों में क्या अभी हमें पता है कि हम कहां हैं? और हम आगे इसे रोकने के लिए कितने तैयार हैं?

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भारत
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आज से तीन महीने पहले जब अमेरिका से कोरोना अपडेट आता था तो हम चौंक जाते थे. मन में आता था कि पता नहीं अमेरिका का क्या होगा. अपडेट कुछ यूं होते थे - आज अमेरिका में कोरोना के 20 हजार नए मामले सामने आए. आज कल से भी ज्यादा नए मामले आ गए. आज यही हाल भारत का है. सबसे डरावना सवाल ये है क्या ऐसी ही रफ्तार रही तो क्या हम दुनिया का सबसे कोरोना संक्रमित देश बन जाएंगे? क्या अभी हमें पता है कि हम कहां हैं? और हम आगे इसे रोकने के लिए कितने तैयार हैं?

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पिछले कुछ दिन में आए नए मामले

कोरोना के मामलों में क्या अभी हमें पता है कि हम कहां हैं? और हम आगे इसे रोकने के लिए कितने तैयार हैं?

पिछले कुछ दिनों से भारत में हर दिन कोरोना के नए मामलों का रिकॉर्ड बन रहा है. मौत के मामलों में रोज पिछले दिन का आंकड़ा पिछड़ जा रहा है. हम ये कहते रहे कि हमने अपने देश में वक्त पर लॉकडाउन का फैसला कर लिया. हमने अच्छे से कोरोना कंट्रोल की रणनीति अपनाई. लेकिन आज हम दुनिया के सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमित देशों में तीसरे नंबर पर पहुंच गए हैं. अब हालत ये हो रही है कि तीन-तीन दिन में एक लाख नए केस सामने आ जा रहे हैं.

एक दो महीने पहले हम बड़े गर्व से कह रहे थे कि देखिए उन्नत देशों का क्या हाल हुआ लेकिन हमारी ऐहतियात ने हमें उतने बुरे हाल में नहीं डाला, लेकिन क्या अब हम ये बात कह सकते हैं? ये सवाल और गंभीर तब जाता है जब ये बात याद आती है कि हम कम टेस्टिंग करने वाले देशों में से एक हैं. 15 जुलाई तक भारत में प्रति 10 लाख आबादी पर 8,991 टेस्ट हो रहे थे, जबकि अमेरिका में ये संख्या 1,32,993 और ब्राजील में 21,507 था.

देश के जाने माने वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहीद जमील कहते हैं कि अप्रैल के आखिर में ICMR ने जो सीरो सर्वे किया था उसके मुताबिक आबादी के 0.73% लोग संक्रमित हो रहे थे, अगर ये सही है कि तो 16-17 जुलाई तक 15 करोड़ से ज्यादा संक्रमित होने चाहिए.

इन तथ्यों पर हम अपनी पीठ थपथपा सकते हैं कि भारत में प्रति दस लाख जनसंख्या पर मामलों की संख्या दुनिया में सबसे कम है. हमारे यहां डेथ रेट कम है. जैसे अमेरिका में प्रति दस लाख 419 लोगों की मौत हो रही है और हमारे यहां 18. मई में हमारे यहां रिकवरी रेट 29% थी और अब ये 63% पर है.

‘बाकी देशों की तुलना में यहां मौतों की संख्या कम है. लेकिन इसकी एक वजह ये है कि कोरोना से हो रही मौतों की सही संख्या का पता लगाना मुश्किल है. कोरोना से पहले जो मौतें हो रही थीं, वो अब भी हो रही हैं. लेकिन अगर उन्हें भी कोरोना हो तो भी रिपोर्ट यही आएगी कि कोरोना नहीं, बाकी बीमारियों से मौत हुई है.
क्विंट से पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. मैथ्यू वर्गीज
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लॉकडाउन-अनलॉक-असमंजस

लॉकडाउन को हमने कोरोना के खिलाफ ब्रह्मास्त्र बताया था. अर्थव्यवस्था की हालत बताती है कि लोगों ने उसका पालन भी किया. लेकिन अब इसमें कोई शक नहीं रह गया है कि लॉकडाउन भी हमारी मदद नहीं कर पाया. इसके जो आर्थिक परिणाम निकले, वो तो एक अलग कहानी है, और जो कोरोना के जाने के बाद भी हमें सताता रहेगा, लेकिन अब इतना तय है कि इसने कोरोना कंट्रोल में भी उतनी मदद नहीं की, जितने की उम्मीद और दावा था.

एक गौर करने वाली है बात ये है कि अमेरिका जैसी आर्थिक हालत हमारी नहीं है. हमारी आबादी इतनी कुव्वत नहीं रखती कि घर में एक शख्स कोरोना से संक्रमित हो जाए तो उसकी गृहस्थी निर्बाध चलती रहे. न तो उसके पास इतनी जमा पूंजी है और न ही उसे सरकार से इतनी मदद मिली है. मतलब ये कि जब हम रोज 35 हजार से ऊपर नए मामलों की खबर सुनते हैं तो जो बात पता नहीं चलती वो ये कि उनमें से ज्यादातर परिवारों के लिए आर्थिक रिकवरी बहुत मुश्किल हो जाती है.

महानगर से गांव तक असर

सच्चाई ये है कि अब हम कह सकते हैं कि कोरोना कंट्रोल में हम बुरी तरह फेल हुए. लैंसेट की रिपोर्ट बताती है कि देश 640 में से 627 जिलों में कोरोना पैर पसार चुका है. यानी देश का 98% हिस्सा होता है. तो एक तरफ देश की आर्थिक राजधानी मुंबई और देश की राजधानी दिल्ली कोरोना से त्राहिमाम कर रही है वहीं दूसरी ओर गांवों में हालत खराब हो रही है. झारखंड का उदाहरण लीजिए, ये उन चंद राज्यों में था, जो बाकी देश की तुलना में कोरोना से बचा हुआ था लेकिन अब यहां हालात बिगड़ रहे हैं. 4 अप्रैल को इस राज्य में महज दो पॉजिटिव केस थे. 15 जुलाई आते-आते यहां 4.5 हजार से ज्यादा कोरोना मामले सामने आ गए. इनमें से आधे मामले प्रवासी मजदूरों से जुड़े हुए हैं.

बिहार में 31 मई तक महज 3,800 मामले थे, 30 जून को संख्या हो गई करीब 10 हजार और 17 जुलाई को केस हो गए 23 हजार से ज्यादा. चिंता की बात ये है कि जुलाई में 17 दिन में ही 13000 केस सामने आ गए. यहां भी प्रवासी मजदूरों के आने से संक्रमण बेकाबू हो गया. यूपी-बिहार-झारखंड जैसे राज्यों में मेडिकल सेटअप की क्या स्थिति है इसपर विस्तार से बताने की जरूरत नहीं है. आजकल बरेला का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें एक क्वॉरन्टीन सेंटर में लोग बैठे हैं और कमरे में ऊपर से झरझर पानी गिर रहा है. लांसेट की रिपोर्ट के मुताबिक जिन दस जिलों में कोरोना को झेलने की सबसे कम ताकत है उनमें से ज्यादातर इसी यूपी-बिहार-झारखंड से हैं. 6 तो सिर्फ बिहार के हैं.

क्या जब संक्रमण कम था तो सब बंद करना और जब मामले ज्यादा होने लगे तो आवाजाही खोल देना, गलती साबित हुई? देश में 80% से ज्यादा मामले अनलॉक 1 मतलब 1 जून के बाद ही आए हैं. इसी तरह 75% से ज्यादा करीब 19 हजार मौतें अनलॉक होने के बाद हुईं हैं.

अब आगे क्या?

सबसे बड़ा सवाल ये है कि कोरोना पीक लेवल पर कब आएगा? ये बड़ा सवाल है क्योंकि ये होगा तभी मामले घटने शुरू होंगे. इसको लेकर अलग-अलग अंदाज लगाया जा रहा है. ICMR ने कहा था कि ये नवंबर में होगा. जरा सोचिए रोज 35 हजार से ज्यादा नए मामलों के करेंट रेट को ही पैमाना मान लें और ये अगले साढ़े तीन महीने भी जारी रहा तो मामले हो जाते हैं 36 लाख. गनीमत है कि ICMR ने ये आकलन वापस ले लिया. हेल्थ इकनॉमिस्ट डॉ. रिजो जॉन का हिसाब है कि 31 अगस्त तक भारत में 31 लाख कोरोना केस हो जाएंगे. इससे पहले डॉ. जॉन ने कहा था कि 22 जुलाई तक भारत में 10 लाख केस होंगे और ये आंकड़ा उससे पांच दिन पहले यानी 17 जुलाई को ही पार हो गया.

अब पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के श्रीनाथ रेड्डी ने कहा है कि मध्य सितंबर तक कोरोना भारत में पीक पर जाएगा. लेकिन साथ में उन्होंने जो चेतावनी दी है वो अहम है. उन्होंने कहा कि सबकुछ सरकारी की कोशिशों और लोगों की ऐहतियात पर निर्भर करता है. लेकिन जरूरी ऐहतियात न सरकारी लेवल पर दिखती है न ही जनता के स्तर पर. न तो मेनस्ट्रीम मीडिया में और न ही सरकार की भाषा और एक्शन में इमरजेंसी है. रोज सुबह जारी होने वाले आंकड़ों के थोड़ी देर बाद ही ऐसा माहौल बनता है जैसे-ऑल इज वेल...सब चंगा सी.

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